Monday, 8 October 2018

भैरवी चक्र और कुंडलिनी तंत्र [ Bhairavi Chakra ]

कुंडलिनी तंत्र और भैरवी चक्र 

========================

कुंडलिनी तंत्र अथवा भैरवी तंत्र अथवा भैरवी विद्या में भैरवी चक्र का सर्वाधिक महत्त्व है |भैरवी चक्र कोई आकृति नहीं ऊर्जा धाराओं का प्रतीक है |इसे चित्रित किया गया होता है अथवा प्रतीक रूप से इसको व्यक्त किया जाता है ,जबकि यह ब्रह्मांडीय सृष्टि और रचना का विग्या ,क्रियाविधि व्यक्त करता है |भैरवी चक्र या ऊर्जा दाराओं की क्रिया परमतत्व में होती है जिससे एक आकृति उभरती है सृष्टि रचना की उसे भैरवी चक्र नाम दिय गया |यद्यपि इसका नाम और भी हो सकता है |सदाशिव या परमात्मा ही परम तत्व है |इनकी इच्छा से ही सृष्टि होती है |परम तत्व की इच्छाहोने पर परमतत्व के अनंत फैलाव में किसी एक बिंदु पर विकोचन होता है और चक्रवात कीभाँती एक अत्यंत सूक्ष्म भंवर बनता है |इसे शास्त्रों में परानाद कहा जाता है |यह क्रिया ठीकचक्रवात जैसी होती है |यह बिंदु ऊपर उठता है और उसे भरने के लिए तत्व की धाराएं दौड़ती हैंऔर  भंवर चक्र बन जाता है जिसकी आकृति शंक्वाकार प्याले जैसी होती है |यह तीब्र गतिसे नाच रहा होता है |इससे इसके ऊपर आवेश उत्पन्न होता है |यही वह योनिरूपा महाकाली है,जिसकी महत्ता वाममार्ग में सर्वाधिक है |यह आदिमाया ,आदिरूपा ,आदिशक्ति के रूप मेंउत्पन्न होती है ,क्योकि इसके बाद ही कोई उत्पत्ति होती है |इस शक्ति का रूप योनी रूपा है,इसमें अन्य कोई आकृति नहीं होती |इस आकृति की प्रतिक्रया में इसके ऊपर एक इसी कीउलटी संरचना उत्पन्न होती है [विपरीत आवेश के खिचाव से ],जिस पर भिन्न प्रकार के[विपरीतआवेश होते हैं |यह वह शिवलिंग है ,जो योनी के आकर्षण में उत्पन्न होता है |विपरीतआवेश के कारण दोनों एक दुसरे में समा जाते हैं और एक जीव की उत्पत्ति होती है |दोनों आवेशोंके एक दुसरे में समाने से जो आकृति बनती है यही भैरवी चक्र है |अर्थात जो परिपथ उससदाशिव के अनंत फैलाव में उत्पन्न होता है ,यही भैरवी चक्र है और इसी चक्र से महामायाप्रकृति की उत्पत्ति होती है और यही चक्र समस्त सृष्टि के अस्तित्व ,क्रिया ,विकास ,और इसकेअन्दर उत्पन्न होने वाली समस्त इकाइयों की उत्पत्ति ,क्रिया और विकास का जनक है |इसकेएक छोर पर काली ,दुसरे छोर पर पार्वती ,बीच में भौतिक राज राजेश्वर शिव एवं ऊपर शीर्ष परसती होती हैं |इसके अन्दर एक नाभिक ,दो अलग अलग ध्रुवों पर दो अलग अलग ऊर्जा बिंदु धनऔर ऋण होती हैं ,धन बिंदु के ऊपर एक प्रभा होती है |यह मूल भैरवी चक्र है |इसमें ऊर्जा धाराएंचलती हैं और इसकी एक व्यवस्था होती है |इसी से सृष्टि की उत्पत्ति होती है और यह समस्तसृष्टि के अन्दर पायी जाती है |सभी देवीदेवता ,यक्ष ,किन्नर ,जीवजंतु ,तारे ,नक्षत्र ,ग्रह,उपग्रह और यह ब्रह्माण्ड एवं इसकी सभी उत्पत्तियां इस चक्र में इसी चक्र की आकृति में होतीहै |इसलिए दो त्रिकोनों के इस मेल को माँ कहा जाता है |यह आदि जननी का संकेत सूत्र है |यहीभैरवी चक्र है |इसी को श्री विद्या या श्री चक्र भी कहा जाता है |सभी यंत्रों के मूल में त्रिकोण एकऊर्जा धारा [आवेश को व्यक्त करता है ,जो आदि रूपा उत्पन्न होने वाली महामाया अथवामहाकाली का संकेत देता है |जबकि दो त्रिकोण एक दुसरे में समाये हुए उसकी पूर्णता और उससेउत्पत्ति को व्यक्त करतें हैं |सभी शक्ति यंत्रों में भैरवी चक्र होते है त्रिकोण होते हैं |यह मूलशक्ति के संकेतक हैं |अन्य दल अथवा आवरण आदि चित्र उससे जुडी भिन्न शक्तियों अथवागुणों को व्यक्त करते हैं |

भैरवी चक्र की पूजा किसी  किसी रूप में तंत्र मार्ग में होती है ,क्योकि यही शक्ति है ,इसी सेसृष्टि की उत्पत्ति है |परम तत्व तो निर्लिप्त रहता है |उसमे सृष्टि की ईच्छा होने पर ,उसमेस्थित [समाहित ]शक्ति उसी से एक भंवर उत्पन्न करती है अपने आवेश के साथ ,फिर उसीतत्त्व से विपरीत आवेश का भंवर उससे आकर्षित हो बनता है ,जो एक दुसरे में समा जाते है औरतीसरे बिंदु नाभिक के साथ एक मूल परिपथ के साथ सृष्टि प्रारम्भ होती है |इसीलिए सभी मेंमूल रूप से शुरू से ही यह तीनो बिंदु से ही रचना प्रारम्भ होती है |इसे व्यक्त करने के लिए एकत्रिभुज में दुसरे त्रिभुज को दर्शाया जाता है ,जबकि यह दोनों ही त्रिभुज शंक्वाकार एक दुसरे मेंसमाये होते हैं और क्रिया करते हैं |इसी भैरवी चक्र की पूजा को तंत्र में सर्वाधिक महत्व दियाजाता है |इसकी पूजा में स्त्री और पुरुष के दो गुणों के संयोग से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कियाजाता है ,माध्यम बनाया जाता है सृष्टि उत्पन्न करने की शक्ति अर्थात काम भाव को |अर्थाततंत्र में सृष्टि उत्पन्न करने वाली शक्ति से ही सृष्टि के नियंता तक पहुचने का मार्ग बनायाजाता है |परम शक्तिशाली जनन क्षमता को ही मुक्ति का माध्यम बनाया जाता है |मनुष्य कीसृष्टि करने वाली शक्ति को ही मुक्ति की शक्ति बना दिया जाता है अर्थात उस शक्ति कोमुक्ति मार्ग के लिए उपयोग किया जाता है |यह स्वाभाविक और प्राकृतिक क्रिया शीघ्र शक्तिप्राप्ति का ,सिद्धि का ,मुक्ति का माध्यम बन जाती है |……………………………………………………………….हरहर महादेव 

No comments:

Post a Comment

महाशंख  

                      महाशंख के विषय में समस्त प्रभावशाली तथ्य केवल कुछ शाक्त ही जानते हैं |इसके अलावा सभी लोग tantra में शंख का प्रयोग इसी...