Monday, 8 October 2018

भैरवी पूजा और पति - पत्नी

पति-पत्नी और भैरवी पूजा 

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आज के समय में सबसे अधिक आवश्यकता नारी-पुरुष के संबंधों में आ रही कटुता को दूर करना है |कभी इनमे प्रेम और पूजा का भाव था |पत्नी या प्रेमिका पुरुष को देवता और पुरुष उन्हें देवी मानकर प्रेम करता था |यौनाकर्षण में भी ह्रदय का अपनत्व ,अनुराग और श्रद्धा होती थी ,पर आज यह सब समाप्त हो गया है |हर कोई एक दुसरे से किसी न किसी प्रकार असंतुष्ट है ,आपसी विश्वास और लगाव समाप्त होकर रिश्ते समझौता बन गए हैं |हमारे पास अकसर ऐसे मामले आते रहते हैं |विषमय यह है की औरतें ज्योतिषी और तांत्रिक के पास पति से छुटकारा प्राप्त करने या उसे अपना गुलाम बनाने की विधि और उपाय जानने अथवा करवाने आती हैं और पुरुषों की रूचि विवाहित नारी पर वशीकरण करके उसे वश में करने में होती है |यह स्पष्ट करता है की शादी-विवाह के रिश्ते लगभग खोखले हो गए हैं |रिश्तों में भावनाओं का अभाव हो गया है |इसके यद्यपि अनेक कारण हैं पर मुख्य कारण भौतिकता के प्रति गहरी लालसा ,प्रतिस्पर्घा के स्थान पर ईर्ष्या के भाव का प्रचार-प्रसार करते बुद्धिजीवी ,स्वार्थ का संकुचित होना ,समय का शनि के युग में होना ,आपसी भावनाओं का अभाव ,केवल शारीरिक तुष्टि का सम्बन्ध,संबन्धिन में एक रसता ,विभिन्नता का अभाव ,पृथ्वी से तलवों का संपर्क टूटना {[इससे मानसिक तनाव ,पौरुष हीनता ,बंध्यापन ,रक्ताल्पता ,प्रदर एवं धातु रोग उत्पन्न होते हैं ,सेक्स में विकृति और आक्रामकता आती है ]}आदि आदि हैं |

       इन सभी कारणों को दूर किया जा सकता है ,यदि पति-पत्नी विधि-विधान से प्रत्येक शनिवार को भैरवी पूजा करें |यद्यपि भैरवी पूजा को यह समाज अच्छा नहीं समझता और नाम से ही नाक भौं सिकोड़ता है ,पर यह सब भ्रांतियों के कारण है जो स्वार्थियों द्वारा फैलाया गया है अथवा इस नाम का दुरुपयोग किया गया है |इस पूजा में पुरुष भैरव स्वरुप और स्त्री भैरवी स्वरुप होती है ,एक दुसरे को देवता और देवी मानकर साधना -पूजा की जाती है |एक दुसरे में श्रद्धा और प्रेम से मानसिक एकाग्रता से अभिन्न होने की पूजा का अभ्यास दाम्पत्य की सारी समस्याओं को दूर कर देता है |भाग्य की लकीरें भी बदल जाती हैं |ब्रह्मांडीय पारलौकिक ऊर्जा के साथ धरती की ऊर्जा का संगम चमत्कारों को जन्म देने लगता है ,व्यक्ति में अद्भुत क्षमता और गुण विक्सित होने लगते हैं |भैरवी पूजा के समय स्त्री पुरुष को नंगे पैर धरती पर चलना चाहिए |आजकल शहरों में पत्थर के फर्श हैं या सीमेंट है ,जो आज की समस्या के बहुत बड़े कारण हैं |

      यदि पति पत्नी में हार्दिक प्रेम विद्यमान है ,भैरव जी की जगह कृष्ण और राधा की सात्विक पूजा [एक दुसरे को मानकर ]की जा सकती है |इससे आत्मिक प्रेम बढ़ता है और आध्यात्मिक उपलब्धि होती है |रास और सखा भाव भक्ति के आधार सूत्र भी भैरवी पूजा के सूत्र से जुड़े हैं |अंतर इतना है की इसमें सभ्यता के एक बाहरी आवरण को बनाये रखा गया है |यह पूजा उनके लिए ही हो सकती है जिनके संस्कार इजाजत देते हों ,संस्कार इजाजत नहीं देते तो अपराध बोध जन्म लेता है और यदि अपराध बोध आया तो सफलता नहीं मिलती |वैसे सत्य तो यही है की योनी -लिंग पूजा में शर्मनाक कुछ भी नहीं है ,कम से कम पति-पत्नी के लिए तो नहीं ही ,कारण सृष्टि ,वंश ,कुल ,समाज ,और प्रजातियाँ इन्ही दोनों के समागम पर आधारित हैं |सृष्टि का मूल मंत्र ही इनका समागम है |इसीलिए शिवलिंग की महत्ता गई जाती है और लोग उसकी पूजा करते हैं |शिवलिंग को पूज साकते हैं पर अपने पति अथवा पत्नी को उसी रूप में पूजने के नाम पर गलत मानने लगते हैं ,यह विडम्बना ही है की प्रकृति के मूल को अधिकतर नहीं समझते और आडम्बरों ,दिखावों और झूठे अपराध बोध में जकड़े हुए हैं |चीन ,जापान के धार्मिक चिन्हों में में भी भैरवी चक्र को सबसे अधिक महत्ता दी गयी है ,नाम भले अलग हो ,पर यह है भैरवी चक्र ही ,,श्री यन्त्र का मूल भैरवी चक्र है ,लगभग सभी देवियों ,देवताओं के यंत्रों में इस चक्र को देखा जा सकता है |

  इस पूजा से भैरवी को न केवल अलौकिक शक्ति प्राप्त होती है ,बल्कि देवी-देवता उसके वश में होते हैं ,उस पर वृद्धता का असर नहीं होता और सदा पर्मानान्दित रहती है |पुरुष को उपरोक्त शक्ति नारी द्वारा ही प्राप्त होती है |इस पूजा से नारी और पुरुष दोनों की शारीरिक – मानसिक समस्याएं समाप्त होती हैं ,आपसी कलह-तनाव-विवाद-कटुता समाप्त हो जाते हैं ,दोनों को अलौकिक शक्तियां प्राप्त होती हैं जो उन्हें जीवन के हर क्षेत्र में सहायक होती है |शारिरीक-मानसिक-बौद्धिक क्षमता बढ़ जाती है |……………………………………………………हर-हर महादेव

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