Sunday, 7 July 2019

स्मार्त सम्प्रदाय [Smarta ]

स्मार्त सम्प्रदाय
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                 स्मार्त सम्प्रदाय 'द्विज' या 'दीक्षित' उच्च वर्ग के सदस्यों वाला एक हिन्दू धार्मिक सामाजिक सम्प्रदाय है। इसके सदस्यों में मुख्य रूप से ब्राह्मण ,क्षत्रिय और वैश्य वर्गों के लोग शामिल हैं। इस सम्प्रदाय में मूलत: ब्राह्मण अनुयायियों की विशेषता हिन्दू देवगण के सभी देवताओं की भक्ति तथा प्राचीन सूत्र पाठों में निर्दिष्ट अनुष्ठान एवं आचार के नियमों का पालन करना है। वे अपने देवता या पूजन-पद्धति के बारे में एकनिष्ठ नहीं हैं।
          स्मार्त नाम संस्कृत शब्द 'स्मृति' से निकला है, जिसे वेदों के विपरीत मानव द्वारा लिखित प्राचीन मूलपाठ माना जाता है। वेदों के विषय में मान्यता है कि उन्हें आध्यात्मिक संतों ,ऋषियों को देववाणी द्वारा उद्घाटित किया गया। स्मार्त सम्प्रदाय स्मृति साहित्य का अनुसरण करता है। उनके महानतम गुरु और कुछ लोगों के अनुसार धार्मिक-सामाजिक समूह का निर्माण करने वाले, आठवीं सदी के दार्शनिक व अद्वैत वेदान्त के प्रतिपादक शंकर इस आन्दोलन के संस्थापक थे। श्रृंगेरी ,कर्नाटक में उनके द्वारा स्थापित मठ स्मार्त सम्प्रदाय का केन्द्र बना हुआ है, तथा इस मठ के प्रमुख जगदगुरु, दक्षिण भारत एवं गुजरात में स्मार्तों के आध्यात्मिक गुरु हैं व भारत के प्रमुख धार्मिक व्यक्तित्वों में एक हैं।
            वेदों को श्रुति ग्रंथ कहा जाता है अर्थात जिस ज्ञान को परमेश्वर से सुनकर जाना गया। वेदों को छोड़कर सभी ग्रंथ स्मृति ग्रंथ कहलाते हैं अर्थात जिस ज्ञान को परंपरा के माध्यम से जाना या जिसे स्मृतियों के आधार पर जाना। अधिकतर लोग इस संप्रदाय का नाम शंकराचार्य से जोड़ते हैं। शंकराचार्य ने तो दसनामी संप्रदाय की स्थापना की थी, जो सभी शिव के उपासक शैव पंथ से हैं। 
स्मार्तों के धर्मग्रंथ सभी पुराण, स्मृतियां हैं |स्मृति ग्रंथों में मनु स्मृति सहित सभी स्मृतियां और पुराण आते हैं। वेदों को छोड़कर जो इन ग्रंथों पर आधारित जीवन-यापन करते हैं उनको स्मार्त संप्रदाय का माना जाता है। जैसे जो विष्णु को भी माने और शिव को भी, दुर्गा को भी और अन्य देवी-देवताओं का भी पूजन करें, वे सभी स्मार्त संप्रदाय के हैं। अधिकतर हिन्दू स्मार्त संप्रदाय के ही हैं जिसमें एकनिष्ठता का अभाव है।
         उत्तर के स्मार्त दक्षिण एवं गुजरात के अपने प्रतिरूपों से इन अर्थों में कुछ अलग हैं कि इस नाम का मतलब अनिवार्य रूप से शंकर का अनुयायी होना नहीं है। उत्तर में शुद्ध स्मार्त मन्दिर भी दक्षिण की अपेक्षा कम हैं। स्मार्त अन्य देवताओं के बजाए एक देवता को प्राथमिकता दे सकते हैं और आजकल उनमें शिव अत्यधिक लोकप्रिय हैं। लेकिन वे अपनी उपासना में पाँच मुख्य देवताओं-शिव, विष्णु , शक्ति (उनके दुर्गा ,गौरी ,लक्ष्मी ,सरस्वती जैसे सभी रूपों सहित), सूर्य एवं गणेश की पंचायतन पूजा करते हैं।इस प्रकार स्मार्त सम्प्रदाय सभी मूल पाँचों सम्प्रदायों ,शैव ,वैष्णव ,शाक्त ,सौर और गाणपत्य के मूल देवताओं को मिलाकर एक साथ उनकी पूजा करता है |यह किसी एक सम्प्रदाय से न जुडकर उनकी सम्मिलित शक्ति की आराधना करता है और खुद को सबसे जोड़ लेता है |यह शैव भी है ,शाक्त भी है ,सौर भी है ,वैष्णव भी है और गाणपत्य भी है |
          स्मार्त ब्राह्मण ,हिन्दू धर्म के सार्वभौमिक मूल्यों को प्राथमिकता देते हैं। वे शिक्षा की सभी शाखाओं में सक्रिय हैं। तमिल में 'अय्यर' उपनाम की उपाधि अक्सर उनके नाम के आगे लगाई जाती है, जो अब कुलनाम बन गया है।स्मार्त सभी सम्प्रदायों के बीच संतुलन बनाते हुए सामाजिक संरचना के अनुसार दैवीय आराधना को समायोजित करते हुए सामाजिक ,पारंपरिक ,नैतिक मूल्यों को बचाए रखने में तत्पर रहते हैं |सामान्यजन में अधिकतर स्मार्त सम्प्रदाय के लोग ही रहते हैं |....................................................हर हर महादेव 

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