:::::::: महामृत्युंजय साधना /अनुष्ठान ::::::::
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शास्त्रों मे उल्लेखित महामृत्युंजय साधना से संबधित कथा के अनुसार मुकुंद मुनि निःसंतान होने के कारण अत्यधिक दुखी थे परंतु उन्होंने भगवान शिव की कठिन तपस्या कर उन्हें प्रसन्न कर लिया तथा आर्शिवाद स्वरूप संतान प्राप्ति का वरदान मांग लिया परंतु भगवान शंकर ने उनके सामने एक शर्त रखी कि यदि तुम्हें बुद्धिमान, ज्ञानी, सदचरित्र तथा बुद्धिमान पुत्र चाहिए तो वह मात्र 16 वर्ष की अल्प अल्पायु होगा परंतु अज्ञानी दुर्बुद्धि चरित्रहिन संतान होने पर वह पुर्णायु प्राप्त हो सकेगा। मुकुंद मुनि तथा उसकी पत्नी ने सचरित्र सद्बुद्धि तथा ज्ञानवान पुत्र प्राप्ति का वरदान मांग लिया भगवान शंकर प्रसन्न होकर उन्हे इच्छित वरदान देकर अदृष्य हो गये। समय आने पर उनके घर में एक पुत्र का जन्म हुआ। जिसका नाम मार्कडेय रखा गया।
मार्कडेय बचपन से ही सुन्दर तेजस्वी बुद्धिमान तथा सर्व गुण संपन्न थे। उनका लालन-पालन तथा शिक्षा-दिक्षा उचित रूप से किया गया। धीरे-धीरे मार्कडेय की ज्ञान गरिमा का प्रकाश दुर-दुर तक फैलने लगा। परंतु जल्दी ही वह समय भी आ पहुंचा जिस समय के लिए भगवान शंकर ने बालक की आयु निश्चित किया थी। तब मुनि को चिंता सताने लगी अपने पिता को चिंतित देख कर मार्कडेय ने चिंता का कारण पुछा तब मुकुंद मुनि ने अपने बेटे से सब कुछ बता दिया। अपने अल्पायु की बात सुन उन्होंने कहा कि पिता जी आप चिंता मत किजीए क्योंकि जिस भगवान शंकर ने मुझे जन्म दिया है उनका दुसरा नाम महामृत्युंजय है। तथा मुझे अपनी भक्ति एवं भगवान महामृत्युंजय की साधना पर पूर्णं विश्वास है।
इस प्रकार से मार्कण्डेय ने भगवान महामृत्युंजय की साधना आराधना प्रारंभ कर दिया, परंतु इसी बीच उनकी जीवन अवधि समाप्त हो गई और काल उनके जीवन का हरण करने आ पंहुचा परंतु का से उन्होंने विनती कर कहा कि मुझे महामृत्युंजय स्त्रोत का पाठ .पुरा करने दे। परंतु काल के गर्व ने उन्हें ऐसा करने की अनुमति नही दी और उनके प्राणों का हरण करन करने को आतुर होने लगा तब भगवान शंकर शिवलिंग से प्रकट होकर अपने भक्त की रक्षा करने के लिए काल पर प्रहार किया जिससे काल डर कर भाग गया। इस तरह मार्कण्डेय ने महामृत्युंजय स्त्रोत का पाठ पुरा किया तब भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर उन्हे अमरता का वरदान दिया।
महामृत्युंजय साधना के माध्यम से मनुष्य अपने अकाल मृत्यु का निवारण करने के साथ ही साथ रोग-शोक, भय, बाधा इत्यादि को पूर्णतः समाप्त कर अपने जीवन को सुखी एवं सम्पन्न बना कर जीवन का पूर्णं आनंद उठा सकता है परंतु इस अनुष्ठान को पूर्ण विधी-विधान के साथ किया जाना चाहिए। यदि संभव हो तो किसी गुरू अथवा मार्ग दर्शक के दिशा निर्देशन तथा संरक्षण में करें तो ज्यादा उचित होगा।
साधना विधान
----------------- महामृत्युंजय मंत्र का अनुष्ठान महाशिवरात्री, श्रावण सोमवार, सोम प्रदोष इत्यादि शुभ मुहूर्त में प्रारंभ करना चाहिए। सर्वप्रथम साधक स्नानआदि से निवृत होकर उत्तर अथवा पूर्व दिशा की ओर मुंह कर कंम्बल के आसन पर बैठें तथा सामने भगवान महा मृत्युंजय का चित्र तथा यंत्र को एक लकड़ी के तख्ते पर पीला आसन बीछा कर एक स्टील के थाली मे अष्टगंध से स्वास्तीक बनाकर उसके उपर स्थापित कर दें |फिर विधी-विधान के साथ जल, गंगाजल, दुध, दही, धी इत्यादि से भगवान महामृत्युंजय के चित्र अथवा विग्रह तथा महामृत्युंजय यंत्र का अभिषेक करें तत्पश्चात भगवान महामृत्युंजय का पूजन धुप, दीप, मदार फुल, बेलपत्र, धतुरा, अष्टगंध से पूजन करना चाहिए तत्पश्चात अपनी अभिष्ठ कामना के लिए हाथ मे जल लेकर संकल्प करें और प्रार्थना करे कि हे भगवान महामृत्युंजय मैं अपने अमुक कार्य के लिए आपके मंत्र का अनुष्ठान कर रहा हुं आप मुझे अपना आशिर्वाद तथा कृपा दृष्टि बनायें तथा मेरे अभिष्ट कामनाओं को पूर्ण करें। तत्पश्चात महामृत्युंजय मंत्र का जप करें।
महामृत्युंजय जप स्वयं द्वारा किया जा सकता है |सामान्यतया महामृत्युंजय अनुष्ठान में पार्थिव शिवलिंग का निर्माण किया जाता है किन्तु घर में पारद शिवलिंग स्थापित करके इसे स्वयं अपनी आवश्यकतानुसार संकल्प बढ रूप से किया जा सकता है |समस्त प्रक्रिया के सुचारू सम्पन्नता के लिए शुरू में योग्य विद्वान् की देखरेख आवश्यक होती है |इसके साथ यदि अनुष्ठान में मृत्युंजय यन्त्र निर्मित करके अभिमंत्रित कर लिया जाए और कवच-ताबीज में अनुष्ठानोपरांत धारण किया जाए अथवा किसी को धारण कराया जाए तो सदैव लाभ मिलता रहता है और सदैव सुरक्षा प्राप्त होती है |
महामृत्युंजय मंत्र का अनुष्ठान अलग-अलग कार्यों के लिए अलग-अलग जप संख्या निर्धारित की गयी है। महामृत्युंजय मंत्र का जप मानसिक तनाव तथा भय नाश के लिए 1100 मत्रों का जप का संकल्प करें|
जटिल रोगों से मुक्ति तथा अनिष्ट बाधाओं के निवारण के लिए 11000 मंत्रों के जप का संकल्प करना चाहिए |
अकाल मृत्यु निवारण के लिए सवा लाख मंत्र जप का अनुष्ठान करना चाहिए।
पूर्ण विधी-विधान के साभ किया गया मत्र जप अनुष्ठान पूर्ण रूप से सफलता दायक तथा समस्त प्रकार के रोग शोक भय तनाव को समाप्त करने अकाल मृत्यु निवारण करने में समर्थ है साथ ही साथ मान सम्मान सुख संपदा केश मुकदमों में सफलता संतान प्राप्ति तथा जटिल एवं असाध्य रोगों से मुक्ति दिलाने में पूर्णतः समर्थ है।
किसी भी प्रकार के शारीरिक अथवा मानसिक रोगों को महामृत्युंजय मंत्र के माध्यम से पुर्णतः समाप्त किया जा सकता है तथा रोग,भय, शोक रहित जीवन जीते हुए दिर्घायु जीवन का पुर्णं सुख प्राप्त किया जा सकता है। महामृत्युंजय मंत्र में वह अनोखा प्रभाव है जिसके माध्यम से संभावित अकाल मृत्यु का भी निवारण किया जाना संभव है। साथ ही अनेकों जटिल एवं असाध्य रोगों को भी पूर्णतः समाप्त किया जा सकता है।
मंत्र-
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः त्रयंबकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारूकमिव बन्धनात्मृत्योर्मुक्षीम मामृतात् भूर्भुवः स्वः ॐ सः जूं हौं ॐ
महामृत्युंजय मंत्र का अनुष्ठान किसी योग्य ब्राहमण से करायें यदि साधक स्वयं यह अनुष्ठान करना चाहे तो किसी योग्य गुरू अथवा मार्गदर्शक से मंत्र दिक्षा प्राप्त कर लें तथा गुरू के संरक्षण में करना चाहिए।..............................................................हर-हर महादेव
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शास्त्रों मे उल्लेखित महामृत्युंजय साधना से संबधित कथा के अनुसार मुकुंद मुनि निःसंतान होने के कारण अत्यधिक दुखी थे परंतु उन्होंने भगवान शिव की कठिन तपस्या कर उन्हें प्रसन्न कर लिया तथा आर्शिवाद स्वरूप संतान प्राप्ति का वरदान मांग लिया परंतु भगवान शंकर ने उनके सामने एक शर्त रखी कि यदि तुम्हें बुद्धिमान, ज्ञानी, सदचरित्र तथा बुद्धिमान पुत्र चाहिए तो वह मात्र 16 वर्ष की अल्प अल्पायु होगा परंतु अज्ञानी दुर्बुद्धि चरित्रहिन संतान होने पर वह पुर्णायु प्राप्त हो सकेगा। मुकुंद मुनि तथा उसकी पत्नी ने सचरित्र सद्बुद्धि तथा ज्ञानवान पुत्र प्राप्ति का वरदान मांग लिया भगवान शंकर प्रसन्न होकर उन्हे इच्छित वरदान देकर अदृष्य हो गये। समय आने पर उनके घर में एक पुत्र का जन्म हुआ। जिसका नाम मार्कडेय रखा गया।
मार्कडेय बचपन से ही सुन्दर तेजस्वी बुद्धिमान तथा सर्व गुण संपन्न थे। उनका लालन-पालन तथा शिक्षा-दिक्षा उचित रूप से किया गया। धीरे-धीरे मार्कडेय की ज्ञान गरिमा का प्रकाश दुर-दुर तक फैलने लगा। परंतु जल्दी ही वह समय भी आ पहुंचा जिस समय के लिए भगवान शंकर ने बालक की आयु निश्चित किया थी। तब मुनि को चिंता सताने लगी अपने पिता को चिंतित देख कर मार्कडेय ने चिंता का कारण पुछा तब मुकुंद मुनि ने अपने बेटे से सब कुछ बता दिया। अपने अल्पायु की बात सुन उन्होंने कहा कि पिता जी आप चिंता मत किजीए क्योंकि जिस भगवान शंकर ने मुझे जन्म दिया है उनका दुसरा नाम महामृत्युंजय है। तथा मुझे अपनी भक्ति एवं भगवान महामृत्युंजय की साधना पर पूर्णं विश्वास है।
इस प्रकार से मार्कण्डेय ने भगवान महामृत्युंजय की साधना आराधना प्रारंभ कर दिया, परंतु इसी बीच उनकी जीवन अवधि समाप्त हो गई और काल उनके जीवन का हरण करने आ पंहुचा परंतु का से उन्होंने विनती कर कहा कि मुझे महामृत्युंजय स्त्रोत का पाठ .पुरा करने दे। परंतु काल के गर्व ने उन्हें ऐसा करने की अनुमति नही दी और उनके प्राणों का हरण करन करने को आतुर होने लगा तब भगवान शंकर शिवलिंग से प्रकट होकर अपने भक्त की रक्षा करने के लिए काल पर प्रहार किया जिससे काल डर कर भाग गया। इस तरह मार्कण्डेय ने महामृत्युंजय स्त्रोत का पाठ पुरा किया तब भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर उन्हे अमरता का वरदान दिया।
महामृत्युंजय साधना के माध्यम से मनुष्य अपने अकाल मृत्यु का निवारण करने के साथ ही साथ रोग-शोक, भय, बाधा इत्यादि को पूर्णतः समाप्त कर अपने जीवन को सुखी एवं सम्पन्न बना कर जीवन का पूर्णं आनंद उठा सकता है परंतु इस अनुष्ठान को पूर्ण विधी-विधान के साथ किया जाना चाहिए। यदि संभव हो तो किसी गुरू अथवा मार्ग दर्शक के दिशा निर्देशन तथा संरक्षण में करें तो ज्यादा उचित होगा।
साधना विधान
----------------- महामृत्युंजय मंत्र का अनुष्ठान महाशिवरात्री, श्रावण सोमवार, सोम प्रदोष इत्यादि शुभ मुहूर्त में प्रारंभ करना चाहिए। सर्वप्रथम साधक स्नानआदि से निवृत होकर उत्तर अथवा पूर्व दिशा की ओर मुंह कर कंम्बल के आसन पर बैठें तथा सामने भगवान महा मृत्युंजय का चित्र तथा यंत्र को एक लकड़ी के तख्ते पर पीला आसन बीछा कर एक स्टील के थाली मे अष्टगंध से स्वास्तीक बनाकर उसके उपर स्थापित कर दें |फिर विधी-विधान के साथ जल, गंगाजल, दुध, दही, धी इत्यादि से भगवान महामृत्युंजय के चित्र अथवा विग्रह तथा महामृत्युंजय यंत्र का अभिषेक करें तत्पश्चात भगवान महामृत्युंजय का पूजन धुप, दीप, मदार फुल, बेलपत्र, धतुरा, अष्टगंध से पूजन करना चाहिए तत्पश्चात अपनी अभिष्ठ कामना के लिए हाथ मे जल लेकर संकल्प करें और प्रार्थना करे कि हे भगवान महामृत्युंजय मैं अपने अमुक कार्य के लिए आपके मंत्र का अनुष्ठान कर रहा हुं आप मुझे अपना आशिर्वाद तथा कृपा दृष्टि बनायें तथा मेरे अभिष्ट कामनाओं को पूर्ण करें। तत्पश्चात महामृत्युंजय मंत्र का जप करें।
महामृत्युंजय जप स्वयं द्वारा किया जा सकता है |सामान्यतया महामृत्युंजय अनुष्ठान में पार्थिव शिवलिंग का निर्माण किया जाता है किन्तु घर में पारद शिवलिंग स्थापित करके इसे स्वयं अपनी आवश्यकतानुसार संकल्प बढ रूप से किया जा सकता है |समस्त प्रक्रिया के सुचारू सम्पन्नता के लिए शुरू में योग्य विद्वान् की देखरेख आवश्यक होती है |इसके साथ यदि अनुष्ठान में मृत्युंजय यन्त्र निर्मित करके अभिमंत्रित कर लिया जाए और कवच-ताबीज में अनुष्ठानोपरांत धारण किया जाए अथवा किसी को धारण कराया जाए तो सदैव लाभ मिलता रहता है और सदैव सुरक्षा प्राप्त होती है |
महामृत्युंजय मंत्र का अनुष्ठान अलग-अलग कार्यों के लिए अलग-अलग जप संख्या निर्धारित की गयी है। महामृत्युंजय मंत्र का जप मानसिक तनाव तथा भय नाश के लिए 1100 मत्रों का जप का संकल्प करें|
जटिल रोगों से मुक्ति तथा अनिष्ट बाधाओं के निवारण के लिए 11000 मंत्रों के जप का संकल्प करना चाहिए |
अकाल मृत्यु निवारण के लिए सवा लाख मंत्र जप का अनुष्ठान करना चाहिए।
पूर्ण विधी-विधान के साभ किया गया मत्र जप अनुष्ठान पूर्ण रूप से सफलता दायक तथा समस्त प्रकार के रोग शोक भय तनाव को समाप्त करने अकाल मृत्यु निवारण करने में समर्थ है साथ ही साथ मान सम्मान सुख संपदा केश मुकदमों में सफलता संतान प्राप्ति तथा जटिल एवं असाध्य रोगों से मुक्ति दिलाने में पूर्णतः समर्थ है।
किसी भी प्रकार के शारीरिक अथवा मानसिक रोगों को महामृत्युंजय मंत्र के माध्यम से पुर्णतः समाप्त किया जा सकता है तथा रोग,भय, शोक रहित जीवन जीते हुए दिर्घायु जीवन का पुर्णं सुख प्राप्त किया जा सकता है। महामृत्युंजय मंत्र में वह अनोखा प्रभाव है जिसके माध्यम से संभावित अकाल मृत्यु का भी निवारण किया जाना संभव है। साथ ही अनेकों जटिल एवं असाध्य रोगों को भी पूर्णतः समाप्त किया जा सकता है।
मंत्र-
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः त्रयंबकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारूकमिव बन्धनात्मृत्योर्मुक्षीम मामृतात् भूर्भुवः स्वः ॐ सः जूं हौं ॐ
महामृत्युंजय मंत्र का अनुष्ठान किसी योग्य ब्राहमण से करायें यदि साधक स्वयं यह अनुष्ठान करना चाहे तो किसी योग्य गुरू अथवा मार्गदर्शक से मंत्र दिक्षा प्राप्त कर लें तथा गुरू के संरक्षण में करना चाहिए।..............................................................हर-हर महादेव
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