Tuesday, 16 July 2019

महामृत्युंजय अनुष्ठान [Mahamrityunjaya Puja]

:::::::::महामृत्युंजय अनुष्ठान ::::::::::
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भगवान शंकर के महत्वपूर्ण और श्रेष्टतम रुप है अमृतवर्षी महामृत्युंजय | शंकर के चिन्तन, मनन, पूजन और साधना से मृत्युभय को हमेशा के लिए समाप्त किया जा सकता है , इसलिए मार्कण्डेय ऋषि ने कहा है "चन्द्रशेखरमाश्रये मम किँ करिष्यति वै यमः" अर्थात जब मै चन्द्रशेखर के आश्रित हू तो यम मेरा क्या बिगाड सकता है ? दीर्घायु एवं स्थायी आरोग्य प्रत्येक मानव के लिए परम आवशयक है, इसके लिए वह प्रतिदिन प्रतिक्षण चिन्तित रहता है और विविध औषधियो तथा उपायो का सहारा लेता है, महामृत्युंजय साधना इस दृष्टि से सर्वोपरि है, जिससे साधक निरोग एवं दीर्घायु बना रहता है और उसका सारा जीवन हंसते हसते व्यतीत हो जाता है ।
मृत्यु तो एक दिन सब की होती ही है, क्योकि "जातस्य हि धुवो मृत्युः" के अनुसार जो पैदा होता है उसकी मृत्यु निश्चित है, किन्तु मृत्यु असमय मे न हो, इसके लिए ऋषि मुनियो ने सिद्धि प्राप्त कर कुछ ऐसे उपाय ढूंढ निकाले है, जिसके द्वारा अकाल मृत्यु को टाला जा सकता है, इन उपायो मे सर्वश्रेष्ट उपाय महामृत्युंजय साधना मानी गई है । भगवान शंकर विष को पचाकर अमृत को प्रदान करने वाले है, उनके विविधि रुपो मे महामृत्युंजय रुप सर्वश्रेष्ठ एवं प्रभावकारी कहा गया है-
मृत्युंजय जपं नित्यं यः करोति दिने दिने ।
तस्य रोगाः प्रणाश्यन्ति दीर्घायुस्च प्रजायते ॥
अर्थात जो प्रतिदिन महामृत्युंजय मन्त्र का जप करता है उसके सभी रोग नष्ट हो जाते है, और अकाल मृत्यु को हटाकर दीर्धायु प्राप्त करता है ।
इसलिए "रुद्रयामल" ग्रन्थ में कहा गया है -
मृत्युजस्य मन्त्रं वै जपेत यदि मानुषः ।  
कोटि वर्ष शतं स्थित्वा लीनो भवति ब्रह्मणि ।।
अर्थात जो मनुष्य महामृत्युंजय का एक बार भी जप नित्य करता है, पूर्ण आयु प्रप्ति करके अन्त मे भगवान शिव मेँ ही विलीन हो जाता है ।
साधना विधि-
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साधना मे साधक पूर्ण भक्ति से साधना प्रारम्भ करेँ, अपने सामने शिवलिँग और माहामृत्युंजय चित्र रख कर दोनो हाथो की अंजलि मेँ पुष्प लेकर भगवान मृत्युंजय का ध्यान करेँ
हस्ताभ्यां कलशद्वयामृत रसैराप्लावयनतं शिरो, द्वाभ्यां तौ दधतं मृगाक्षवलये द्वाभ्यां वहन्तं परम् ।
अंकन्यस्तकरद्वयामृतघटं कैलाशकान्तं शिवं, स्वच्छाम्भोजगतं नवन्दुमुकुटं देवं त्रिनेत्रं भजे ।।
अर्थात दो हाथो से दो अमृत घटो द्वारा अपने सिर पर अभिषेक करते हुए अन्य दो हाथो से मृग चर्म तता अक्ष माला को धारण किये हुए और अन्य दो हाथो मेँ अमृत से परिपूर्ण दो कुम्भ अपनी गोद मे रखे हुए कैलाश पर्वत के सामान गौर वर्ण, स्वच्छ कमल पर विराजमान नवीन चन्द्रमायुक्त मुकुट वाले , त्रिनेत्र , भगवान मृत्युंजय शिव का मै स्मरण करता हूं ।
इसके बाद हाथ मे जल लेकर विनियोग करेँ -
विनियोग -
अस्य श्री त्र्यम्वक मन्त्रस्य वशिष्ठ ऋषिः अनुष्टुप छन्दः त्र्यम्बक पार्वति पतिर्देवता त्रं बीजं बं शक्तिः कं कीलकं मम सर्व रोग निवृत्तये सर्वे कार्य सिद्धये अकालं मृत्यु निवृत्तये महामृत्युँजय त्र्यम्बक मन्त्रं जपे विनियोगः ।।
फिर हाथ का जल भूमि पर छोड देँ ।
ऋष्यादिन्यास
ॐ वशिष्ठ ऋषये नमः शिरसि
ॐ अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे
ॐ त्र्यम्बकं देवतायै नमः ह्रदये
ॐ त्रं बीजाय नमः गुह्ये
ॐ बं शक्तये नमः पादयोः
ॐ कं कीलकाय नमः नाभौ
ॐ विनियोगाय नमः सर्वाँगे
करन्यास
ॐ त्र्यम्बकं अंगुष्ठाभ्याम नमः
ॐ यजामहे तर्जनीभ्यां नमः
ॐ सुगन्धिं पुष्टिर्वधनम् मध्यमाभ्यां नमः
ॐ उर्वारुकमिव बन्धनात् अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ मृत्योर्मुक्षीय कनिष्ठकाभ्यां नमः
ॐ मामृतात् करतलकरपृषठाभ्यां नमः
ह्रदयन्यास
ॐ त्र्यम्बकं ह्रदयाय नमः
ॐ यजामहे शिरसे स्वाहा
ॐ सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम शिखायै वषट्
ॐ उर्वारुकमिव बन्धनात् कवचाय हुं
ॐ मृत्योर्मुक्षीय नेत्र त्रयाय वौषट
ॐ मातृतात् अस्त्राय फट्
जप के लिए मूल मंन्त्र 
महर्षि वशिष्ठ ने महामृत्युंजय मन्त्र को 33 अक्षर का बताया है , जो उनके अनुसार 33 देवताओ और दिव्य शक्तियोँ के धोतक है, इन 33 देवताओ मे है -
8 वसु , 11 रुद्र , 12 आदित्य , 1 प्रजापति एवं 1 वषट्कार ।
ये 33 देवता प्राणियो के शरीर के भिन्न भिन्न अंगोँ मे स्थित है , इस मन्त्र के जप से ये सभी शक्तियां शरीर मे चैतन्य होकर प्राणी की रक्षा करती हैँ और शरीरगत निर्बलता , मृत्यु तथा रोगोँ को समाप्त करती है ।
माहामृत्युंजय मन्त्र --
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम ।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ।।
इस मन्त्र का एक लाख जप होना आवशयक है , जप पूरा होने के बाद दशांश हवन करना चाहिए, जिनमेँ 1. बिल्व, 2. खैर , 3. वट , 4. तिल , 5. सरसों , 6. खीर , 7. दूध , 8. दही , 9. पलास और 10. दूर्वा इन दस द्रव्यों को घी में डुबो कर मूल मन्त्र बोलकर आहुति दी जानी चाहिए और अन्त मेँ अगर किसी रोगी के लिए जप किया जाय , तो उस पर इसी मन्त्र से हवन का दसवां अंश अभिषेक करना चाहिए ।
जब प्राण अत्यन्त संकट मे हो
जीवन मे अचानक दुर्घटना आ सकती है , या कोई विशेष आपति , परेशानी , बाधा , राजभय , बीमारी या कष्ट अनुभव हो तब शुक्राचार्य प्रणीत मृतसंजीवनी विद्या से प्रेरित महामृत्युंजय मन्त्र का जप करना चाहिए , यह "मृतसंजीवनी महामृत्युंजय मन्त्र" कहा जाता है --
मृतसंजीवनी महामृत्युंजय मन्त्र -
ॐ ह्रौं ॐ जूं ॐ सः ॐ भुः ॐ स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ॐ स्वः ॐ भुवः ॐ भूः ॐ सः ॐ जूं ॐ ह्रौँ ॐ ।
यह 62 अक्षरोँ का शुक्राराधित महामृत्युंजय मन्त्र संसार का अमोघ मृत्युभय नाश करने वाला मन्त्र कहा गया है ।
दोनो मन्त्र की साधना मेँ विनियोग करन्यास, ध्यान आदि पूर्वत ही होंगे ।
मृतसंजीवनी विद्या
पुराणोँ मे प्रसिद्ध है, कि महर्षि शुक्राचार्य को अमृत सिद्धि प्राप्त थी , यह मृतसंजीवनी विद्या मृत्युंजय मन्त्र एवं गायत्री मन्त्र के योग से बना है ।..........................................................हर हर महादेव

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