श्मशान साधना [[SHAMSHAN SADHNA]]
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तंत्र जगत में श्मशान साधना एक जाना पहचाना और महत्वपूर्ण नाम है |यह एक विशिष्ट साधना पद्धति है ,जिससे अति शीघ्र और अति शक्तिशाली शक्तियां प्राप्त की जाती हैं |समाज के कुछ वर्गों में इसके सम्बन्ध में अनेक भ्रांतियां भी हैं ,किन्तु
यह भी प्रकृति की शक्ति की ही एक विशेष साधना पद्धति
है |श्मशान साधना तुच्छ या हेय साधना नहीं है ,ये तो जीवन में व्यक्ति को अष्ट पाशों से मुक्त करने वाली साधना है |श्मशान में साधना कर व्यक्ति भय से रहित हो जाता है और उसे ऐसी दृढ़ता मिल जाती है जिससे की वह सारे विश्व में कहीं पर भी निर्द्वंद भ्रमण कर सकता है |भूत प्रेत उसके गुलाम हो जाते हैं ,जिनके माध्यम
से व्यक्ति संसार का कोई भी काम कर सकता है ,ये अलग बात है की साधारण या कमजोर आत्मबल वाले साधक ऐसी साधनाओं में बैठने के पात्र नहीं होते
जब साधक अपने ईष्ट के प्रत्यक्ष साक्षात्कार का संकल्प ले लेता है तो उसे इस साधना का अवलंबन लेना ही पड़ता है |tantra में भय से भागा नहीं जाता और ना ही उसे दबाया जाता है ,बल्कि उसे स्वीकार कर उसपर विजय पाई जाती है |याद रखिये यदि आप श्मशान में एक बार भी पूर्ण रूपें साधना कर लेते हैं तो काम ,भय ,जुगुप्सा ,घृणा ,मोह ,अपने आप ही आपके सामने परास्त हो जाते हैं |जीवन की निसार्ता का बोध और आत्मज्ञान का अनुभव इस साधना के बाद ही होता है और tantra के पांच पीठों में से ये एक अनिवार्य पीठ है |प्रकारांतर से श्यामा
साधना का ये पूर्वाभ्यास ही है ,जिसके बाद ही गुरु आपको tantra के गूढ़ रहस्यों की चाबी प्रदान करते हैं |तो क्यों न गुरु आज्ञा से इस साधना को संपन्न
कर अपने सदगुरुदेव के गौरव पताका को हम और उचाईयों पर लहरायें |हा एक बात अवश्य ध्यान में रखने की है की इस साधना को गुरु निर्देशन में ही करना चाहिए |
श्मशान के प्रकार
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श्मशान १० प्रकार
के होते हैं --सफेदा ,यमदंड ,सुकिया ,फुलिया ,हल्दिया ,कामेदिया ,किकदिया ,मिचमिचिया ,सिलासिलिया ,पिलिया ,,,|ये १० नाम उन १० शक्तिशाली प्रेत शक्तियों के हैं जो की शमशान साधना के समय आपके उग्र मन्त्रों को अपनी शक्ति से जाग्रत
करते हैं |इन्ही प्रेत शक्तियों के बल के द्वारा
श्मशान की एकांतिकता में अभिचार
कर्म ,भूत-प्रेत ,पिशाच ,बेताल ,भैरव ,आदि के मंत्र सिद्ध किये जाते हैं |इसे ही कहीं कहीं मशान भी कहा जाता है ,कहीं सुनने में आता है की मशान जगाया जा रहा है तो उसका आशय यही शक्तिशाली
श्मशानिक प्रेत शक्तियों से होता है |
शमाशान के अधिष्ठाता धूम्रलोचन को माना जाता है जिनका स्वरुप घनश्याम ,भयानक ,दीर्घ देह ,बड़े बड़े केश और सघन बड़ी लोम्राशी ,,हाथ में वज्र और पाश ,नग्न पाद ,चमड़े की लंगोट धारण किये हुए है |प्रेत पिंड ,चिता अग्नि से पकता शव का मांस -मज्जा इनका भोजन है |
शुक्ल पक्ष तथा कृष्ण पक्ष की अष्टमी ,चतुर्दशी ,पूर्णिमा ,अमावस्या ,शनिवार ,मंगलवार ,तिथि-वार के संयोग में श्मशान साधना अधिक की जाती है ,यद्यपि
अघोरी-कापालिक-सिद्ध के लिए ऐसी कोई मुहूर्त महत्व नहीं रखता |यह मुहूर्त सामान्य साधकों के लिए शीघ्र सफलतादायक माने जाते हैं |श्माशान में भोग में आमिष अथवा निरामिष दोनों का ही प्रयोग होता है जिनके विभिन्न अवयव अपनी सुविधा के अनुसार
उपयोग किये जाते हैं |विशेष साधनाओं में विशेष भोग जो निश्चित होता है लगाया जाता है जिससे सफलता बढती है |श्मशान में प्रवेश
करते समय गुरु ,गणेश ,बटुक ,योगिनी ,मात्रिगणों से अनुमति
ली जाती है |सभी श्मशान में व्याप्त शक्तियों को नमस्कार कर साधना प्रारम्भ किया जाता है |साधक आसन पर बैठकर क्रमशः श्मशान
अधिपति को पूर्व में ,भैरव को दक्षिण में ,कालभैरव को पश्चिम में ,तथा महाकाल
को उत्तर में पाद्यादी देकर उनका पूजन कर भोग- बलि आदि देता है |यदि चिता का प्रयोग कर रहा हो तो कालरात्री ,काली तथा महाकाली के घोर मंत्र पढता हुआ भोग समर्पित करता है |तत्पश्चात भूतनाथ को बलि प्रदान कर वीरार्दन मंत्र से चतुर्दिक रक्षा चक्र का निर्माण करता है |इसी मंत्र के बाद ही साधक स्वयं भैरव स्वरुप
हो जाता है और विघ्न आदि उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाते |
इसके बाद साधक अपने गुरु द्वारा
निर्दिष्ट मंत्र का जाप करता है तथा अपने प्रयोजन को सिद्ध करता है |अघोर साधना ,काल भैरव साधना ,श्मशान जागरण साधना ,आसन कीलने की साधना ,उग्र काली साधना ,५२ भैरव साधना ,महाउग्र तारा साधना ,श्मशान काली साधना ,मरघट चंडी साधना ,तांत्रिक षट्कर्म आदि श्माशान में की जाने वाली प्रमुख
साधनाएं है |इनके अतिरिक्त वीर साधन एक अति महत्वपूर्ण साधना है |यह तो नितांत सत्य है की जो साधनाएं सौम्य रूप में बहुत लम्बा समय सिद्ध होने में लगाती हैं वही शमाशान में तीव्र गति से और शीघ्र सिद्ध हो जाती है |इसका कारण यह होता है की श्मशान
में अधिकतर
उग्र शक्तियों की साधना की जाती है जिनकी ऊर्जा की वहां अधिकता होती है ,साथ ही साधक के भाव भी साहसी और उग्र होते हैं जिससे आसानी से सम्बंधित ऊर्जा साधक से जुड़ जाती है |तामसिक वस्तुओं -प्रयोगों की ऊर्जा अतिरिक्त सफलता देती है |
आज साधक के लिए वातावरण इतना अनुकूल नहीं है जितना पहले हुआ करता था ,ऊपर से सामाजिक व् कानूनी नियम इतने जटिल हो गए हैं की साधक चाह कर भी इन साधनाओं को मजबूरीवश ठीक से कर नहीं पाता |ऐसे में गुरु की भूमिका सर्वाधिक महत्व पूर्ण हो जाती है ,जिनके पास वास्तविक शक्तियां हों और जो शक्तिपात की क्षमता रखते हों |चिता साधना ,श्मशान जागरण जैसी कुछेक साधनाएं बिना श्मशान के तो संभव नहीं हैं किन्तु अन्य साधनाए गुरु कृपा से शांत नीरव स्थानों अथवा अन्यत्र नदी किनारों ,जंगलों में संभव हैं |गुरु की क्षमता और उनकी चाहत पर बहुत कुछ निर्भर करता है |अगर गुरु शक्तिपात द्वारा शक्ति जागरण कर देता है तो श्मशान साधना से सम्बंधित साधनाएँ अन्यत्र भी सिद्ध की जा सकती हैं |यद्यपि आज के समय में गुरु का मिलना ही सबसे कठिन काम है साधना से भी कठिन |जो वास्तविक गुरु हैं वह समाज से दूर होते हैं और जो समाज में होते हैं तथा विभिन्न दावे करते हैं अथवा जिनके यहाँ भीड़ इकट्ठी रहती हैं ,अथवा जो मार्केंटिं -व्यवसाय कर रहे हैं उनमे शक्ति है नहीं कहा जा सकता |..................................................................हर-हर महादेव
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