उपासना /साधना में तकनीक जानें औए सफलता पायें
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लगभग कुछ
प्रतिशत नास्तिक लोगों को छोड़ दें तो अधिकतर विश्व ईश्वरीय शक्ति में विश्वास करता
है और किसी न किसी प्रकार इनकी आराधना करता है ,इन्हें प्रसन्न करने का ,अनुकूल
करने का प्रयत्न करता है |ईश्वरीय उर्जा को अनुकूल करने और प्रसन्न करने का सबसे
सरल मार्ग प्रार्थना और उसके बाद पूजा को लोग मानते हैं तथा यह दोनों ही मार्ग
प्रत्येक धर्म ,सम्प्रदाय ,समुदाय में पाए जाते हैं ईश्वर किसी भी नाम का हो |पूजा
करना और प्रार्थना करना ईश्वर को पाने का सरल मार्ग तो है किन्तु प्रार्थना ही ऐसा
माध्यम है जहाँ मन की भावनाएं चलती हैं जबकि पूजा एक तकनिकी क्रिया है जहाँ
गलतियाँ होने पर या तो ईश्वरीय उर्जा मिलती नहीं या तो उसके विपरीत हो जाने की भी
कभी कभी सम्भावना होती है |ध्यान दीजिये ईश्वरीय शक्ति की अनुकूलता के चार मार्ग
हैं ,प्रार्थना अर्थात आराधना ,पूजा ,उपासना और साधना |इनमें मात्र आराधना यानी
प्रार्थना ही बिना तकनीक के मात्र मन से होती है अन्य सभी में विशेष पद्धतियाँ
,तकनीकियाँ ,उपादान होते हैं और सबका एक निश्चित क्रम और संयोजन होता है ,जिनमे
व्यतिक्रम उर्जा में विक्षोभ उत्पन्न कर सकता है और लाभ की जगह हानि भी दिख सकती
है |आप कह सकते हैं की पूजा में कौन सी तकनीक होती है ,यह तो सभी जानते हैं
,किन्तु हम कहना चाहेंगे की यहाँ तकनीक है |आपका शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाना तकनिकी
क्रिया है ,आपका विष्णु पर तुलसी चढ़ाना या देवी को पुष्प चढ़ाना तकनिकी क्रिया है
|विशेष देवता को विशेष चन्दन का तिलक ,गंध आदि अर्पित करना तकनीकी क्रिया है |पूजा
में विशेष क्रम से जल ,अक्षत ,पुष्प ,चन्दन ,धुप -दीप ,नैवेद्य चढ़ाना तकनीकी
क्रिया है |हवन में विशेष लकड़ी और विशेष सामग्री का प्रयोग अलग अलग देवता के लिए
अलग अलग एक तकनीकी क्रिया है |
अभी भी हो सकता है आपको इनमे कोई तकनीक न
दिखती हो क्योंकि इनकी आपको आदत है और इसके पीछे का विज्ञानं आपने नहीं सोचा है
,तो हम आपको बताना चाहेंगे की विश्व के हर वस्तु में अपनी अलग उर्जा होती है और जब
आप पूजा करते हैं तो विशिष्ट शक्ति से सम्बन्धित विशिष्ट वस्तुएं उसे समर्पित करते
हैं उसकी अनुकूलता के लिए |इन वस्तुओं की ऊर्जा इकठ्ठा होकर उस शक्ति की ऊर्जा
बढ़ाती है और उसके उस स्थान पर आने का ,उसकी ऊर्जा के उस स्थान पर इकठ्ठा होने का
वातावरण उत्पन्न करती है |इसीलिए हर शक्ति या देवता के लिए अलग अलग वस्तुएं और
सामग्रियां निर्धारित की गयी हैं |जैसे विष्णु को तुलसी ,चन्दन ,शंख ,तिल आदि
,देवी को लाल पुष्प ,शंकर को धतूरा ,बेलपत्र ,गणेश को दूर्वा ,आक आदि |अब आप
विष्णु को मदार ,धतूरा चढ़ाएंगे तो उनकी ऊर्जा संघनन में व्यतिक्रम उत्पन्न होगा
,इसी प्रकार गणेश को तुलसी या शंकर को शंख से जल चढ़ाएंगे तो ऊर्जा व्यतिक्रम होगा
क्योंकि इनकी प्रकृति के विपरीत उर्जा आप चढ़ाएंगे |इन्ही बातों को धार्मिक आधार
देते हुए इनके पीछे कथाएं बनाकर इन्हें इनको चढाने से मना किया जाता है |इन
वस्तुओं का मूल सम्बन्ध आपसे है और इनके पीछे वैज्ञानिक कारण होते हैं किन्तु सभी
लोग विज्ञानं नहीं समझ सकते अतः धार्मिक कथा बनाकर उन्हें ऐसे कार्यों से रोका
जाता है |
हम आपको बताना चाहेंगे तिलक के उदाहरण से
|आप अपने माथे पर लगातार कुछ दिन चन्दन का तिलक या लेप लगायेंगे तो उसका प्रभाव
आपके मष्तिष्क पर अलग होता है |शुद्ध चन्दन आपके विचारों और आज्ञा चक्र को
प्रभावित करेगा और आपकी सोच के साथ ही आपकी कार्यशैली में भी परिवर्तन आयेंगे |अब
आप माथे पर सिन्दूर का तिलक लगायेंगे तो उसका प्रभाव अलग होगा ,हवन भष्म का तिलक
लगायेंगे तो उसका प्रभाव अलग होगा ,चिता भष्म का लेप लगायेंगे तो उसका प्रभाव अलग
होगा क्योंकि सभी वस्तुओं में उर्जा होती है और यह अपनी उर्जा के अनुसार आपको और
आपके आज्ञा चक्र को प्रभावित कर आपकी सोच ,विचार और कर्म को प्रभावित करेंगे |साथ
ही ध्यान दीजिये जब आप कोई तिलक लगाते हैं तो विशेष ऊँगली से लगाते हैं |यह ऊँगली
उद्देश्य विशेष के साथ अलग भी हो सकती है |तिलक लगाते समय उस ऊँगली पर भी पदार्थ
लगता है और आपको शायद पाता हो की आपकी उँगलियों से आपकी उर्जा निकलती रहती है तभी
तो आप छुई मुई को छूते हैं तो वह सिकुड़ जाती है ,आप तर्जनी ऊँगली किसी काशीफल या
कुम्हडे के बतिया की ओर करते हैं तो वह सूख जाता है |यह आपकी ऊँगली की उर्जा तिलक
के पदार्थ से संयुक्त हो देवता को भी लगती है और आपके माथे पर भी लगती है जिससे
आपकी तरंगे अपना प्रभाव उत्पन्न करती हैं ,इसके साथ तिलक का पदार्थ आपकी ऊँगली की
ऊर्जा और आपके स्नायु तंत्र को भी प्रभावित करता है ,भले आपको समझ न आये पर थोडा
ही सही इसका प्रभाव होता जरुर है |नाभि पर घी का या हींग का लेप अलग अलग प्रभाव
देता है और कुछ ही मिनट में असर दीखता है उसी प्रकार यह आज्ञा चक्र और ऊँगली का
लेप भी असर करता है किन्तु इसका प्रभाव दिखने में समय लगता है |
यह एक उदाहरण
था पूजा की तकनीक का ,ऐसा ही लगभग हर क्रिया का अपना परिणाम होता है |यह सब आप
अक्सर देखते हैं तो आपने कभी सोचा नहीं किन्तु जब आप उपर के स्थिति में जैसे
उपासना और साधना की क्रियाओं में चलते हैं तो इसकी महत्ता अत्यधिक बढ़ जाती है
क्योंकि उपासना और साधना से अत्यधिक शक्ति उत्पन्न होती है तथा अत्यधिक तीव्र
प्रभाव दीखते हैं जिस कारण यहाँ गलतियों के लिए कोई स्थान नहीं होता |इसीलिए इनके
लिए हर कदम पर गुरु की आवश्यकता होती है |गुरु की आवश्यकता इस लिए नहीं होती की वह
मंत्र देता है ,अपितु गुरु की आवश्यकता इसीलिए होती है की वह इन्ही तकनीकियों को
बताता है |कब कहाँ क्या किया जाना चाहिए और क्या नहीं किया जाना चाहिए |पूजा में
बेलपत्र की जगह तुलसी से कम नुकसान होगा ,साधना में गलत मुद्रा प्रयोग या मंत्र
में एक उच्चारण दोष अनर्थ कर देगा |साधना आदि में तो हर कदम पर तकनीकिया ही
तकनीकियाँ हैं और सबके पीछे गहन विज्ञान होता है ,जिसमे गलती बिल्कुल भी क्षम्य
नहीं होती |बहुत से लोग कहते हैं की देवी -देवता भावना देखते हैं ,नियम नहीं तो हम
उनसे कहना चाहेंगे ,भावना मात्र प्रार्थना में ही चलती है |पूजा ,आराधना ,उपासना
और साधना में जहाँ कहीं भी आप उपादान या पदार्थ का उपयोग करते हैं वहां ऊर्जा
विज्ञानं के नियम लागू हो जाते हैं और प्रत्येक देवी देवता ऊर्जा स्वरुप है अतः
यहाँ भावनाएं गौण हो जाती हैं ऊर्जा रूप और क्रियाएं मुख्य हो जाती हैं |इसी ऊर्जा
विज्ञान के अनुसार एक तांत्रिक १० मिनट की क्रिया कर सफलता पा जाता है किसी
उद्देश्य में और कोई सामान्य व्यक्ति वर्षों प्रार्थना करता रह जाता है |
महाविद्या
का साधक हो अथवा कुंडलिनी का साधक हो ,यदि वह अपनी साधना में सभी नियमों का पालन
करने के साथ ही तकनीकों का समुचित प्रयोग करे तो सफलता जल्दी मिलती है |यदि तकनीक
नहीं जानता तो उसकी भी स्थिति वैदिक कर्मकांडी अथवा सामान्य मत्र साधक सी हो जाती
है |विभिन्न रसायनों ,विशिष्ट लेपों ,चुम्बक और रत्नों का प्रयोग स्थान विशेष पर
प्रक्रिया विशेष के साथ करे तो प्राप्त होने वाली और उत्पन्न होने वाली ऊर्जा की
मात्रा कई गुना बढ़ जाती है |यदि साधक को बेहतर निर्देशन मिल रहे और ऊर्जा समायोजन
,परिवर्तन की जानकारी है तथा इन्हें संभालने की क्षमता है तो उसे सफलता अवश्य
मिलती है तथा अति शीघ्र मिलती है |चक्र जागरण अथवा शक्ति प्राप्ति अवश्य होता है
वह भी इतनी जल्दी की साधक अचंभित हो सकता है |किन्तु यह प्रक्रिया अत्यधिक ऊर्जा
उत्पन्न करती है जिससे ऊर्जा के न संभलने का खतरा भी उत्पन्न होता है |ऊर्जा
असंतुलन अथवा उसके न संभलने पर वह विक्षोभ उत्पन्न कर सकती है जिससे जो पाया है
पहले वह भी जाने का खतरा हो सकता है |इसीलिए यहाँ कदम कदम पर गुरु की जरूरत होती
है |अधिकतर महाविद्या अथवा मंत्र साधक वर्षों तक मंत्र जपते रहते रहते हैं किन्तु
उन्हें परिणाम नहीं दिखता क्योंकि या तो उन्हें गुरु का समुचित निर्देशन नहीं मिल
रहा होता या ऐसे गुरु से मंत्र ले लेते हैं जो मात्र आडम्बर करके व्यावसायिक मंत्र
दाता होते हैं या प्रवचन करने वाले जिन्हें खुद तकनीकियों की जानकारी नहीं होती
|महाविद्या ,या शक्तियाँ या shiv .भैरव
,गणेश आदि तंत्र के देवता है जहाँ तकनीकियाँ ही मुख्य होती हैं अतः यहाँ योग्य
तंत्र गुरु चाहिए होता है |
जिन्होंने पहले अनेक साधनाए ,उपासनाएं
की हों किन्तु उन्हें कुछ न समझ आया हो अथवा उन्हें लगता हो की उपयुक्त परिणाम
नहीं मिले वह योग्य गुरु के मार्गदर्शन में उपयुक्त तकनीकियों का प्रयोग करें तो
सफलता अवश्य मिलती है वह भी दिखाई देती है |परिवर्तन अवश्य आते हैं |काली आदि के
साधना में ऐसे तकनीकी प्रयोग बहुत तीब्र प्रभाव देते हैं जिसके कारण इनमे हर कदम
पर मार्गदर्शन की आवश्यकता ,शरीर की सबलता की आवश्यकता ,और उर्जा नियंत्रण के साथ
ही मानसिक परिपक्वता की आवश्यकता अधिक होती है ,वर्ना काली आदि उग्र शक्तियां पतन
के रास्ते पर धकेल सकती हैं |वास्तव में वह नहीं धकेलती ,उनकी ऊर्जा न संभलने पर
साधक के पतित ,भ्रष्ट ,उन्मादग्रस्त होने के खतरे अधिक होते हैं जिससे उसका अहित
हो जाता है |इसी तरह तंत्र द्वारा कुंडलिनी साधना अर्थात भैरवी साधना में पदार्थों
,वस्तुओं का उपयोग अतिरिक्त ऊर्जा उत्पन्न करने के साथ ही चक्र जागरण में सहायक
होता है किन्तु यहाँ और भी अधिक नियंत्रण की आवश्यकता होती है |
बड़े बड़े पूजा ।जप ।अनुष्ठान और बड़ी मन्त्र अथवा पाठ संख्या महत्वहीन है जब तक पूर्ण नाद ध्वनि। भावना का जुड़ाव ।दृश्यों का काल्पनिक चिंतन ।आचरण और भाव की शुद्धता। वस्तुओं प्रयोज्य पदार्थों का देवता की ऊर्जा से साम्य। शारीरिक स्थिति की देवता की ऊर्जा से अनुकूलता। आ रही ऊर्जा की स्वीकार्यता की स्थिति न हो ।आपका भाव अलग हो और देवता का भाव अलग हो तो देवता की उर्जा आपसे सामंजस्य नहीं बना पाएगी और आपसे या तो जुड़ेगी नहीं या आकर भी पूर्ण लाभ नहीं देगी |आपने पूजा में गलत वस्तुएं चढ़ा दी तो उर्जा
प्रतिकर्षण होगा भले आप मंत्र से बुला रहे |ऊर्जा आकार भी वापस वातावरण में बिखर
जायेगी |आपको प्राण प्रतिष्ठा ,हवन की तकनीक का ज्ञान नहीं तो आपके संकल्प पूरे
होने मुश्किल हैं |15 मिनट अथवा आधे घण्टे की पूर्ण तकनीकी ज्ञान के साथ की गई पूजा ।आराधना बेहद प्रभावकारी साधना में बदल जाती है जबकि आपको देवता की प्रकृति, गुण, ऊर्जा संरचना, अनुकूलता -प्रतिकूलता , ऊर्जा प्राप्ति और समाहित करने की विधि , आ रही ऊर्जा को खुद की ऊर्जा से मिलाने की तकनीक ,शारीरिक स्थिति, आसन ,मुद्रा, आचार -विचार ,आहार -विहार, भाव का ज्ञान हो ।कितना जप या कितनी देर पूजा साधना की कोई महत्व नहीं रखता ।कितनी देर सही तरीके से किया केवल यही महत्व रखता है ।लकीर पीटने वाले अक्सर लकीर तक भी नहीं पहुच पाते ।............................................................हर-हर महादेव
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