Thursday, 18 July 2019

महाकाली कृपा प्राप्ति साधना - २


सामान्य किन्तु साहसी लोगों के लिए
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           महाकाली इस ब्रह्माण्ड की सर्वोच्च शक्ति ,जिसका नाम सुनकर भी बहुत से लोगों में भय व्याप्त हो जाता है |इनकी साधना ,उपासना कम लोग करते हैं क्योकि डरते हैं इनसे और मानते हैं की यह केवल तांत्रिकों की देवी हैं |कुछ लोग कहते हैं की महाकाली की तस्वीर और मूर्ती घर में नहीं रखनी चाहिए तो कुछ कहते हैं की इनकी उपासना गृहस्थों को नहीं करनी चाहिए क्योंकि यह विनाश की देवी हैं ,यह श्मशान वासिनी हैं |यह सब सत्य नहीं है ,यह समस्त ब्रह्माण्ड में व्याप्त मूल शक्ति हैं जिनके बिना तो शिव भी शव समान हैं |यह श्मशान में ही नहीं समस्त ब्रह्माण्ड में व्याप्त हैं ,यहाँ तक की आपके शरीर में सबसे मुख्य चक्र का अधिपत्य इन्हें प्राप्त है और सबसे पहले यही चक्र भ्रूण में बनता भी है |यही नव दुर्गा हैं और यही दस महाविद्या हैं |नव दुर्गा और दस महाविद्या इन्ही के स्वरूपों और गुणों का विस्तार हैं |यह विनाशक शत्रुओं ,दुर्गुणों और पापियों के लिए हैं ,भक्त के लिए तो महा कृपालु माता हैं |जब आप दुर्गा को पूज सकते हैं ,नव दुर्गा की आराधना कर सकते हैं ,दस महाविद्या को उपासित कर सकते हैं तो काली को क्यों नहीं |वही तो इन सब में भी हैं |इनकी आराधना ,उपासना भी सभी कर सकते हैं ,यह डरावनी नहीं ,यह तो महा कृपालु हैं |इनका स्वरुप आराधक के शत्रुओं के लिए डरावना है ,उनके लिए घातक है ,साधक के लिए नहीं |इनकी तो आराधना करने वाला सभी दुखों ,कष्टों से मुक्त हो जाता है ,सभी भय समाप्त हो जाते हैं उसके |
          जो सामान्य लोग हैं ,वह भी इनकी उपासना कर सकते हैं और इनकी कृपा ,शक्ति पा सकते हैं |शक्ति सबके लिए होती है ,इनपर किसी का एकाधिकार नहीं |इसे कोई भी प्राप्त कर सकता है |जिनके पास गुरु हैं ,जो दीक्षित हैं उन्हें तकनीकियों का ज्ञान होता रहता है जिससे वह सुरक्षित जल्दी कृपा पा जाते हैं और अधिक मात्रा में भी पा जाते हैं ,पर जिनके पास गुरु नहीं हैं ,जो दीक्षित नहीं हैं वह भी काली की शक्ति पा सकते हैं |अंतर बस समय और मात्रा का हो सकता है ,पर मिलता जरुर है |इसके लिए बहुत समय तक या घंटों आराधना ,उपासना करना भी आवश्यक नहीं ,कुछ मिनट भी यदि एकाग्र हुआ जाए तो इनकी कृपा और शक्ति पाई जा सकती है |यदि हम ऐसा कहते हैं तो लोगों को आश्चर्य हो सकता है ,हो सकता है कुछ लोग आलोचनात्मक भी हो जाएँ ,क्योकि बहुतेरे वर्षों साधना करते रहते हैं ,घंटों करते रहते हैं किन्तु परिणाम समझ में नहीं आता ,फिर भी स्वयं को सिद्ध समझे हुए होते हैं |सोचते हैं की बिना गुरु ,बिना तकनिकी ,बिना शास्त्रीय जानकारी यह नहीं हो सकता |ऐसे में वह लोग आलोचना भी कर सकते है ,अथवा कुछ महाज्ञानी जो लम्बे-चौड़े कर्मकांड को ही सिद्धि और साधना के सूत्र मानते हैं वह भी आलोचना कर सकते हैं |किन्तु हम फिर भी कहना चाहेंगे की काली की ऊर्जा केवल १५ से ३० मिनट प्रतिदिन के प्रयास से पायी जा सकती है |हम कोई सिद्ध नहीं हैं ,कोई सन्यासी नहीं हैं ,अज्ञानी और बेहद सामान्य श्रद्धालु  हैं किन्तु फिर भी अनुभव किया है, अपने नजदीकियों को अनुभव कराया है कि यदि हम चाहें तो काली की शक्ति प्राप्त कर सकते हैं केवल थोड़े से गंभीर प्रयास से |हमने मात्र काली सहस्त्रनाम के पाठ से काली की उस शक्ति का आभास अपने मित्रों और कष्ट में फंसे लोगों को कराया है ,जिसके लिए तांत्रिक भी तरसते हैं |जो समस्या तांत्रिक दूर ना कर पाए ,वह समस्या मात्र काली सहस्त्रनाम के पाठ से दूर हुई है |ऐसे में अगर मूल काली की शक्ति को खुद में पाने का प्रयास किया जाए तो सोचिये कितना कल्याण होगा आराधक का |[[काली सहस्त्रनाम की विधि हमने इसके पहले के अंक में ,महाकाली कृपा प्राप्ति साधना -१ या महाकाली की साधना और सिद्धि कैसे हो ,के नाम से लिखा और पोस्ट किया है |
        सामान्य काली की ऊर्जा, जिससे हमारा भौतिक जीवन सुखमय हो सके ,नकारात्मक ऊर्जा हट सके ,सफलता बढ़ सके आदि के लिए बहुत गंभीर साधना करनी पड़े ,तंत्र की गंभीर क्रियाएं करनी पड़े आवश्यक नहीं है | साधारण तौर पर महाकाली की शक्ति कोई भी, कभी भी, कहीं भी प्राप्त कर सकता है ,केवल कुछ सूत्रों ,कुछ नियमों ,कुछ निर्देशों को गंभीरता से पालन करने की जरुरत है |हम अपने इस पोस्ट में एक ऐसी महत्वपूर्ण, अति तीब्र प्रभावकारी किन्तु बेहद सरल साधना को प्रस्तुत कर रहे हैं ,जिससे किसी को भी महाकाली की अलौकिकता का आभास हो सकता है |किसी का भी जीवन बदल सकता है |कोई भी काली की ऊर्जा प्राप्त कर सकता है ,केवल कुछ मिनट के प्रयास से |हमने बहुतों को यह बताया है ,कुछ सफल हुए ,कुछ घबराकर हट गए ,कुछ नियमित न रह पाने से अथवा अत्यंत सरल पद्धति होने से मजाक समझ अविश्वास में छोड़ बैठे |कुछ इसे करके अत्यंत सफल हो गए और खुद को सिद्ध ही मानने लगे |यह है तो बहुत ही छोटा और सरल प्रयोग पर इसकी शक्ति अद्वितीय है |इससे महाकाली की शक्ति तो निश्चित रूप से प्राप्त होती ही है ,अगर एकाग्रता और लगन बना रहा तो ईश्वर साक्षात्कार अथवा प्रत्यक्षीकरण भी हो जाता है |भूत-भविष्य-वर्तमान के ज्ञान की शक्ति प्राप्त हो सकती है |किसी भी शक्ति की प्राप्ति हो सकती है ,केवल मार्गदर्शन और तकनिकी ज्ञान मिलता रहे |इस प्रयोग में किसी कर्मकांड की ,लम्बे चौड़े पद्धति की ,विशिष्ट पूजा-पद्धति की भी आवश्यकता नहीं है |कोई भी कर सकता है |हाँ एक अनिवार्य शर्त तो है आपको भयमुक्त होना चाहिए |डरपोक लोग साधना काली की तो नहीं ही कर सकते हैं |
साधना विधि ::--इस साधना को आप किसी भी शनिवार अथवा कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी से प्रारम्भ कर               
========== सकते हैं | आप नित्यकर्म और स्नान आदि से स्वच्छ हो ,ऊनि लाल अथवा रंगीन आसन पर स्थान ग्रहण करें |भगवती महाकाली का एक सुन्दर सा चित्र लें जिसमे वह तरुणी हों ,सुन्दर और सौम्य दिखें [चित्र पहले से लाकर रखे रहें ] |इस चित्र को अपने पूजा स्थान पर किसी चौकी आदि पर लाल वस्त्र बिछाकर स्थापित करें | फिर उनकी स्थापना करें |आप हाथ जोड़कर अपने ध्यान में भगवती काली जी को लायें और फिर आँखें खोलकर कल्पना द्वारा उस काल्पनिक भगवती को धीरे-धीरे लाकर चित्र में स्थापित कर दें और कल्पना करें की भगवती ने आकर उस चित्र में अपने को समाहित कर लिया है |अब उनकी विधिवत पूजा कर दें |पूजा आपको रोज सुबह करनी है किन्तु चित्र स्थापना और भगवती की मानसिक प्रतिष्ठा चित्र में एक बार ही करनी है |पूजा में सिन्दूर, लाल फूल और लौंग यथासंभव प्रतिदिन चढ़ाएं |पूजा करने के बाद आप उठ सकते हैं |इस समय इस स्थान पर अगर हत्थाजोड़ी -सियार्सिंगी अथवा हमारे द्वारा निर्मित दिव्य गुटिका /डिब्बी की भी स्थापना की जाए तो सफलता और बढ़ जायेगी |इसके बाद आप भगवती के चित्र के सामने टेनिस की गेंद के आकार की एक क्रिस्टल बाल अर्थात पारदर्शी शीशे का गोला जिसमे कोई बूँद ,दरार अथवा दाग आदि न हो उसके स्टैंड पर स्थापित करें |क्रिस्टल बाल की साइज अथवा मोटाई कम से कम दो इंच की हो यदि पूजा स्थान में छाया आदि एक ही दिशा में अधिक हो तो आप एक लाल जीरो वाट का बल्ब क्रिस्टल बाल के पीछे इस प्रकार स्थापित करें की आपके सामने क्रिस्टल बाल के बाद बल्ब न दिखे और केवल लाल प्रकाश ही बाल में नजर आये |
          अब आपको दिन में किसी भी समय का एक निश्चित समय निश्चित करना है जब आप रोज नियमित उन्हें १५ मिनट का समय दे सकें |बेहतर हो यह समय रात्री १० बजे के बाद का हो |यह समय बिलकुल एकांत का होना चाहिए ,कोई आवाज अथवा विघ्न नहीं होनी चाहिए |इसके लिए स्थान आपका शयन कक्ष भी हो सकता है अथवा पूजा स्थान अथवा कोई भी एकांत स्थान |पूजन रोज सुबह और साधना रात्री में करें |जब आप समय निश्चित कर लें की अमुक समय आप रोज साधना कर सकते हैं तो फिर उस समय और स्थान में परिवर्तन न हो |इसीलिए आपको जहाँ और जब सुविधा हो एक बार में ही चुनाव कर लें |रात्री आदि में साधना करने के पूर्व स्नान आदि करके स्वच्छ हो एक ऊनि लाल अथवा रंगीन ऊनि कम्बल अपनी सुविधानुसार स्थान पर बिछाएं |आपका आसन क्रिस्टल बाल से दो फुट की दूरी पर हो | अब एक घी का दीपक और अगर बत्ती जलाएं |इन्हें भगवती को दिखा -समर्पित कर प्रणाम करें और ध्यान से उनके चित्र को देखें | अब आसन पर आराम से सुखासन में बैठ जाएँ |आसन के चारो और पहले से सुरक्षा घेरा बनाकर रखें |इसके लिए सिन्दूर-कपूर और लौंग को चूर्णकर घी में मिला भगवती के किसी मंत्र को पढ़ते हुए आसन के चारो और घेरा बना दें और भगवती से प्रार्थना करें की वह आपकी सब प्रकार से सुरक्षा करें |[पंडित जितेन्द्र मिश्र ]
        अब आसन पर बैठ कर अपनी अपलक दृष्टि आपको क्रिस्टल बाल पर जमानी है ठीक बीचोबीच | मन में सदैव एक ही कल्पना रहे की इस क्रिस्टल बाल के लाल प्रकाश में भगवती मुझे दिखेंगी और आशीर्वाद देंगी |मन में प्रबल विश्वास रखें की वह जरुर दिखेंगी और मुझे उनकी कृपा प्राप्त होगी |इस अवधि में कोई मंत्र जप तभी कर सकते हैं जब आपको किसी सिद्ध साधक अथवा गुरु से काली का मंत्र प्राप्त हो ,अन्यथा मंत्र जप न करें |कोई भी शाबर मंत्र तो कदापि न करें |प्रक्रिया में सदैव अपने ध्यान को काली पर ही केन्द्रित करने का प्रयास होना चाहिए |यद्यपि मन बहुत भटकता है पर कुछ दिन में एकाग्रता आने लगती है और बाल में आकृतियाँ उभरने लगती हैं ,जिससे रोमांच भी होता है |कभी क्षणों के लिए भगवती भी दिख सकती हैं जो कभी किसी रूप में तो कभी किसी रूप में दिख सकती हैं |यह सब आपकी पूर्व कल्पनाओं की आकृतियाँ होंगी पर प्रयास आपको चित्र वाली देवी को ही लाने का होना चाहिए |इसके साथ ही भिन्न भिन्न लोग भिन्न भिन्न आकृतियाँ ,भिन्न दृश्य उभरते हैं |यह सब अवचेतन के चित्र होते हैं जिन्हें देखकर आप भी हतप्रभ होते रहते हैं ,किन्तु हमेश दिमाग में एक ही निश्चय रखें की हमें भगवती स्पष्ट दिखेंगी और आशीर्वाद देंगी |कुछ दिन बाद भगवती की आकृति उभरने लगती है ,क्षणों-क्षणों के लिए ,कभी कुछ कभी कुछ |फिर धीरे धीरे अनवरत प्रयास से आकृति स्थायी होने लगती है |यदि जब कभी आपकी एकाग्रता एक मिनट के लिए भी स्थायी हो जाती है अथवा एक मिनट भी भगवती स्थायी होकर रुकती हैं अथवा स्पष्ट दीखते हुए आशीर्वाद मुद्रा में आशीर्वाद देने लगती हैं आपकी साधना सफल होने लगती है |आपको अनेक परिवर्तन स्वतः नजर आने लगते हैं |एक मिनट की आत्म विस्मृति [खुद की सुध भूल जाना ] प्राप्त होते ही आप सिद्धि की शक्ति से साक्षात्कार करने लगते हैं |
         भगवती का चित्र बाल में स्थायी होना और आशीर्वाद देने का मतलब आप द्वारा उनकी ऊर्जा को वातावरण से बुलाने पर वह आ रही है और उसका सम्बन्ध आपके मष्तिष्क और अवचेतन से बन गया है |आपमें इसके साथ ही आतंरिक रासायनिक परिवर्तन भी होने लगते हैं और वाह्य भौतिक परिवर्तन भी होने लगते हैं ,क्योकि आपके आज्ञा चक्र की तरंगों की प्रकृति बदल जाती है ,उसकी क्रिया तीब्र हो जाती है |भगवती की ऊर्जा के अनुरूप भावना होने से शरीर और सोच में परिवर्तन आता है |अंगों में अथवा चक्र में स्फुरण हो सकता है | इस स्थिति में आपकी कुंडलिनी में भी स्फुरण हो सकता है |आपकी सोची इच्छाएं पूर्ण होने लगती हैं क्योकि आपकी मानसिक तरंगों में इतनी शक्ति आ जाती है की वह लक्ष्य पर पहुचकर उसे आंदोलित और आपके पक्ष में करने लगती हैं |
         जब भगवती की आकृति रोज स्थायी होने लगे तो उसे अधिकतम देर तक स्थायी रखने का प्रयास करें |कुछ दिनों के प्रयास में यह संभव हो सकता है |फिर उन्हें आप अपने मानसिक बल और मन के भावों से घुमाने का प्रयास करें ,अथवा कभी यह हाथ कभी वह हाथ उठायें ,कभी उन्हें घुमाने का प्रयास करें |एकाग्रता, लगन और निष्ठां से यह भी संभव हो जाएगा |,उनके घुमते ही आपके आसपास का माहौल भी आपकी मानसिक ईच्छाओं के साथ प्रभावित होने लगता है |यह साधना की उच्च स्थिति है |यह स्थिति आने पर समाधि की भी स्थिति संभव है अथवा भाव में डूबने पर साक्षात भगवती आपके सामने आकर खडी हो सकती हैं |आपकी कुंडलिनी जाग सकती है |आप समाधि में जा सकते हैं |आपसे भगवती का वार्तालाप हो सकता है |आपको वरदान आदि प्राप्ति की स्थिति आ सकती है |इस प्रकार इस साधना की शक्ति की कोई सीमा नहीं है |इस साधना से आप दुनिया में कुछ भी पा सकते हैं |त्रिकाल दर्शिता की क्षमता भी |सर्वत्र विजय भी ,मन के सोचने मात्र से शत्रु संहार भी |इस साधना की सबसे अनिवार्य शर्त है की आप डरपोक न हों ,आपको भयभीत नहीं होना है किसी भी स्थिति में ,क्योकि यह उग्र शक्ति है और अनियंत्रित होने पर क्षति संभव है |
        इस साधना की शुरुआत केवल  ५ मिनट से करें ,क्योकि आँखों पर बहुत जोर पड़ता है |लगातार बाल देखते हुए जब आँखों में जलन हो या अत्यधिक पानी आये तो कुछ सेकण्ड के लिए आँखें बंद कर लें किन्तु ध्यान भगवती पर ही एकाग्र रखें |फिर आँखें खोलकर क्रिस्टल में उन्हें देखने का प्रयास करें |इसे प्रति सप्ताह एक मिनट बढ़ते जाएँ और अंततः १५ मिनट तक जाए |इससे अधिक नहीं |यह पूरी प्रक्रिया ३ महीने की सामान्य रूप से है |तीन महीने में भगवती की शक्ति का अनुभव आपको होने लगता है |,यदि तीन महीने में आप सफल नहीं होते हैं तो मान लीजिये की आपके पूर्व कर्म बहुत अच्छे नहीं रहे और आपको ईश्वरीय ऊर्जा या दर्शन या आपकी मुक्ति मुश्किल है |आप में भारी कमियां हैं |आपकी एकाग्रता बहुत खराब है |आपकी श्रद्धा और विश्वास में कमियां हैं |आप बहुत ही गंभीर नकारात्मकता से ग्रस्त हैं |फिर तो आपका कल्याण केवल गुरु के हाथों ही संभव हो सकता है |यद्यपि पूर्ण साक्षात्कार की स्थिति विरले को ही मिलती है पर शक्तियां तो मिलने ही लगती हैं ,सिद्धियाँ तो प्राप्त होती ही है |यदि मंत्र और गुरु मार्गदर्शन है तो अधिक अन्यथा कुछ कम पर प्राप्ति होती जरुर है |पूर्ण प्रक्रिया की कोई समय सीमा नहीं क्योकि यह साधना है कोई अनुष्ठान ,उपासना अथवा आराधना नहीं | आप इसे करके देखें ,और नीचे लिखी सावधानी और चेतावनी पर ध्यान देते हुए साधना मार्ग पर अग्रसर हों ,हमें पूरा विश्वास है आपका जीवन बदल जाएगा ,आपको भगवती की ऊर्जा का साक्षात्कार होगा ,भले आपने कभी कोई साधना न की हो ,भले आप साधक न हों ,पर इससे आप साधक बन जायेंगे और गंभीर प्रयास से सिद्ध भी हो जायेंगे एक विशेष शक्ति के |इस शक्ति के प्राप्त होने पर इसके अनेकानेक प्रयोग हैं जिससे आप अपने परिवार का ,मित्रों का ,लोगों का भला कर सकते हैं ,उनके दुःख दूर कर सकते हैं जबकि आपका भला तो खुद ब खुद होता है |
विशेष जानकारी और चेतावनी
===================== --यह साधना कोई भी कर सकता है ,किन्तु यह तांत्रिक साधना है |मूल तांत्रिक पद्धति क्लिष्ट और गुरुगम्य होती है किन्तु इसे कोई भी थोड़ी सावधानी से कर सकता है | साधना में साधित की जा रही शक्ति शिव परिवार की और ब्रह्माण्ड की सर्वाधिक उग्र शक्ति हैं ,इनसे किसी प्रकार की हानि भी संभव है और लाभ भी |यह परम तामसिक और उच्चतम सकारात्मक शक्ति होने से इनकी साधना से जब सकारात्मकता का संचार बढ़ता है तो ,आसपास और व्यक्ति में उपस्थित अथवा उससे जुडी नकारात्मक शक्तियों को कष्ट और तकलीफ होती है ,उनकी ऊर्जा का क्षरण होता है ,फलतः वह तीब्र प्रतिक्रया करती है और साधक को विचलित करने के लिए उसे डराने अथवा बाधा उत्पन्न करने का प्रयास करती हैं |इस साधना को करते समय आपको कभी विचित्र अनुभव भी हो सकते हैं ,कभी लग सकता है की कोई आगे से चला गया ,कोई पीछे से चला गया ,कोई पीछे है ,या कमरे में है या कोई और भी आसपास है ,कभी अनापेक्षित घटनाएं भी संभव हैं |सबका उद्देश्य आपको विचलित करना होता है |
       यह सब काली नहीं करती ,अपितु आपके आस पास की नकारात्मक शक्तियां करती हैं जिससे आप साधना छोड़ दें |,कभी कभी पूजा से भी दूसरी नकारात्मक शक्ति आकर्षित हो सकती हैं |व्यक्ति के काम को बिगाड़ने और दिनचर्या प्रभावित करने का प्रयस भी यह नकारात्मक उर्जायें कर सकती हैं ,इसलिए यह अति आवश्यक होता है की साधना की अवधि में साधक किसी उच्च सिद्ध काली साधक द्वारा बनाया हुआ शक्तिशाली काली यन्त्र-ताबीज अवश्य धारण करे ,जिससे वह सुरक्षित रहे और साधना निर्विघ्न संपन्न करे |तीब्र प्रभावकारी साधना होने से प्रतिक्रिया भी तीब्र हो सकती है अतः सुरक्षा भी तगड़ी होनी चाहिए |यह गंभीरता से ध्यान दें की आप जो काली यन्त्र-ताबीज धारण कर रहे हैं वह वास्तव में काली को सिद्ध किया हुआ साधक ही अपने हाथों से बनाए और अभिमंत्रित किये हुए हो ,अन्यथा बाद में सामने खतरे या समस्या आने पर मुश्किल हो सकती है |सिद्ध अथवा साधक के यहाँ की भीड़ ,अथवा प्रचार से उनका चुनाव आपको गंभीर मुसीबत में डाल सकता है |साधना पूर्ण है ,किन्तु इसमें किसी भी प्रकार की त्रुटी होने अथवा समस्या-मुसीबत आने पर हम जिम्मेदार नहीं होंगे |गुरु का मार्गदर्शन और समुचित सुरक्षा करना साधक की जिम्मेदारी होगी |हमारा उद्देश्य सरल ,सात्विक ,तंत्रोक्त साधना की जानकारी देना मात्र है |..
जिन लोगों के पास गुरु हैं किन्तु गुरु को ही तकनिकी ज्ञान नहीं है ,जिनके पास गुरु हैं किन्तु गुरु किसी और मार्ग के अथवा सात्विक मार्ग के हैं |जिन लोगों के पास गुरु हैं किन्तु गुरु आडम्बरी हैं और मात्र पैसे को महत्त्व देने वाले हैं |जिनके गुरु तो हैं किन्तु उनके पास मार्गदर्शन के लिए समय नहीं या जिनकी प्रसिद्धि और प्रचार देखकर गुरु बना लिया है अथवा किसी कथा वाचक को गुरु बना लिया है जिनको कोई तन्त्र की जानकारी ही नहीं तो ऐसे लोगों के लिए भी हमारे पास काली साधना के रास्ते हैं |हमने इस साधना पद्धति से भी विशेष और उत्कृष्ट साधना पद्धति बनाई है उनके लिए जो साधक हैं ,साहसी हैं और तंत्र समझते हैं |किसी कारण गुरु का लाभ नहीं पा रहे किन्तु साधना करना चाह रहे |उस पद्धति को भी समय मिला तो प्रकाशित करेंगे थोड़े काट छांट के साथ क्योंकि पूर्ण तकनिकी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकती तंत्र के गोपनीयता के नियमों के अनुसार |तंत्र का मतलब तकनिकी साधना होता है जो सनातन विज्ञानं के सूत्रों पर सिद्धियाँ देता है |यह लेख इन्ही तकनिकी ज्ञान का विस्तार है जहाँ आज्ञा चक्र और विशुद्ध चक्र की ऊर्जा से काली की सिद्धि हमने बताई है |मूलाधार को तो हमने छुआ ही नहीं इस लेख में जबकि काली की वास्तविक शक्ति वहीँ होती है |वह ज्ञान केवल हमारे शिष्यों के लिए सुरक्षित है ,हम अपने शिष्यों के लिए विशेष तकनीक अलग रखते हैं चूंकि तांत्रिक तकनीके सामान्य लोगों के लिए नहीं होती |........................................................................हर-हर महादेव

Tuesday, 16 July 2019

भाग्य बदल जाएगा ,एक ग्रह का प्रभाव बदल जाए तो

एक  ग्रह सुधर जाए ,भाग्य बदल जाएगा 
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हमने अपने पिछले कई लेखों में भाग्य बदलने जैसे विषय उठाये हैं और अनेक पद्धतियों ,प्रयोगों ,क्रियाओं पर चर्चा की है |भाग्य का विषय ज्योतिष का है किन्तु इसमें परिवर्तन बिन कुंडलिनी प्रभावित किये नहीं आती |मूलतः भाग्य परिवर्तन में कुंडलिनी अथवा प्रबल उच्च शक्ति ही सहायक होती है ,किन्तु चूंकि ग्रह ही भाग्य नियंता होते हैं अतः इनसे भी भाग्य बदला जा सकता है |यह प्रक्रिया उलटी होती है |हमारे शास्त्रों में पौराणिक नायकों में से कुछ ग्रहों को नियंत्रित करते दीखते हैं तो कुछ उनसे खेलते दीखते हैं |यह कोरी कल्पनाएँ नहीं हैं |यह एक सच्चाई भी है |यदि उपयुक्त तकनीक ,मूल विज्ञान का पता हो तो यह सम्भव है |ग्रहों को कोई नियंत्रित नहीं करता ,ग्रह से कोई नहीं खेलता ,अपितु व्यक्ति विशेष के लिए ग्रहों के प्रभाव बदल दिए जाते हैं |ग्रह प्रभावों को नियंत्रित कर दिया जाता है ,उन्हें अपनी इच्छानुसार दिशा देकर लक्ष्य पूर्ती में सहायक बना लिया जाता है |इन बातों पर सोचते हुए हमने अपने ज्ञान ,चिंतन के आधार पर यह लेख लिखा है की कैसे ग्रह प्रभाव बदल हम भाग्य बदल सकते हैं |कैसे यह कार्य होता है ,कहाँ यह प्रभाव दिखाता है और कैसे परिवर्तन आते हैं |
ज्योतिष का उद्देश्य भाग्य बदलना नहीं अपितु भाग्य पढकर उसमे सुधार की सम्भावना तलाशते हुए होने वाली हानियों से बचना है |इसीलिए उपायों की अवधारणा विकसित हुई |ज्योतिषीय उपाय से भाग्य पूरी तरह बदलता नहीं अपितु परिवर्तन समय विशेष पर अथवा घटना विशेष के लिए होता है |यह बहुत कम लोग मानते हैं की ज्योतिष से ही भाग्य भी पूरी तरह बदला जा सकता है ,जबकि यह सम्भव है |यह उपाय से नहीं होता ,यह होता है ग्रह विशेष पर केन्द्रित हो जाने से |इसके लिए बहुत सूक्ष्म और गहरी ज्योतिष की जानकारी होने के साथ गहरी आध्यात्मिक तथा कुंडलिनी शक्ति की जानकारी होनी चाहिए |लोग कह सकते हैं की ज्योतिष ,ग्रह आदि से कुंडलिनी का कम सम्बन्ध होता है ,किन्तु ऐसा नहीं है ,इनका गहरा सम्बन्ध कुंडलिनी और चक्रों से होता है |कुंडलिनी और चक्रों की क्रियाशीलता पर ही मनुष्य का समस्त जीवन चलता है और यह कुंडलिनी के चक्र ग्रहों की शक्ति के अनुसार ही निर्मित और क्रियाशील होते हैं व्यक्ति विशेष के लिए |अधिकतर ज्योतिषियों को कुंडलिनी की जानकारी नहीं होती ,बहुत गहरी आध्यात्मिक जानकारी नहीं होती ,यहाँ तक की बहुत अच्छी उपायों की जानकारी भी कम को ही होती है |उपायों की कार्यप्रणाली ,तकनिकी ,क्रियाविधि शायद कोई कोई समझ पाता हो उस पर इनका सम्पूर्ण तंत्र तो लाखों में कोई एक समझता है |जो इन सब को समझता है वह नहीं कह सकता की ज्योतिष से भाग्य नहीं बदला जा सकता |
    कुंडलिनी के चक्रों की उत्पत्ति गर्भ में होती है और यह शुरू शुरू में मात्र तीन चक्रों के निर्माण से शुरू होता है |पूर्वकृत कर्मों के अनुसार जब स्थान विशेष पर ,व्यक्ति विशेष के खानदान में ,विशेष स्त्री के गर्भ में भ्रूण आता है तभी उसके आधे भविष्य का निर्धारण हो जाता है और यह निश्चित हो जाता है की किस समय वह घरती पर खुले वातावरण में आएगा और उस समय क्या ग्रह स्थितियां होंगी |आत्मा का स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त हो जाता है और वह शरीर में बंध जाती है जिसके साथ उस परिवार के लोगों के भी भाग्य जुड़ जाते हैं और उनके समेकित भाग्य के अनुसार निर्मित परिस्थितियों में उसे रहना होता है विकसित होना होता है |पिछले संचित कर्मानुसार उसके लिए सब कुछ प्रकृति द्वारा निर्मित किया गया होता है और जब जन्म लेता है तो ऐसी विशेष ग्रह स्थितियां होती हैं की उसे अपने संचित भाग्य के अनुसार भविष्य मिलता है |इन्हें पढकर ही ज्योतिष बताता है की क्या भाग्य होगा |अच्छे जानकार यह इसी आधार पर बता पाते हैं की कैसा पिछला जीवन था |भ्रूण अवस्था से लेकर जन्म तक इन्ही ग्रह स्थतियों के अनुसार व्यक्ति के सूक्ष्म शरीर का निर्माण होता है भौतिक शरीर के साथ और इस सूक्ष्म शरीर में चक्रों का निर्माण भी होता है जो रहता तो अदृश्य है किन्तु पूरे शरीर पर नियंत्रण रखता है |
        पृथ्वी के सौरमंडल में कुल सात मूख्य ग्रह हैं |चन्द्रमा का प्रभाव बहुत अधिक हने से ज्योतिष में इसे भी ग्रह ही माना जाता है |इस प्रकार आठ ग्रह होते हैं |पृथ्वी इन ग्रहों की भोक्ता होती है अतः इसे अलग करते हैं और सात अन्य मुख्य ग्रह माने जाते हैं |शरीर के सूक्ष्म शरीर में भी सात ही चक्र मुख्य होते हैं |यद्यपि अन्य बहुत से सम्बद्ध चक्र भी उसी प्रकार होते हैं जैसे अन्य नक्षत्र और ग्रह -तारे होते हैं ,किन्तु सबसे अधिक प्रभाव इन्ही सात चक्रों और ग्रहों का भी होता है |चक्रों के गुण अगर हम देखें तो यह ग्रहों से मिलते हैं भले ही इनके ईष्ट अलग -अलग हों |चक्रों और ग्रहों को मिलाकर शायद कम देखा गया है और विभिन्न पद्धतियों की सोच में अंतर होने से ईष्ट अलग हो जाते हैं |जब हम चक्रों को देखते हैं तो मूलाधार की साम्यता शनि से ,स्वाधिष्ठान की साम्यता मंगल से ,मणिपुर की साम्यता शुक्र से ,अनाहत की साम्यता वृहस्पति से ,विशुद्ध की साम्यता बुध से ,आज्ञा चक्र की साम्यता चन्द्रमा से और सहस्त्रार की साम्यता सूर्य से लगती है |इनमे अलग अलग विद्वानों की सोच से अलग अलग विचार हो सकते हैं किन्तु हमें यही उचित लगता है |
         सूर्य का प्रभाव सबसे अधिक मष्तिष्क -आँख आदि पर ही पड़ता है ,चन्द्रमा भी मन -विचार और आँख ही अधिक प्रभावित करता है ,इसलिए इनका सहस्त्रार और आज्ञा चक्र से सम्बन्ध हमें सही लगता है |बुध वाणी का कारक है और यह क्षेत्र विशुद्ध चक्र का है |बुध की अच्छाई और बुराई का प्रभाव सबसे अधिक विशुद्ध चक्र के अंगों पर ही आता है |वृहस्पति और विष्णु की पूजा पद्धति ,दिन वार ,गुण ,लक्षण लगभग समान होते हैं और विष्णु को अनाहत का अधिष्ठाता माना जाता है |वृहस्पति के गुण अनाहत से मिलते जुलते हैं और शुक्र के गुण मणिपुर चक्र से |मणिपुर चक्र को लक्ष्मी का क्षेत्र माना जाता है और जैसे प्रभाव इसकी क्रियाशीलता पर आते हैं वह शुक्र से साम्य भी रखते हैं और जब शुक्र बहुत प्रभावी होता है अथवा दुस्प्रभावी होता है तो इसके सबसे अधिक प्रभाव मणिपुर चक्र के गुणों पर ही पड़ते हैं |स्वाधिष्ठान व्यक्ति की चंचलता ,बल ,पौरुष ,साहस का क्षेत्र है जो की सब मंगल के गुण हैं |शनि के प्रभाव -दुष्प्रभाव से जो कमियां या विशेषताएं आती हैं वह सब मूलाधार से समानता रखती हैं |यहाँ की ईष्ट काली का भी सबसे अधिक प्रभाव शनी पर ही आता है |इन ग्रहों के प्रभाव का अध्ययन करने पर भी उक्त चक्रों के अनुसार ही क्रियाशीलता देखने को मिलते हैं |जब किसी विहेश ग्रह को किन्ही उपायों से बल दिया जाता है तो उससे सम्बन्धित चक्र भी अधिक क्रियाशील हो जाता है तथा उसकी औरा का रंग भी तदनुसार प्रभाव दिखाता है |
         व्यक्ति जब जन्म लेता है तो उसके जन्मसमय सात मुख्य ग्रहों में से सबसे अधिक प्रभावी ग्रह के अनुसार उसके सात मूल चक्रों में से एक चक्र अधिक क्रियाशील होता है |उस चक्र की क्रियाशीलता के अनुसार ही व्यक्ति के व्यक्तित्व और उसकी कार्यप्रणाली पर उस चक्र का सबसे अधिक प्रभाव होता है |चक्र की क्रियाशीलता देखकर तांत्रिक बताता है की अमुक चक्र सबसे अधिक प्रभावी है और ज्योतिषी बताता है की अमुक ग्रह का सबसे अधिक प्रभाव है |इसी प्रकार अन्य ग्रह -नक्षत्रों के बल अनुसार सहायक चक्रों की क्रियाशीलता निर्धारित होती है |जो उच्च स्तर के साधक हैं वह जब गहन साधना में जाते हैं तो उनके ईष्ट के अनुसार ईष्ट से सम्बन्धित चक्र अधिक क्रियाशील हो अधिक तरंगें उत्पादित करता है |चूंकि चक्र ग्रह प्रभाव और ग्रह रश्मियों की ग्राह्यता -अग्राह्यता से भी जुड़ा होता है अतः सम्बन्धित ग्रह की विशेषताएं भी बदल जाती हैं |मूल जन्म समय का ही सबसे अधिक प्रभावी वह ग्रह या चक्र हुआ तो व्यक्ति उसमे अति उच्च स्तर पर चला जाता है जिससे अन्य चक्रों और ग्रह प्रभावों का अतिक्रमण होने लगता है तथा उनके परिणाम व्यक्ति विशेष के लिए बदलने लगते हैं |यदि वह चक्र और ग्रह भिन्न हुआ मूल सक्रीय चक्र से तो एक अलग गुण बढ़ जाता है तथा तब भी यह गुण अन्य क्षेत्रों का अतिक्रमण करता है |दो गुण और विशेषताएं व्यक्ति में उत्पन्न हो जाती हैं जिससे शरीर की रासायनिक क्रियाएं बदलती हैं क्योंकि सम्बन्धित क्षेत्र की हार्मोनल ग्रंथियों पर भी इनका प्रभाव पड़ता है |साथ ही फेरोमोंस की तीव्रता और गुण भी बदलते हैं |इन परिवर्तनों से व्यक्ति के सोच ,कार्यक्षमता ,क्रियाशीलता ,बौद्धिकता ,शारीरिक क्रियाविधि ,विचार ,ग्राह्यता ,एकाग्रता में परिवर्तन आने लगते हैं ,साथ ही उसके शरीर की गंध ,औरा ,प्रभा मंडल में भी परिवर्तन आता है जिससे आसपास का वातावरण और लोग भी प्रभावित होते हैं उस गुण विशेष से |
       यह तो साधना की बात थी की ऐसा होता है ,किन्तु यदि यह देखा जाए की साधना से ईष्ट के बल से चक्र प्रभावित हो जाते हैं तथा इस परिवर्तन से सम्बन्धित ग्रह का प्रभाव भी बदल जाता है तो यदि हम ग्रह के प्रभाव को बदल दें या बढ़ा दें तो भी तो चक्र की क्रियाशीलता बदल जायेगी और सम्बन्धित ईष्ट भी प्रभावित हो जाएगा |यह उल्टा क्रम है किन्तु यह भी उतना ही प्रभावी है जितना साधना का क्रम |यहाँ बहुत अधिक विशेषज्ञता और ज्ञान की जरूरत अवश्य होगी जिसमे किसी एक क्षेत्र का महारथी कुछ नहीं कर सकता |तीन खेत्रों की जानकारी यहाँ चाहिए |ज्योतिष ज्ञान ,तंत्र ज्ञान और कुंडलिनी ज्ञान |ज्योतिष में गंभीर ज्योतिष का ज्ञान सिद्धांत -संहिता और होरा के साथ चाहिए ,जिसमे वह ग्रह की क्रियाविधि ,कार्यप्रणाली जानने के साथ यह भी जाने की कौन सी वनस्पति ,रत्न ,मंत्र ,तंत्र ग्रह के किस प्रकृति को प्रभावित करेगा ,उसकी तकनीक क्या होगी |तंत्र ज्ञान में मंत्र और वनस्पति के प्रयोग के साथ उनकी समस्त क्रिया की जानकारी होनी चाहिए ,नाद -ध्वनि -उच्चारण स्पंदन की तकनिकी जानकारी चाहिए ,तंत्रोक्त मूल मन्त्रों की समझ होनी चाहिए साथ ही ग्रहों से सम्बन्धित सभी दैवीय शक्तियों की समझ होनी चाहिए |कुंडलिनी ज्ञान में मुद्रा ज्ञान ,चक्रों ,सूक्ष्म शरीर ,आभामंडल के साथ सम्बन्धित मंत्र ,नियम ,प्रभाव ,गुण ,तकनीक की पूर्ण समझ चाहिए होगी |
         इस प्रक्रिया में जब किसी व्यक्ति की कुंडली का गहन अध्ययन कर लिया जाए और यह जान लिया जाय की अमुक ग्रह सर्वाधिक प्रभावी है तो इसके बाद जिस दिशा में परिवर्तन लाना है उस दिशा से सम्बन्धित मूल ग्रह को लक्षित किया जाता है |भाग्य कोई भी ग्रह बदल सकता है ,किन्तु हम यहाँ एक कदम और आगे जाते हुए इच्छानुसार भाग्य परिवर्तन की पद्धति पकड़ते हैं |ग्रह निर्णय करने के बाद यह देखना होगा की उस ग्रह को कैसे ऐसा बल दिया जाय की उसके कोई दुष्प्रभाव भी न आयें ,उससे उत्पन्न होने वाले कोई दुर्गुण भी न उत्पन्न हों और ग्रह भी अति बलवान हो जाए |उसके रश्मियों की ग्राह्यता की मात्र बढ़ जाए ,उसका प्रभाव बढ़ जाए और वह पूर्ण शक्ति से चक्र प्रभावित करे |यहाँ बहुत गंभीर विशेषज्ञता की जरूरत होती है |उदाहरण के लिए सूर्य के लिए पीपल की पूजा भी करते हैं ,जल भी देते हैं ,पीपल धारण भी करते हैं ,विल्व मूल धारण करते हैं ,माणिक्य ,कटैला धारण करते हैं ,सूर्य मंत्र का जप करते हैं ,सूर्य यन्त्र धारण करते हैं ,सूर्य से सम्बन्धित वस्तुओं का दान करते हैं ,सूर्य की वस्तुओं का दान कभी नहीं करते ,पीला वस्त्र अथवा लाल वस्त्र उपयोग करते हैं ,विष्णु का मन्त्र जपते हैं ,आदित्य ह्रदय पाठ करते हैं ,सूर्य गायत्री करते हैं ,नवग्रह कवच धारण करते हैं ,ताम्र प्रवाह करते हैं आदि अनेक प्रकार के उपाय किये जाते हैं |यहाँ यह देखना आवश्यक होगा की कौन सा उपाय कैसे ,कहाँ किस तकनीक पर काम करता है और सूर्य के किस गुण को प्रभावित करता है |कौन गुण बढाता या घटाता है |ग्रह बल को अधिकतम बढ़ाना है किन्तु उसके दुष्प्रभाव को रोकते हुए |
          उपरोक्त के बाद मंत्र ,वानस्पतिक तंत्र और मुद्रा आदि का कुछ ऐसा चयन करना होगा की वह सम्बन्धित चक्र पर प्रभाव डाले ,साथ ही सूर्य से भी सम्बन्धित हो |इसकी पूर्ण तकनीक ,नाद ,उच्चारण ,ध्वनि संयोजन ,उससे होने वाले प्रभाव और परिवर्तन की तकनीक -क्रियाविधि ,व्यक्ति की शारीरिक स्थिति की जानकारी होनी चाहिए |इन प्रयोगों को एक साथ समायोजित कर शुरू करने पर सम्बन्धित ग्रह का प्रभाव बढने लगता है |इस प्रक्रिया के लिए सबसे कमजोर किन्तु शुभद ग्रह सबसे अधिक उपयुक्त होता है |जब ग्रह प्रभाव बढ़ता है तो उससे सम्बन्धित चक्र पर अतिरिक्त दबाव आने लगता है |चक्र कोई ग्रंथि नहीं होते कि उन पर कोई भौतिक दबाव आये अपितु वह सूक्ष्म अदृश्य शरीर से जुड़े ऊर्जा केंद्र होते हैं |इन पर दबाव इस प्रकार आता है की जब ग्रह रश्मियों की मात्रा और ग्रह की ऊर्जा बढती है तो यह ऊर्जा एक निश्चित विशेष दिशा की तरफ चलते हुए विशेष क्षेत्र को अधिक प्रभावित करती है जिससे वह चक्र भी सम्बन्धित होता है |चक्र पर प्रभाव पड़ने पर वहां से तरंग उत्पादन बढ़ जाता है और उसकी सक्रियता तीव्र हो जाती है |चक्र की बढ़ी सक्रियता पूरे शरीर के चक्रों को प्रभावित करने लगती है और सभी चक्रों के साथ उनसे जुड़े ग्रह भी प्रभावित होने लगते हैं अर्थात ग्रहों के प्रभाव प्रभावित होने लगते हैं |जिस ग्रह पर हम कार्य कर रहे वह तो कुंडली की स्थिति के अनुसार ही अन्य ग्रहों को परोक्ष रूप से प्रभावित करेगा किन्तु जब यह चक्र की सक्रियता बढ़ाएगा तो चक्र आपस में सम्बन्धित होने से सभी ग्रहों के प्रभावों को प्रभावित करेगा |
          इस तकनीक में एक साथ कई स्तरों पर कार्य करने से मूल चक्र के साथ एक और भिन्न चक्र भी अधिक क्रियाशील हो जाता है जिससे सम्पूर्ण शारीरिक स्थिति और ऊर्जा प्रवाह बदल जाता है |बदला हुआ ऊर्जा प्रवाह मूल ऊर्जा परिपथ की प्रकृति बदल देता है |परिपथ वही होता है किन्तु वहां ऊर्जा की प्रकृति भी बदल जाती है साथ ही शक्ति भी कई गुना बढ़ जाती है |यहाँ एक और एक मिलकर दो नहीं होते ,अपितु एक और एक से ग्यारह हो जाते हैं |व्यक्ति का सबकुछ बदलने से उसका भाग्य बदलने लगता है |यह सामान्य एक दिशा के उपाय जैसा नहीं है |यह एक सम्पूर्ण प्रयोग है जो पूरा भाग्य बदल देता है |...[[लेख -पूर्णतः हमारे व्यतिगत चिंतन और ज्ञान पर आधारित है ]].................................................हर हर महादेव 

शिव की पूजा शिव बनकर करें

शिव बनकर शिव की पूजा करे
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      कल्याणकारी शिव को प्रसन्न करने के लिए मनुष्य को शिव के अनुरूप ही बनन पड़ता है ,शिव अर्थात शुभ ,शंकर अर्थात कल्याण करने वाले ,,,शंकर के ललाट पर स्थित चंद्र शीतलता और संतुलन  का प्रतीक है ,यह विश्व कल्याण का प्रतीक और सुंदरता का पर्याय है ,सर पर बहती गंगा अविरल प्रवाहित पवित्रता का प्रतीक है ,यद्यपि यह उस ब्रह्मांडीय उर्जा का भी प्रतिनिधित्व करता है जिसके गूढ़ निहितार्थ है ,,तीसरा नेत्र विवेक का प्रतीक है अर्थात विवेक से कामनाओं के कामदेव को नष्ट किया जा सकता है ,,गले में सर्पो की माला दुष्टों को भी गले लगाने की क्षमता और कानो में बिच्छू -बर्र के कुंडल कटु और कठिन शब्द सहने के परिचायक है |मृगछाल निरर्थक वस्तुओ का सदुपयोग करने और मुंडो की माला जीवन की अंतिम अवस्था की वास्तविकता को दर्शाती है |भष्म लेपन शरीर की अंतिम परिणति को दर्शाता है |भगवन शिव के अंतस का यह तत्वज्ञान शरीर की नश्वरता और आत्मा की अमरता की और संकेत करता है |शिव को नीलकंठ कहते है क्योकि इन्होने विश्व को बचाने के लिए विष पी लिया ,,इन्हें चढने वाले विल्वपत्र के तीन पत्रों लोभ -मोह -अहंकार के प्रतीक है जिन्हें विसर्जित करना उत्तम रहता है ,,शिव के गुणों को याद रख तदनुरूप स्वयं को परिवर्तित कर पूजा करने से शिव तत्त्व की प्राप्ति और कृपा संभव है ........................................................हर-हर महादेव

रुद्राष्टकम ;[ Rudrashtakam]


::::::::::::रुद्राष्टकम :::::::::::
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नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपं।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजे5हं॥1
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं।
करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतो5हं॥2
तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं। मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा। लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥3
चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालं।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं। प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि॥4
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं। अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम्।
त्रयशूल निर्मूलनं शूलपाणिं। भजे5हं भवानीपतिं भावगम्यं॥5
कलातीत कल्याण कल्पांतकारी। सदासज्जनानन्ददाता पुरारी।
चिदानन्द संदोह मोहापहारी। प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥6
 यावद् उमानाथ पादारविंदं। भजंतीह लोके परे वा नराणां।
 तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं। प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं॥7
 जानामि योगं जपं नैव पूजां। नतो5हं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यं।
जराजन्म दु:खौघ तातप्यमानं। प्रभो पाहि आपन्न्मामीश शंभो।
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये।ये पठन्ति नरा भक्तया तेषां शम्भु:प्रसीदति॥
.................................................हर-हर महादेव 

प्रदोष व्रत [ Trayodashi Vrat ]


::::::::प्रदोष व्रत [त्रयोदशी व्रत ].::::::::
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      त्रयोदशी व्रत भगवान शंकर और माता पार्वती की कृपा प्राप्ति हेतु किया जाने वाला व्रत है ,इस दिन भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा की जाती है ,,सायंकाल के पश्चात और रात्री आने से पूर्व दोनों के बीच का जो समय होता है ,उसे प्रदोष कहते है ,,प्रदोष व्रत समस्त कामनाये पूर्ण करने वाला व्रत है ,,इसे अखंड सौभाग्य प्राप्ति ,बंधन मुक्ति ,सुख प्राप्ति ,शान्ति प्राप्ति ,पापों के नाश ,रोग नाश ,संतान प्राप्ति ,आयु-आरोग्यता प्राप्ति ,शत्रु विनाश ,अभीष्ट सिद्धि हेतु किया जाता है |
 प्रत्येक वार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत का माहात्म्य अलग होता है ,कितु प्रदोष व्रत करने वाले लोगो को ग्यारह त्रयोदशी या पुरे साल की २६ त्रयोदशी पूर्ण करने के बाद उद्यापन करना चाहिए ,,,,वार के अनुसार रवि प्रदोष का व्रत करने से आयु-आरोग्यता मिलती है ,,सोम प्रदोष का व्रत करने से अभीष्ट सिद्धि प्राप्त होती है ,,मंगल प्रदोष का व्रत करने से रोगों से मुक्ति और स्वाश्य लाभ मिलता है ,,बुध प्रदोष का व्रत करने से सर्व कामना सिद्धि होती है ,,वृहस्पतिवार के व्रत से शत्रु विनाश होता है ,,शुक्रवार के व्रत से सौभाग्य -संमृद्धि -स्त्री की प्राप्ति होती है ,,और शनि प्रदोष का व्रत रखने से पुत्र प्राप्ति होती है ,,प्रदोष के दिन जो वार पड़े उस वार के अनुसार कथा पढनी और सुनानी चाहिए |
                व्रत की समाप्ति पर उद्यापन हेतु मंडप बना शिव-पार्वती की प्रतिमा स्थापित कर पूजन करे ,हवंन खीर से करे ,फिर आरती ,शान्ति पाठ करे ,,दो ब्राह्मणों को भोजन करा उनसे आशीर्वाद ले की आपका व्रत सफल हो ,यह वचन दोनों ब्राह्मण कहे |
         प्रदोष व्रत वाले दिन भोजन  करे ,अति आवश्यक होने पर फलाहार ले ,शाम में शुद्ध-स्वच्छ हो पूजन करे ,इस दिन नमक का परित्याग करे ,,,जो स्त्री-पुरुष जिस कामना को लेकर इस व्रत को करते है ,उनकी सभी कामनाये देवाधिदेव महादेव पूरी करते है ..............................................................हर-हर-महादेव

स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्र [Swarnakarshan Bhairava Stotram ]

स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्र 
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ॐ ऐं ह्रीं श्रीं आपदुध्दरणाय ह्रां ह्रीं ह्रूं अजामिलबध्दाय लोकेश्वराय स्वार्णाकर्षणभैरवाय ममदारिद्रय विद्वेषणाय महाभैरवाय नमः श्रीं ह्रीं ऐं ।
स्वर्णाकर्षण भैरवस्तोत्रम् । ( lord bhairav stotra for wealth )
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ॐ नमस्ते भैरवाय ब्रह्मविष्णु शिवात्मने ।
नमस्त्रैलोक्य वन्द्याय वरदाय वरात्मने ।। 
रत्नसिंहासनस्थाय दिव्याभरण शोभिने । 
दिव्यमाल्य विभूषाय नमस्ते दिव्यमूर्तये ।। 
नमस्तेअनेकहस्ताय अनेक शिरसे नमः ।
नमस्तेअनेकनेत्राय अनेक विभवे नमः ।। 
नमस्तेअनेक कण्ठाय अनेकांशाय ते नमः ।
नमस्तेअनेक पार्श्वाय नमस्ते दिव्य तेजसे ।। 
अनेकायुधयुक्ताय अनेक सुर सेविने ।
अनेकगुण युक्ताय महादेवाय ते नमः ।। 
नमो दारिद्रयकालाय महासम्पद प्रदायिने ।
श्री भैरवी सयुंक्ताय त्रिलोकेशाय ते नमः ।। 
दिगम्बर नमस्तुभ्यं दिव्यांगाय नमो नमः ।
नमोअस्तु दैत्यकालाय पापकालाय ते नमः ।। 
सर्वज्ञाय नमस्तुभ्यं नमस्ते दिव्य चक्षुषे ।
अजिताय नमस्तुभ्यं जितामित्राय ते नमः ।। 
नमस्ते रुद्ररूपाय महावीराय ते नमः ।
नामोअस्तवनन्तवीर्याय महाघोराय ते नमः ।। 
नमस्ते घोर घोराय विश्वघोराय ते नमः ।
नमः उग्रायशान्ताय भक्तानांशान्तिदायिने ।। 
गुरवे सर्वलोकानां नमः प्रणवरुपिणे ।
नमस्ते वाग्भवाख्याय दीर्घकामाय ते नमः ।। 
नमस्ते कामराजाययोषित कामाय ते नमः ।
दीर्घमायास्वरुपाय महामाया ते नमः ।। 
सृष्टिमाया स्वरूपाय विसर्गसमयाय ते ।
सुरलोक सुपूज्याय आपदुद्धारणाय च ।। 
नमो नमो भैरवाय महादारिद्रय नाशिने । 
उन्मूलने कर्मठाय अलक्ष्म्याः सर्वदा नमः ।। 
नमो अजामिलबद्धाय नमो लोकेश्वराय ते ।
स्वर्णाकर्षणशीलाय भैरवाय नमो नमः ।। 
ममदारिद्रय विद्वेषणाय लक्ष्याय ते नमः ।
नमो लोकत्रयेशाय स्वानन्द निहिताय ते ।। 
नमः श्रीबीजरुपाय सर्वकाम प्रदायिने ।
नमो महाभैरवाय श्रीभैरव नमो नमः ।। 
धनाध्यक्ष नमस्तुभ्यं शरण्याय नमो नमः ।
नमः प्रसंनरुपाय सुवर्णाय नमो नमः ।। 
नमस्ते मंत्ररुपाय नमस्ते मंत्ररुपिणे ।
नमस्ते स्वर्णरूपाय सुवर्णाय नमो नमः ।। 
नमः सुवर्णवर्णाय महापुण्याय ते नमः ।
नमः शुद्धाय बुद्धाय नमः संसार तारिणे ।। 
नमो देवाय गुह्माय प्रचलाय नमो नमः ।
नमस्ते बालरुपाय परेशां बलनाशिने ।। 
नमस्ते स्वर्ण संस्थाय नमो भूतलवासिने ।
नमः पातालवासाय अनाधाराय ते नमः ।। 
नमो नमस्ते शान्ताय अनन्ताय नमो नमः ।
द्विभुजाय नमस्तुभ्यं भुजत्रयसुशोभिने ।। 
नमोअनमादी सिद्धाय स्वर्णहस्ताय ते नमः ।
पूर्णचन्द्र प्रतीकाशवदनाम्भोज शोभिने ।। 
मनस्तेअस्तु स्वरूपाय स्वर्णालंकार शोभिने ।
नमः स्वर्णाकर्षणाय स्वर्णाभाय नमो नमः ।। 
नमस्ते स्वर्णकण्ठाय स्वर्णाभाम्बर धारिणे ।
स्वर्णसिंहासनस्थाय स्वर्णपादाय ते नमः ।। 
नमः स्वर्णाभपादय स्वर्णकाञ्ची सुशोभिने ।
नमस्ते स्वर्णजन्घाय भक्तकामदुधात्मने ।। 
नमस्ते स्वर्णभक्ताय कल्पवृक्ष स्वरूपिणे ।
चिंतामणि स्वरूपाय नमो ब्रह्मादी सेविने ।। 
कल्पद्रुमाद्यः संस्थाय बहुस्वर्ण प्रदायिने । 
नमो हेमाकर्षणाय भैरवाय नमो नमः ।। 
स्तवेनान संतुष्टो भव लोकेश भैरव ।
पश्यमाम करुणादृष्टाय शरणागतवत्सल ।। 
फलश्रुतिः
श्री महाभैरवस्येदं स्तोत्रमुक्तं सुदुर्लभम ।
मन्त्रात्मकं महापुण्यं सर्वैश्वर्यप्रदायकम ।। 
यः पठेन्नित्यमेकाग्रं पातकैः स प्रमुच्यते ।
लभते महतीं लक्ष्मीमष्टएश्वर्यमवाप्नुयात ।। 
चिंतामणिमवाप्नोति धेनुं कल्पतरुं ध्रुवम ।
स्वर्णराशिं वाप्नोति शीघ्रमेव स मानवः ।। 
त्रिसंध्यं यः पठेत स्तोत्रं दशावृत्या नरोत्तमः ।
स्वप्ने श्रीभैरवस्तस्य साक्षाद भूत्वा जगदगुरुः ।। 
स्वर्णाराशिं ददात्यस्मै तत्क्षणं नास्ति संशयः । 
अष्टावृत्या पठेत यस्तु संध्यायां वा नरोत्तमः ।। 
सर्वदा यः पठेत स्तोत्रं भैरवश्य महात्मनः ।। 
लोकत्रयं वाशिकुर्यादचलां श्रियमाप्नुयात ।
न भयं विद्यते नवापि विषभूतादी सम्भवम ।। 
अष्ट पञ्चाशद वर्णाढयो मन्त्रराजः प्रकीर्तितः ।
दारिद्रय दुःख शमनः स्वर्णाकर्षण कारकः ।। 
य एन सन्जपेद धीमान स्तोत्रं वा प्रयठेत सदा ।
महाभैरव सायुज्यं सो अन्तकाले लभेद ध्रुवम ।।...............................................................हर-हर महादेव 

महामृत्युंजय अनुष्ठान [Mahamrityunjaya Puja]

:::::::::महामृत्युंजय अनुष्ठान ::::::::::
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भगवान शंकर के महत्वपूर्ण और श्रेष्टतम रुप है अमृतवर्षी महामृत्युंजय | शंकर के चिन्तन, मनन, पूजन और साधना से मृत्युभय को हमेशा के लिए समाप्त किया जा सकता है , इसलिए मार्कण्डेय ऋषि ने कहा है "चन्द्रशेखरमाश्रये मम किँ करिष्यति वै यमः" अर्थात जब मै चन्द्रशेखर के आश्रित हू तो यम मेरा क्या बिगाड सकता है ? दीर्घायु एवं स्थायी आरोग्य प्रत्येक मानव के लिए परम आवशयक है, इसके लिए वह प्रतिदिन प्रतिक्षण चिन्तित रहता है और विविध औषधियो तथा उपायो का सहारा लेता है, महामृत्युंजय साधना इस दृष्टि से सर्वोपरि है, जिससे साधक निरोग एवं दीर्घायु बना रहता है और उसका सारा जीवन हंसते हसते व्यतीत हो जाता है ।
मृत्यु तो एक दिन सब की होती ही है, क्योकि "जातस्य हि धुवो मृत्युः" के अनुसार जो पैदा होता है उसकी मृत्यु निश्चित है, किन्तु मृत्यु असमय मे न हो, इसके लिए ऋषि मुनियो ने सिद्धि प्राप्त कर कुछ ऐसे उपाय ढूंढ निकाले है, जिसके द्वारा अकाल मृत्यु को टाला जा सकता है, इन उपायो मे सर्वश्रेष्ट उपाय महामृत्युंजय साधना मानी गई है । भगवान शंकर विष को पचाकर अमृत को प्रदान करने वाले है, उनके विविधि रुपो मे महामृत्युंजय रुप सर्वश्रेष्ठ एवं प्रभावकारी कहा गया है-
मृत्युंजय जपं नित्यं यः करोति दिने दिने ।
तस्य रोगाः प्रणाश्यन्ति दीर्घायुस्च प्रजायते ॥
अर्थात जो प्रतिदिन महामृत्युंजय मन्त्र का जप करता है उसके सभी रोग नष्ट हो जाते है, और अकाल मृत्यु को हटाकर दीर्धायु प्राप्त करता है ।
इसलिए "रुद्रयामल" ग्रन्थ में कहा गया है -
मृत्युजस्य मन्त्रं वै जपेत यदि मानुषः ।  
कोटि वर्ष शतं स्थित्वा लीनो भवति ब्रह्मणि ।।
अर्थात जो मनुष्य महामृत्युंजय का एक बार भी जप नित्य करता है, पूर्ण आयु प्रप्ति करके अन्त मे भगवान शिव मेँ ही विलीन हो जाता है ।
साधना विधि-
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साधना मे साधक पूर्ण भक्ति से साधना प्रारम्भ करेँ, अपने सामने शिवलिँग और माहामृत्युंजय चित्र रख कर दोनो हाथो की अंजलि मेँ पुष्प लेकर भगवान मृत्युंजय का ध्यान करेँ
हस्ताभ्यां कलशद्वयामृत रसैराप्लावयनतं शिरो, द्वाभ्यां तौ दधतं मृगाक्षवलये द्वाभ्यां वहन्तं परम् ।
अंकन्यस्तकरद्वयामृतघटं कैलाशकान्तं शिवं, स्वच्छाम्भोजगतं नवन्दुमुकुटं देवं त्रिनेत्रं भजे ।।
अर्थात दो हाथो से दो अमृत घटो द्वारा अपने सिर पर अभिषेक करते हुए अन्य दो हाथो से मृग चर्म तता अक्ष माला को धारण किये हुए और अन्य दो हाथो मेँ अमृत से परिपूर्ण दो कुम्भ अपनी गोद मे रखे हुए कैलाश पर्वत के सामान गौर वर्ण, स्वच्छ कमल पर विराजमान नवीन चन्द्रमायुक्त मुकुट वाले , त्रिनेत्र , भगवान मृत्युंजय शिव का मै स्मरण करता हूं ।
इसके बाद हाथ मे जल लेकर विनियोग करेँ -
विनियोग -
अस्य श्री त्र्यम्वक मन्त्रस्य वशिष्ठ ऋषिः अनुष्टुप छन्दः त्र्यम्बक पार्वति पतिर्देवता त्रं बीजं बं शक्तिः कं कीलकं मम सर्व रोग निवृत्तये सर्वे कार्य सिद्धये अकालं मृत्यु निवृत्तये महामृत्युँजय त्र्यम्बक मन्त्रं जपे विनियोगः ।।
फिर हाथ का जल भूमि पर छोड देँ ।
ऋष्यादिन्यास
ॐ वशिष्ठ ऋषये नमः शिरसि
ॐ अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे
ॐ त्र्यम्बकं देवतायै नमः ह्रदये
ॐ त्रं बीजाय नमः गुह्ये
ॐ बं शक्तये नमः पादयोः
ॐ कं कीलकाय नमः नाभौ
ॐ विनियोगाय नमः सर्वाँगे
करन्यास
ॐ त्र्यम्बकं अंगुष्ठाभ्याम नमः
ॐ यजामहे तर्जनीभ्यां नमः
ॐ सुगन्धिं पुष्टिर्वधनम् मध्यमाभ्यां नमः
ॐ उर्वारुकमिव बन्धनात् अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ मृत्योर्मुक्षीय कनिष्ठकाभ्यां नमः
ॐ मामृतात् करतलकरपृषठाभ्यां नमः
ह्रदयन्यास
ॐ त्र्यम्बकं ह्रदयाय नमः
ॐ यजामहे शिरसे स्वाहा
ॐ सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम शिखायै वषट्
ॐ उर्वारुकमिव बन्धनात् कवचाय हुं
ॐ मृत्योर्मुक्षीय नेत्र त्रयाय वौषट
ॐ मातृतात् अस्त्राय फट्
जप के लिए मूल मंन्त्र 
महर्षि वशिष्ठ ने महामृत्युंजय मन्त्र को 33 अक्षर का बताया है , जो उनके अनुसार 33 देवताओ और दिव्य शक्तियोँ के धोतक है, इन 33 देवताओ मे है -
8 वसु , 11 रुद्र , 12 आदित्य , 1 प्रजापति एवं 1 वषट्कार ।
ये 33 देवता प्राणियो के शरीर के भिन्न भिन्न अंगोँ मे स्थित है , इस मन्त्र के जप से ये सभी शक्तियां शरीर मे चैतन्य होकर प्राणी की रक्षा करती हैँ और शरीरगत निर्बलता , मृत्यु तथा रोगोँ को समाप्त करती है ।
माहामृत्युंजय मन्त्र --
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम ।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ।।
इस मन्त्र का एक लाख जप होना आवशयक है , जप पूरा होने के बाद दशांश हवन करना चाहिए, जिनमेँ 1. बिल्व, 2. खैर , 3. वट , 4. तिल , 5. सरसों , 6. खीर , 7. दूध , 8. दही , 9. पलास और 10. दूर्वा इन दस द्रव्यों को घी में डुबो कर मूल मन्त्र बोलकर आहुति दी जानी चाहिए और अन्त मेँ अगर किसी रोगी के लिए जप किया जाय , तो उस पर इसी मन्त्र से हवन का दसवां अंश अभिषेक करना चाहिए ।
जब प्राण अत्यन्त संकट मे हो
जीवन मे अचानक दुर्घटना आ सकती है , या कोई विशेष आपति , परेशानी , बाधा , राजभय , बीमारी या कष्ट अनुभव हो तब शुक्राचार्य प्रणीत मृतसंजीवनी विद्या से प्रेरित महामृत्युंजय मन्त्र का जप करना चाहिए , यह "मृतसंजीवनी महामृत्युंजय मन्त्र" कहा जाता है --
मृतसंजीवनी महामृत्युंजय मन्त्र -
ॐ ह्रौं ॐ जूं ॐ सः ॐ भुः ॐ स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ॐ स्वः ॐ भुवः ॐ भूः ॐ सः ॐ जूं ॐ ह्रौँ ॐ ।
यह 62 अक्षरोँ का शुक्राराधित महामृत्युंजय मन्त्र संसार का अमोघ मृत्युभय नाश करने वाला मन्त्र कहा गया है ।
दोनो मन्त्र की साधना मेँ विनियोग करन्यास, ध्यान आदि पूर्वत ही होंगे ।
मृतसंजीवनी विद्या
पुराणोँ मे प्रसिद्ध है, कि महर्षि शुक्राचार्य को अमृत सिद्धि प्राप्त थी , यह मृतसंजीवनी विद्या मृत्युंजय मन्त्र एवं गायत्री मन्त्र के योग से बना है ।..........................................................हर हर महादेव

ईशान मंत्र और नवग्रह शान्ति

::::::: ईशान मंत्र और नवग्रह शान्ति ::::::: 
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ईशान मंत्र :-ॐ ईशान सर्व विद्यानां ईश्वर सर्व भूतानां ब्रह्माधिपति र्ब्रह्मणोधिपतिर्ब्रह्मा शिवोमेऽ स्तु सदा शिवोम् ।। 
 1-इस मंत्र से 108अर्क पुष्प अथवा पत्र शिवलिंग पर चढ़ाने से सूर्य नारायण प्रसन्न होते है व भौतिक सुख प्रदान करते है। 
2-इस मंत्र के 108मंत्र जप द्वारा चंदन जल से अभिषेक करने से चंद्र देव प्रसन्न होते है तथा मानसिक शांति व सौंदर्य प्रदान करते है । 
3-इस मंत्र द्वारा 108विल्व पत्र पर चंदन की कलम से लाल चंदन द्वारा ॐलिखा शिवलिंग पर चढ़ाये मंगल प्रसन्न होते है। 
4-चिड़चिड़े के108 बीज द्वारा शिवलिंग पर चढ़ाये बुध प्रबंध की शक्ति व बुद्धि देते है। 
5-पीपल के 108 पत्र व फल इस मंत्र द्वार शिवलिंग पर चढ़ाये गुरु प्रसन्न होते व विद्या,धन,पद,सम्मान देते है। 
6-गुलर के दूध से 108जप से शिवलिंग का अभिषेक करे शुक्र सुख,वस्त्र,प्रेम प्रदान करते है। 
7-शमी के 108पत्र शिवलिंगपर चढ़ाये शनि प्रसन्न हो न्याय करे गे तथा बुरे स्वप्न आने बंद हो जाते है। 
8-दूब को 108 मंत्रसे शिवलिंग पर चढ़ाये राहु के दोष ख़त्म हो जाते है। 
9-कुश के 108मूल मंत्र से शिवलिंग पर चढ़ाने से केतु के दोष ख़त्म होता है। ..............................................................हर-हर महादेव 

महामृत्युंजय साधना [Mahamrityunjaya Sadhna]

:::::::: महामृत्युंजय साधना /अनुष्ठान ::::::::
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शास्त्रों मे उल्लेखित महामृत्युंजय साधना से संबधित कथा के अनुसार मुकुंद मुनि निःसंतान होने के कारण अत्यधिक दुखी थे परंतु उन्होंने भगवान शिव की कठिन तपस्या कर उन्हें प्रसन्न कर लिया तथा आर्शिवाद स्वरूप संतान प्राप्ति का वरदान मांग लिया परंतु भगवान शंकर ने उनके सामने एक शर्त रखी कि यदि तुम्हें बुद्धिमान, ज्ञानी, सदचरित्र तथा बुद्धिमान पुत्र चाहिए तो वह मात्र 16 वर्ष की अल्प अल्पायु होगा परंतु अज्ञानी दुर्बुद्धि चरित्रहिन संतान होने पर वह पुर्णायु प्राप्त हो सकेगा। मुकुंद मुनि तथा उसकी पत्नी ने सचरित्र सद्बुद्धि तथा ज्ञानवान पुत्र प्राप्ति का वरदान मांग लिया भगवान शंकर प्रसन्न होकर उन्हे इच्छित वरदान देकर अदृष्य हो गये। समय आने पर उनके घर में एक पुत्र का जन्म हुआ। जिसका नाम मार्कडेय रखा गया। 
मार्कडेय बचपन से ही सुन्दर तेजस्वी बुद्धिमान तथा सर्व गुण संपन्न थे। उनका लालन-पालन तथा शिक्षा-दिक्षा उचित रूप से किया गया। धीरे-धीरे मार्कडेय की ज्ञान गरिमा का प्रकाश दुर-दुर तक फैलने लगा। परंतु जल्दी ही वह समय भी आ पहुंचा जिस समय के लिए भगवान शंकर ने बालक की आयु निश्चित किया थी। तब मुनि को चिंता सताने लगी अपने पिता को चिंतित देख कर मार्कडेय ने चिंता का कारण पुछा तब मुकुंद मुनि ने अपने बेटे से सब कुछ बता दिया। अपने अल्पायु की बात सुन उन्होंने कहा कि पिता जी आप चिंता मत किजीए क्योंकि जिस भगवान शंकर ने मुझे जन्म दिया है उनका दुसरा नाम महामृत्युंजय है। तथा मुझे अपनी भक्ति एवं भगवान महामृत्युंजय की साधना पर पूर्णं विश्वास है। 
इस प्रकार से मार्कण्डेय ने भगवान महामृत्युंजय की साधना आराधना प्रारंभ कर दिया, परंतु इसी बीच उनकी जीवन अवधि समाप्त हो गई और काल उनके जीवन का हरण करने आ पंहुचा परंतु का से उन्होंने विनती कर कहा कि मुझे महामृत्युंजय स्त्रोत का पाठ .पुरा करने दे। परंतु काल के गर्व ने उन्हें ऐसा करने की अनुमति नही दी और उनके प्राणों का हरण करन करने को आतुर होने लगा तब भगवान शंकर शिवलिंग से प्रकट होकर अपने भक्त की रक्षा करने के लिए काल पर प्रहार किया जिससे काल डर कर भाग गया। इस तरह मार्कण्डेय ने महामृत्युंजय स्त्रोत का पाठ पुरा किया तब भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर उन्हे अमरता का वरदान दिया।
महामृत्युंजय साधना के माध्यम से मनुष्य अपने अकाल मृत्यु का निवारण करने के साथ ही साथ रोग-शोक, भय, बाधा इत्यादि को पूर्णतः समाप्त कर अपने जीवन को सुखी एवं सम्पन्न बना कर जीवन का पूर्णं आनंद उठा सकता है परंतु इस अनुष्ठान को पूर्ण विधी-विधान के साथ किया जाना चाहिए। यदि संभव हो तो किसी गुरू अथवा मार्ग दर्शक के दिशा निर्देशन तथा संरक्षण में करें तो ज्यादा उचित होगा।
साधना विधान
----------------- महामृत्युंजय मंत्र का अनुष्ठान महाशिवरात्री, श्रावण सोमवार, सोम प्रदोष इत्यादि शुभ मुहूर्त में प्रारंभ करना चाहिए। सर्वप्रथम साधक स्नानआदि से निवृत होकर उत्तर अथवा पूर्व दिशा की ओर मुंह कर कंम्बल के आसन पर बैठें तथा सामने भगवान महा मृत्युंजय का चित्र तथा यंत्र को एक लकड़ी के तख्ते पर पीला आसन बीछा कर एक स्टील के थाली मे अष्टगंध से स्वास्तीक बनाकर उसके उपर स्थापित कर दें |फिर विधी-विधान के साथ जल, गंगाजल, दुध, दही, धी इत्यादि से भगवान महामृत्युंजय के चित्र अथवा विग्रह तथा महामृत्युंजय यंत्र का अभिषेक करें तत्पश्चात भगवान महामृत्युंजय का पूजन धुप, दीप, मदार फुल, बेलपत्र, धतुरा, अष्टगंध से पूजन करना चाहिए तत्पश्चात अपनी अभिष्ठ कामना के लिए हाथ मे जल लेकर संकल्प करें और प्रार्थना करे कि हे भगवान महामृत्युंजय मैं अपने अमुक कार्य के लिए आपके मंत्र का अनुष्ठान कर रहा हुं आप मुझे अपना आशिर्वाद तथा कृपा दृष्टि बनायें तथा मेरे अभिष्ट कामनाओं को पूर्ण करें। तत्पश्चात महामृत्युंजय मंत्र का जप करें।
महामृत्युंजय जप स्वयं द्वारा किया जा सकता है |सामान्यतया महामृत्युंजय अनुष्ठान में पार्थिव शिवलिंग का निर्माण किया जाता है किन्तु घर में पारद शिवलिंग स्थापित करके इसे स्वयं अपनी आवश्यकतानुसार संकल्प बढ रूप से किया जा सकता है |समस्त प्रक्रिया के सुचारू सम्पन्नता के लिए शुरू में योग्य विद्वान् की देखरेख आवश्यक होती है |इसके साथ यदि अनुष्ठान में मृत्युंजय यन्त्र निर्मित करके अभिमंत्रित कर लिया जाए और कवच-ताबीज में अनुष्ठानोपरांत धारण किया जाए अथवा किसी को धारण कराया जाए तो सदैव लाभ मिलता रहता है और सदैव सुरक्षा प्राप्त होती है |
महामृत्युंजय मंत्र का अनुष्ठान अलग-अलग कार्यों के लिए अलग-अलग जप संख्या निर्धारित की गयी है। महामृत्युंजय मंत्र का जप मानसिक तनाव तथा भय नाश के लिए 1100 मत्रों का जप का संकल्प करें|
जटिल रोगों से मुक्ति तथा अनिष्ट बाधाओं के निवारण के लिए 11000 मंत्रों के जप का संकल्प करना चाहिए |
अकाल मृत्यु निवारण के लिए सवा लाख मंत्र जप का अनुष्ठान करना चाहिए।
पूर्ण विधी-विधान के साभ किया गया मत्र जप अनुष्ठान पूर्ण रूप से सफलता दायक तथा समस्त प्रकार के रोग शोक भय तनाव को समाप्त करने अकाल मृत्यु निवारण करने में समर्थ है साथ ही साथ मान सम्मान सुख संपदा केश मुकदमों में सफलता संतान प्राप्ति तथा जटिल एवं असाध्य रोगों से मुक्ति दिलाने में पूर्णतः समर्थ है।
किसी भी प्रकार के शारीरिक अथवा मानसिक रोगों को महामृत्युंजय मंत्र के माध्यम से पुर्णतः समाप्त किया जा सकता है तथा रोग,भय, शोक रहित जीवन जीते हुए दिर्घायु जीवन का पुर्णं सुख प्राप्त किया जा सकता है। महामृत्युंजय मंत्र में वह अनोखा प्रभाव है जिसके माध्यम से संभावित अकाल मृत्यु का भी निवारण किया जाना संभव है। साथ ही अनेकों जटिल एवं असाध्य रोगों को भी पूर्णतः समाप्त किया जा सकता है।
मंत्र-
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः त्रयंबकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारूकमिव बन्धनात्मृत्योर्मुक्षीम मामृतात् भूर्भुवः स्वः ॐ सः जूं हौं ॐ 
महामृत्युंजय मंत्र का अनुष्ठान किसी योग्य ब्राहमण से करायें यदि साधक स्वयं यह अनुष्ठान करना चाहे तो किसी योग्य गुरू अथवा मार्गदर्शक से मंत्र दिक्षा प्राप्त कर लें तथा गुरू के संरक्षण में करना चाहिए।..............................................................हर-हर महादेव

महाशंख  

                      महाशंख के विषय में समस्त प्रभावशाली तथ्य केवल कुछ शाक्त ही जानते हैं |इसके अलावा सभी लोग tantra में शंख का प्रयोग इसी...