Tuesday, 28 January 2020

महाशक्ति दुर्गा

दुर्गा :: संहार के साथ सृष्टि की शक्ति 
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नवरात्र ,शक्ति आराधना का पर्व ,शक्ति आराधना का समय ,शक्ति को आत्मसात करने का समय ,भगवती दुर्गा की आराधना का समय ,भगवती के विविध रूपों की आराधना का समय ,अर्थात प्रकृति की विभिन्न शक्तियों की आराधना का समय ,प्रकृति की विभिन्न शक्तियों को सम्मान देने का समय ,अर्थात मात्री शक्ति को सम्मान देने का समय ,अर्थात शक्ति के आह्वान और प्रतिष्ठा का समय होता है |लगभग हम सभी इस पर्व को एक मोटे तौर पर दुर्गा देवी की आराधना का समय के रूप में जानते हैं |हमें पता है की इस समय भगवती की आराधना करने से उनकी कृपा शीघ्र प्राप्त होने की सम्भावना रहती है ,इसलिए हम अपनी सुख-संमृद्धि-सुरक्षा-खुशहाली के लिए उनकी अपने घरों में स्थापना करते हैं ,बुलाते हैं ,आराधना करते हैं |
देवी दुर्गा मे प्रकृति की [प्रकारांतर से ब्रह्माण्ड की ]समस्त शक्तियां समाहित हैं ,ऐसा ही कथाओं में भी कहा गया है ,अर्थात यह उस मूल ऊर्जा या शक्ति का समग्र रूप हैं जिनमे सभी उर्जायें एक साथ समाहित हैं |कथा के अनुसार सभी देवी-देवता इन्हें अपनी शक्ति देते हैं ,किन्तु अन्य कथा के अनुसार सब कुछ इन्ही से उत्पन्न है ,अर्थात यह मूल शक्ति है प्रकृति की उत्पत्ति और क्रियाकलाप की |सब इन्ही से शुरू होता है और इन्ही में समाहित हो जाता है ,यह विभिन्न स्वरूपों में इनका नियमन करती हैं |
सामान्य रूप से देवी दुर्गा सुरक्षा और संहार की शक्ति है [यद्यपि अन्य शक्तियां भी इनमे समाहित है और सबकुछ करने में सक्षम हैं ],उत्पत्ति कथा संहार से जुडी है |समग्र रूप से यह समस्त असुर-दैत्यों का संहार करती हैं और पाप-व्यभिचार-अत्याचार आदि का विनाश करती हैं ,संसार में अच्छे-धार्मिक प्राणियों की सुरक्षा करती हैं |,किन्तु जब हम व्यक्तिगत रूप से देखते हैं तो पाते हैं की जो महिसासुर और शुम-निशुम्भ-रक्तबीज कथाओं में बाहर राक्षस रूप में अत्याचार कर रहे थे और भगवती को उनके संहार के लिए अवतरित होना पड़ा था ,वह सभी तो हम सब के भीतर भी हैं ,महिसासुर हम में जब उत्पन्न होता है तो माँ-बहन कुछ नहीं देखता और राह चलती बहनों के साथ अत्याचार कर बैठता है ,रक्तबीज हर जगह उत्पन्न होते जा रहे हैं |हममे उत्पन्न होने वाला काम-क्रोध-लोभ-मोह-मद-मात्सर्य-ईर्ष्या आदि असुर ही तो हैं जो हमसे क्या क्या नहीं करवाते हैं |इन सभी का भी संहार भगवती हमारे भीतर ही कर सकती हैं ,तभी तो तंत्र कहता है की देवी दुर्गा हमारे शारीर के भीतर स्वाधिष्ठान चक्र में हैं और भीतर उत्पन्न होने वाले समस्त राक्षसों का संहार कर सकती हैं |किन्तु अपने आप न उन्होंने बाहर के राक्षसों का संहार किया था ,न भीतर के राक्षसों का करती हैं |
बाहर के राक्षसों का संहार करने के लिए देवताओं -ऋषियों ने उनसे प्रार्थना की थी तब वह अवतरित होकर संहार को उद्यत हो संसार को सुरक्षित की थी |इसीप्रकार जब हम उनका आह्वान करते हैं ,प्रार्थना करते हैं तभी वह हमारे भीतर जागती हैं और हमारे भीतर के राक्षसों का संहार करती हैं ,इसके लिए उन्हें जगाना पड़ता है ,बाहर भी भीतर भी ,उन्हें बुलाना पड़ता है ,प्रार्थना करनी पड़ती है |वह शरीर में ही हैं जैसे वह ब्रह्माण्ड में थी ,किन्तु देवताओं के बुलाने पर ही अवतरित हुई ,उसी तरह शरीर में होने पर भी उन्हें जगाना पड़ता है तभी वह सक्रिय होती हैं |नवरात्र का पर्व उन्ही को जगाने का समय है ,बुलाने का समय है जिससे वह अन्दर और बाहर के राक्षसों और राक्षसी प्रवृत्तियों का नाश करें और हमारा कल्याण हो |प्रकारांतर से यह समय स्वाधिष्ठान चक्र से सम्बंधित शक्ति की साधना का भी है |
नवरात्र का समय ऐसा होता है की सूर्य की कोणीय किरने और ऊर्जा एक विशेष स्थिति में होती हैं, ग्रहीय स्थितियां विशिष्ट होती हैं ,पृथ्वी की स्थिति और विशेष रूप से भारतीय प्रायद्वीप की स्थिति और वातावरण विशिष्ट होती है ,जिसके अनुसार इस समय का निर्धारण शक्ति के इस स्वरुप को उपासित-साधित-जागृत करने के लिए चुना गया है |मूलतः यह शक्ति उग्र है ,और उग्र ही उग्र को काट सकता है अतः तामसिक और कष्टकारक शक्तियों को नष्ट करने के लिए उग्र का ही सहारा लेने के लिए यह साधना का समय होता है |बाहरी और आतंरिक तामसिक शक्तियां इस वातावरण में उग्र होती हैं अतः उनका शमन भी उग्रता से ही हो सकता है ,इसलिए दुर्गा को जगाया जाता है |दुर्गा संहार करके ,प्रकृति को नियमित करके तब नया निर्माण का मार्ग प्रशस्त करती हैं |प्रकृति के विरुद्ध होने वाले को नष्ट कर प्रकृति का नियमन करती हैं |इनकी उपासना बाह्य रूप से अत्याचार से मुक्ति के साथ ही आतंरिक दोषों से मुक्ति के लिए भी होती है |जैसा सभी साधनाओ के मूल में आतंरिक दोषों से मुक्ति और उत्थान ही होता है वैसे ही इनकी साधना में भी मूल तत्त्व आतंरिक दोषों से मुक्ति और समग्र उत्थान ही होता है ,साधना में सदैव आतंरिक दोषों से मुक्ति की प्रार्थना का भाव होना चाहिए ,तभी यह वास्तविक लाभप्रद होंगी |केवल बाहरी सुरक्षा और अत्याचार से मुक्ति ,धन-संमृद्धि -संपत्ति-सुख की मांग करते रहेंगे और आतंरिक उन्नति की तारा ध्यान नहीं होगा तो पूर्ण फल प्राप्ति संदिग्ध हो सकती है |
सदैव ध्यान देने योग्य है की कोई भी शक्ति खुद आकर कुछ नहीं करती ,आपकी वह प्रत्यक्ष सहायत बहुत उच्च स्तर पर आपके पहुचने ही कर सकती है,सामान्यतः वह आपकी क्षमता में ही परिवर्तन करती है |जब उसका अवतरण होता है तो वह आपके शरीर में ही स्थान ग्रहण करती है ,फलतः आपकी क्षमताओं में परिवर्तन हो जाता है और आप सम्बंधित समस्या से अपने कर्मो से मुक्त होते हैं ,वह इस प्रकार क्षमता परिवर्तन कर आपकी अप्रत्यक्ष सहायत ही करती है |अतः उसकी साधना के समय सदैब आतंरिक भावों और दोषों से मुक्ति के साथ अपने शरीर में स्थान ग्रहण करने की भावना होनी चाहिए |...............................................................हर-हर महादेव 

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