:::::::::::::::अगिया बेताल ::::::::::::::::
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बेताल के बारे में हम सबने बहुत कुछ सुना है |विक्रम-बेताल की कहानियां बच्चे बच्चे तक ने सुने हैं |इन्ही बेताल में एक सबसे उग्र शक्ति अगिया बेताल की होती है |यह पुरुषात्मक शक्ति है जो खुद कहीं हस्तक्षेप नहीं करती |इसके सिद्ध होने पर यह बहुत उच्च स्तर के साधक को भी पराजित कर सकता है और चूंकि यह उच्च शक्ति होती है अतः मंदिर आदि तक में साधक के साथ आती-जाती है |यह प्रकृति की स्थायी शक्तियों में से एक है और इसे नष्ट नहीं किया जा सकता |या तो यह साधक के वशीभूत हो उसके मनोरथ पूर्ण करता है या निर्लिप्त रहता है प्रकृति में |इससे उच्च साधक या शक्ति के इसके विरुद्ध क्रिया करने पर यह हट जाता है या अदृश्य हो जाता है किन्तु यह नष्ट नहीं होता ,स्थान बदल देता है और अपने मूल ऊर्जा रूप [तरंगों] में आ जाता है |
अगिया बेताल वस्तुतः उग्र मानसिक शक्ति और काली की संहारक या आक्रामक शक्ति का एक संयोग है जो काली की शक्ति के अंतर्गत आता है |वामतंत्र के अनुसार इसे रुद्रकाली कहा जाता है |अगिया बेताल की साधना का अत्यधिक विस्तार सिद्ध परम्परा द्वारा हुआ ,कहा तो यहाँ तक जाता है की इनका अन्वेषण भी सिद्ध परंपरा में हुआ ,किन्तु चूंकि यह प्रकृति की स्थायी शक्ति है अतः रही तो पहले भी होगी हाँ नाम -पूजा पद्धति -प्रयोग आदि भिन्न रहे हो सकते हैं |यह काली की संहारक शक्ति की उग्र मानसिक शक्ति से भाव सिद्धि है |इस भाव की सिद्धि होने पर आक्रामक भाव की शक्ति अत्यंत प्रबल हो जाती है |अगिया बेताल सभी प्रकार के मनोरथ पूर्ण करता है |साधक के लिए साधना के समय वह प्रहरी का काम करता है और किसी भी अन्य आसुरी शक्तियों के विघ्न को या किसी दुष्ट साधक द्वारा प्रतिस्पर्धा में किये गए तांत्रिक अभिचार की शक्तियों को नष्ट कर देता है |अगिया बेताल दूसरों को दिखाई नहीं देता ,पर साधक उसकी प्रत्यक्ष अनुभूति करता है और वह अनुभूत करता है की वह क्रिया कर रहा है |अगिया बेताल अदृश्य होकर सदा साधक की सहायता करता है ,पर वह शिव ,सरस्वती ,गणेश आदि सात्विक देवों के मंदिर में साधक के साथ होता है |अगिया बेताल में मधुरता का भाव नहीं है ,इसलिए इसका प्रयोग कामक्रीड़ा आदि के साधन जुटाने में नहीं किया जाना चाहिए |यदि ऐसा किया जाता है तो वह स्त्री जिसके साथ क्रीडा करेंगे आपसे बुरी तरह भयभीत हो जायेगी और भयभीत नारी से कामक्रीड़ा करना तंत्र शास्त्र में लाश के साथ क्रीडा करने के समान है |
अगिया बेताल की साधना की कई पद्धतिया विक्सित हैं किन्तु हैं सभी उग्र ही |इसकी साधना घर में नहीं हो सकती |इसके लिए श्मशान या निर्जन स्थान ही होना चाहिए |इसकी सात्विक और तामसिक दोनों प्रकार से साधना हो सकती है किन्तु भाव उग्र ही होना चाहिए |कामकलाकाली के अंतर्गत भी इसकी साधना की जाती है ,क्योकि यह मूलतः काली की ही शक्ति है ,किन्तु कामकलाकाली के अंतर्गत आने वाली साधना राजाओं इत्यादि के अधिक अनुकूल रही है ,जिसमे योद्धा के सर सहित मृत शव पर साधना की जाती है और साधना में नर चोर की बलि दी जाती है ,परिणामस्वरुप मृत योद्धा और चोर ताल बेताल हो जाते हैं |सिद्ध और नाथ परम्परा में इनकी और भी साधना पद्धतियाँ है |,सात्विक साधना में भाव के साथ उग्र सामग्रियां और योगों का भी बहुत महत्व होता है |निर्भीकता एक आवश्यक तत्व होती है |
अगिया बेताल की साधना से प्रकृति में हलचल मच जाती है |इस कारण वातावरण भयानक हो जाता है |इससे घबराकर श्मशान की प्रेतात्माएं साधक को डराती हैं |साधना के समय अग्नि के झमाके भी पैदा होकर साधक की और झपट सकते हैं |साधक को इनके भयभीत नहीं होना चाहिए और अपना काम करना चाहिए अन्यथा गंभीर हानि हो सकती है |भावुक और कोमल ह्रदय या दुर्बल आत्मबल वाले व्यक्ति को अगिया बेताल की साधना नहीं करनी चाहिए |सिद्धि तो मिलेगी नहीं हानि भी हो सकती है |यही स्थिति कामुक व्यक्तियों के लिए है |इस साधना में काम भाव पर पूर्ण नियंत्रण रखा जाता है |
अगिया बेताल के सिद्ध होने पर इसका प्रयोग बहुत सोच समझकर किया जाना चाहिए |उच्च तंत्र साधक या योगी को आप इसके द्वारा नियंत्रण में नहीं ले सकते |हाँ यदि वह दुश्मनी से वार कर रहा है तो वहां अगिया बेताल उसकी शक्ति से लड़ने में सक्षम है |गुप्त रहस्य बताने ,गड़े धन का पता बताने ,किसी क्षेत्र विशेष की रक्षा करने में अगिया बेताल का प्रयोग किया जाता है |दुर्गा के साधक पर इस शक्ति का प्रभाव तब तक नहीं होता जब तक वह अन्याय पूर्ण तरीके से किसी पर आक्रामक नहीं होता |कुश की झाड़ से दुर्गा मंत्र द्वारा अभिमंत्रित जल फेकने पर अगिया बेताल गायब हो जाता है |रूद्र के उच्च साधक के सामने बेताल की शक्ति साधकों की परस्पर शक्ति संतुलन के अनुपात में होती है |.......................................................................हर-हर महादेव
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बेताल के बारे में हम सबने बहुत कुछ सुना है |विक्रम-बेताल की कहानियां बच्चे बच्चे तक ने सुने हैं |इन्ही बेताल में एक सबसे उग्र शक्ति अगिया बेताल की होती है |यह पुरुषात्मक शक्ति है जो खुद कहीं हस्तक्षेप नहीं करती |इसके सिद्ध होने पर यह बहुत उच्च स्तर के साधक को भी पराजित कर सकता है और चूंकि यह उच्च शक्ति होती है अतः मंदिर आदि तक में साधक के साथ आती-जाती है |यह प्रकृति की स्थायी शक्तियों में से एक है और इसे नष्ट नहीं किया जा सकता |या तो यह साधक के वशीभूत हो उसके मनोरथ पूर्ण करता है या निर्लिप्त रहता है प्रकृति में |इससे उच्च साधक या शक्ति के इसके विरुद्ध क्रिया करने पर यह हट जाता है या अदृश्य हो जाता है किन्तु यह नष्ट नहीं होता ,स्थान बदल देता है और अपने मूल ऊर्जा रूप [तरंगों] में आ जाता है |
अगिया बेताल वस्तुतः उग्र मानसिक शक्ति और काली की संहारक या आक्रामक शक्ति का एक संयोग है जो काली की शक्ति के अंतर्गत आता है |वामतंत्र के अनुसार इसे रुद्रकाली कहा जाता है |अगिया बेताल की साधना का अत्यधिक विस्तार सिद्ध परम्परा द्वारा हुआ ,कहा तो यहाँ तक जाता है की इनका अन्वेषण भी सिद्ध परंपरा में हुआ ,किन्तु चूंकि यह प्रकृति की स्थायी शक्ति है अतः रही तो पहले भी होगी हाँ नाम -पूजा पद्धति -प्रयोग आदि भिन्न रहे हो सकते हैं |यह काली की संहारक शक्ति की उग्र मानसिक शक्ति से भाव सिद्धि है |इस भाव की सिद्धि होने पर आक्रामक भाव की शक्ति अत्यंत प्रबल हो जाती है |अगिया बेताल सभी प्रकार के मनोरथ पूर्ण करता है |साधक के लिए साधना के समय वह प्रहरी का काम करता है और किसी भी अन्य आसुरी शक्तियों के विघ्न को या किसी दुष्ट साधक द्वारा प्रतिस्पर्धा में किये गए तांत्रिक अभिचार की शक्तियों को नष्ट कर देता है |अगिया बेताल दूसरों को दिखाई नहीं देता ,पर साधक उसकी प्रत्यक्ष अनुभूति करता है और वह अनुभूत करता है की वह क्रिया कर रहा है |अगिया बेताल अदृश्य होकर सदा साधक की सहायता करता है ,पर वह शिव ,सरस्वती ,गणेश आदि सात्विक देवों के मंदिर में साधक के साथ होता है |अगिया बेताल में मधुरता का भाव नहीं है ,इसलिए इसका प्रयोग कामक्रीड़ा आदि के साधन जुटाने में नहीं किया जाना चाहिए |यदि ऐसा किया जाता है तो वह स्त्री जिसके साथ क्रीडा करेंगे आपसे बुरी तरह भयभीत हो जायेगी और भयभीत नारी से कामक्रीड़ा करना तंत्र शास्त्र में लाश के साथ क्रीडा करने के समान है |
अगिया बेताल की साधना की कई पद्धतिया विक्सित हैं किन्तु हैं सभी उग्र ही |इसकी साधना घर में नहीं हो सकती |इसके लिए श्मशान या निर्जन स्थान ही होना चाहिए |इसकी सात्विक और तामसिक दोनों प्रकार से साधना हो सकती है किन्तु भाव उग्र ही होना चाहिए |कामकलाकाली के अंतर्गत भी इसकी साधना की जाती है ,क्योकि यह मूलतः काली की ही शक्ति है ,किन्तु कामकलाकाली के अंतर्गत आने वाली साधना राजाओं इत्यादि के अधिक अनुकूल रही है ,जिसमे योद्धा के सर सहित मृत शव पर साधना की जाती है और साधना में नर चोर की बलि दी जाती है ,परिणामस्वरुप मृत योद्धा और चोर ताल बेताल हो जाते हैं |सिद्ध और नाथ परम्परा में इनकी और भी साधना पद्धतियाँ है |,सात्विक साधना में भाव के साथ उग्र सामग्रियां और योगों का भी बहुत महत्व होता है |निर्भीकता एक आवश्यक तत्व होती है |
अगिया बेताल की साधना से प्रकृति में हलचल मच जाती है |इस कारण वातावरण भयानक हो जाता है |इससे घबराकर श्मशान की प्रेतात्माएं साधक को डराती हैं |साधना के समय अग्नि के झमाके भी पैदा होकर साधक की और झपट सकते हैं |साधक को इनके भयभीत नहीं होना चाहिए और अपना काम करना चाहिए अन्यथा गंभीर हानि हो सकती है |भावुक और कोमल ह्रदय या दुर्बल आत्मबल वाले व्यक्ति को अगिया बेताल की साधना नहीं करनी चाहिए |सिद्धि तो मिलेगी नहीं हानि भी हो सकती है |यही स्थिति कामुक व्यक्तियों के लिए है |इस साधना में काम भाव पर पूर्ण नियंत्रण रखा जाता है |
अगिया बेताल के सिद्ध होने पर इसका प्रयोग बहुत सोच समझकर किया जाना चाहिए |उच्च तंत्र साधक या योगी को आप इसके द्वारा नियंत्रण में नहीं ले सकते |हाँ यदि वह दुश्मनी से वार कर रहा है तो वहां अगिया बेताल उसकी शक्ति से लड़ने में सक्षम है |गुप्त रहस्य बताने ,गड़े धन का पता बताने ,किसी क्षेत्र विशेष की रक्षा करने में अगिया बेताल का प्रयोग किया जाता है |दुर्गा के साधक पर इस शक्ति का प्रभाव तब तक नहीं होता जब तक वह अन्याय पूर्ण तरीके से किसी पर आक्रामक नहीं होता |कुश की झाड़ से दुर्गा मंत्र द्वारा अभिमंत्रित जल फेकने पर अगिया बेताल गायब हो जाता है |रूद्र के उच्च साधक के सामने बेताल की शक्ति साधकों की परस्पर शक्ति संतुलन के अनुपात में होती है |.......................................................................हर-हर महादेव
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