संतानहीनता ::ज्योतिषीय और तंत्रिकीय विश्लेषण
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संतान न होना या होकर न रहना सदैव से दम्पतियो के लिए कष्ट देने वाला रहा है ,हर दंपत्ति संतान चाहता है जिससे उसकी वंश वृद्धि हो सके ,किन्तु बहुतो को यह सौभाग्य नहीं मिल पाता ,,इसके कई कारण होते है ,ज्योतिषीय कारण अर्थात ग्रह स्थितिया ,पारिवारिक स्थितिया अर्थात पित्रादी की स्थिति अथवा दोष ,किये -कराये का दोष ,शारिरिक् चक्रों में विशिष्ट चक्र की कम सक्रियता अर्थात दैवीय ऊर्जा की कमी ,शारीरिक कमी इसके कारण हो सकते है ,,,इनमे शारीरिक कमी को दूर नहीं किया जा सकता किन्तु अन्य को सुधारा जा सकता है ,यद्यपि अन्य कारण एक -दूसरे से बिलकुल भिन्न होते है ,,ज्योतिषीय रूप से निम्न स्थितिया इसके लिए जिम्मेदार हो सकती है
पुरुष कुंडली के आधार पर संतानहीनता
[१]तृतीयेश व् चन्द्रमा केंद्र या त्रिकोण में हो और संतान दायक गृह कमजोर हो तो संतान नहीं होती है ,
[२]पंचम भाव में मंगल ,षष्ठ भाव में पंचमेश और सिंह राशिस्थ शनि हो तो संतान नहीं होती है ,
[३]लग्नेश व् बुध दोनों १,४,७,१० भाव में हो और संततिकारक ग्रह कमजोर हो तो संतान नहीं होती है ,
[४]पंचम भाव में चंद्र तथा अष्टम ,द्वादश भाव मे सभी ग्रह हो तो भी संतान नहीं होती है ,
[५]पंचम भाव में गुरु ,चतुर्थ भाव में पाप ग्रह और सप्तम भाव में बुध-शुक्र युति हो तो भी संतान नहीं होती है .,
[६]सप्तम भाव में शुक्र ,दशम भाव में चंद्र तथा चतुर्थ में कोई तीन पाप ग्रह हो तो संतान हीन योग बनता है ,
[७]पंचम, षष्ठ, अष्टम, एवं द्वादश में पाप ग्रह होना वंश विच्छेद की निशानी होता है ,
[८]लग्न में मंगल ,अष्टम में शनि और पंचम भाव में सूर्य वंश विच्छेद करते है ,
[९]पंचमेश या सप्तमेश नीच् राशिगत या अस्त हो ,पुत्रकारक ग्रहों की दृष्टि न हो पाप प्रभावी हो तो भी संतान नहीं होती
[१०]यदि पंचमेश स्त्री ग्रह हो और वह १,४ ७ अथवा १० भाव में चंद्र ,बुध ,शनि अथवा राहू के साथ बैठा हो तो जातक पुत्रहीन होता है
[११]लग्न में पाप ग्रह चतुर्थ में चन्द्रमा तथा पंचम में लग्नेश हो और पंचमेश अल्प बलि हो तो वंश नाश हो जाता है ,,
[१२]यदि पंचम भाव में अकेला चन्द्रमा मृत अवस्था में बैठा हो तो भी संतति की सम्भावना कम हो जाती है ,,
स्त्री कुंडली के आधार पर संतान हीनता
[१] लग्न में सूर्य और सप्तम में शनि हो तो संतानहीनता की सम्भावना होती है ,
[२]षष्ठ भाव में षष्ठेश ,सूर्य और शनि हो ,चंद्र सप्तम में हो तथा बुध उन्हें न देखता हो तो संतानहीन योग होता है ,
[३]सप्तम भाव में सूर्य और शनि ,दशम भाव में चंद्र और गुरु की दृष्टि हो तो भी संतान की सम्भावना कम हो जाती है ,,
[४] शनि और मंगल षष्ठ या चतुर्थ भाव में संतान प्रतिबंधक योग बनाते है ,
[५]पंचम भाव में षष्ठेश,अष्टमेश या द्वादशेश की स्थिति अथवा षष्ठ ,अष्टम या द्वादश में पंचमेश की स्थिति बाधाकारक होती है ,
[६] पंचमेश का नीच राशिगत या अस्त हो ,लग्नेश , सप्तमेश व् गुरु निर्बल हो तो संतान नहीं होती है ,
[७] पंचम भाव में ४,९,१०,१२ राशि हो और चतुर्थ या पंचम में गुरु हो ,संतान का आभाव हो सकता है ,
उपरोक्त ग्रह स्थितियों के अतिरिक्त शारीरिक चक्रों की कम अथवा अधिक सक्रियता भी एक बड़ा कारण होती है संतान हीनता की ,,मूलाधार चक्र और सम्बंधित स्थान संतान हेतु मुख्य रूप से उत्तरदायी होते है ,इस स्थान की ऊर्जा की मूल देवी काली है ,इनके प्रभाव से ही इस चक्र से ऊर्जा नियमित होती है ,इनकी ऊर्जा की कमी से डिम्भ अथवा शुक्राणु नहीं बनते ,कमर में दर्द रहता है ,त्वचा की कांति और प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है ,त्वचा रूखी और बेजान हो जाती है ,रक्त की कमी हो सकती है ,पुरुषत्व अथवा स्त्रीत्व के कारक हारमोनो का स्राव अथवा निर्माण कम हो जाता है ,मासिक चक्र अनियमित हो जाता है ,पुरुषो में स्थायित्व की कमी ,अरुचि अथवा चाहकर भी कुछ न कर पाने की स्थितिया उत्पन्न हो जाती है ,कारण बहुत से हो सकते है किन्तु मूल यहाँ की ऊर्जा की कमी ही होती है ,,काली की ऊर्जा की कमी से स्त्रियों में हड्डियों का कठोर हो जाना ,बाल त्वचा रूखे हो जाना ,पुरुषत्व के गुण उभर आना जैसी समस्याए भी होती है जो संतान की कमी उत्पन्न कर सकती है ,मूलाधार और स्वाधिष्ठान की कम सक्रियता पर मोटापा आने लगता है जो संतान हीनता का कारन कभी कभी बन जाता है ,
चक्रों और ग्रह स्थितियों के अतिरिक्त कभी कभी संतानहीनता व्यक्ति द्वारा भी उत्पन्न की हुई होती है ,यद्यपि बहुत से लोग इसे न समझ पाते है न मानते है ,किन्तु ऐसा होता है ,,कभी कभी लोग दुर्भावनावश किसी स्त्री अथवा पुरुष पर तांत्रिक क्रिया करवा देते है जिससे स्त्रियों की कोख बंध जाती है ,पुरुषो में शुक्राणु की कमी अथवा क्रियाशीलता में अक्षमता आने लगती है ,डाक्टरी इलाज के बाद भी जब तक इसका निवारण न कराया जाए समस्या बनी रहती है ,किसी जांच में इसे नहीं पकड़ा जा सकता है ,अक्सर ऐसा दुर्भावनावश अथवा अपनी समस्या हटाने के लिए किया जाता है ,
इन समस्याओं के अतिरिक्त पित्र दोष अथवा पिशाच बाधा भी संतानहीनता के कारण होते है ,पित्र दोष से वंश वृद्धि रूक जाती है ,उन्नति अवरूद्ध हो जाती है अथवा वंश क्षय होने लगता है ,अपने पितरो के साथ दूसरी आत्माए भी जुड़ जाती है जिन्हें व्यक्ति के परिवार से कोई लगाव नहीं होता है ,पित्र तो एक बार बुरा न भी चाहे किन्तु साथ जुड़े दुसरे व्यक्ति का अहित करते रहते है ,पित्र कमजोर होने अथवा रुष्ट होने से बचाव भी नहीं करते ,अक्सर ऐसा कुल देवता की कमजोरी पर अथवा उन्हें पूजा आदि न मिलने पर होता है ,क्योकि कुलदेवता ही बाहरी बाधाओं से व्यक्ति के परिवार की रक्षा करते है ,कुलदेवता यदि सक्षम भी हो तब भी ये अपने पितरो को नहीं रोकते ,अतः यदि अपने पित्र रूष्ट है तो संतानहीनता संभव है ,इनमे कई तरह के श्राप अथवा दोष आते है ,,इसीतरह पिशाच बाधा से भी वंश वृद्धि रूक जाती है अथवा क्षय होने लगता है ,दुर्घटनाये होने लगती है ,,
यदि कोई संतानहीनता की समस्या का सामना कर रहा हो तो उसे उपरोक्त सभी स्थितियों पर ध्यान देना चाहिए और इनके निराकरण का प्रयास करते हुए औषधीय इलाज और इष्ट आराधना करनी चाहिए ,योग्य व्यक्ति के परामर्श से समुचित उपाय और प्रयास करने चाहिए ,यदि स्थायी शारीरिक कमी नहीं है तो संतान संभव है [पूर्णतया व्यक्तिगत विचार और विश्लेषण ]...................................................................................हर-हर महादेव
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संतान न होना या होकर न रहना सदैव से दम्पतियो के लिए कष्ट देने वाला रहा है ,हर दंपत्ति संतान चाहता है जिससे उसकी वंश वृद्धि हो सके ,किन्तु बहुतो को यह सौभाग्य नहीं मिल पाता ,,इसके कई कारण होते है ,ज्योतिषीय कारण अर्थात ग्रह स्थितिया ,पारिवारिक स्थितिया अर्थात पित्रादी की स्थिति अथवा दोष ,किये -कराये का दोष ,शारिरिक् चक्रों में विशिष्ट चक्र की कम सक्रियता अर्थात दैवीय ऊर्जा की कमी ,शारीरिक कमी इसके कारण हो सकते है ,,,इनमे शारीरिक कमी को दूर नहीं किया जा सकता किन्तु अन्य को सुधारा जा सकता है ,यद्यपि अन्य कारण एक -दूसरे से बिलकुल भिन्न होते है ,,ज्योतिषीय रूप से निम्न स्थितिया इसके लिए जिम्मेदार हो सकती है
पुरुष कुंडली के आधार पर संतानहीनता
[१]तृतीयेश व् चन्द्रमा केंद्र या त्रिकोण में हो और संतान दायक गृह कमजोर हो तो संतान नहीं होती है ,
[२]पंचम भाव में मंगल ,षष्ठ भाव में पंचमेश और सिंह राशिस्थ शनि हो तो संतान नहीं होती है ,
[३]लग्नेश व् बुध दोनों १,४,७,१० भाव में हो और संततिकारक ग्रह कमजोर हो तो संतान नहीं होती है ,
[४]पंचम भाव में चंद्र तथा अष्टम ,द्वादश भाव मे सभी ग्रह हो तो भी संतान नहीं होती है ,
[५]पंचम भाव में गुरु ,चतुर्थ भाव में पाप ग्रह और सप्तम भाव में बुध-शुक्र युति हो तो भी संतान नहीं होती है .,
[६]सप्तम भाव में शुक्र ,दशम भाव में चंद्र तथा चतुर्थ में कोई तीन पाप ग्रह हो तो संतान हीन योग बनता है ,
[७]पंचम, षष्ठ, अष्टम, एवं द्वादश में पाप ग्रह होना वंश विच्छेद की निशानी होता है ,
[८]लग्न में मंगल ,अष्टम में शनि और पंचम भाव में सूर्य वंश विच्छेद करते है ,
[९]पंचमेश या सप्तमेश नीच् राशिगत या अस्त हो ,पुत्रकारक ग्रहों की दृष्टि न हो पाप प्रभावी हो तो भी संतान नहीं होती
[१०]यदि पंचमेश स्त्री ग्रह हो और वह १,४ ७ अथवा १० भाव में चंद्र ,बुध ,शनि अथवा राहू के साथ बैठा हो तो जातक पुत्रहीन होता है
[११]लग्न में पाप ग्रह चतुर्थ में चन्द्रमा तथा पंचम में लग्नेश हो और पंचमेश अल्प बलि हो तो वंश नाश हो जाता है ,,
[१२]यदि पंचम भाव में अकेला चन्द्रमा मृत अवस्था में बैठा हो तो भी संतति की सम्भावना कम हो जाती है ,,
स्त्री कुंडली के आधार पर संतान हीनता
[१] लग्न में सूर्य और सप्तम में शनि हो तो संतानहीनता की सम्भावना होती है ,
[२]षष्ठ भाव में षष्ठेश ,सूर्य और शनि हो ,चंद्र सप्तम में हो तथा बुध उन्हें न देखता हो तो संतानहीन योग होता है ,
[३]सप्तम भाव में सूर्य और शनि ,दशम भाव में चंद्र और गुरु की दृष्टि हो तो भी संतान की सम्भावना कम हो जाती है ,,
[४] शनि और मंगल षष्ठ या चतुर्थ भाव में संतान प्रतिबंधक योग बनाते है ,
[५]पंचम भाव में षष्ठेश,अष्टमेश या द्वादशेश की स्थिति अथवा षष्ठ ,अष्टम या द्वादश में पंचमेश की स्थिति बाधाकारक होती है ,
[६] पंचमेश का नीच राशिगत या अस्त हो ,लग्नेश , सप्तमेश व् गुरु निर्बल हो तो संतान नहीं होती है ,
[७] पंचम भाव में ४,९,१०,१२ राशि हो और चतुर्थ या पंचम में गुरु हो ,संतान का आभाव हो सकता है ,
उपरोक्त ग्रह स्थितियों के अतिरिक्त शारीरिक चक्रों की कम अथवा अधिक सक्रियता भी एक बड़ा कारण होती है संतान हीनता की ,,मूलाधार चक्र और सम्बंधित स्थान संतान हेतु मुख्य रूप से उत्तरदायी होते है ,इस स्थान की ऊर्जा की मूल देवी काली है ,इनके प्रभाव से ही इस चक्र से ऊर्जा नियमित होती है ,इनकी ऊर्जा की कमी से डिम्भ अथवा शुक्राणु नहीं बनते ,कमर में दर्द रहता है ,त्वचा की कांति और प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है ,त्वचा रूखी और बेजान हो जाती है ,रक्त की कमी हो सकती है ,पुरुषत्व अथवा स्त्रीत्व के कारक हारमोनो का स्राव अथवा निर्माण कम हो जाता है ,मासिक चक्र अनियमित हो जाता है ,पुरुषो में स्थायित्व की कमी ,अरुचि अथवा चाहकर भी कुछ न कर पाने की स्थितिया उत्पन्न हो जाती है ,कारण बहुत से हो सकते है किन्तु मूल यहाँ की ऊर्जा की कमी ही होती है ,,काली की ऊर्जा की कमी से स्त्रियों में हड्डियों का कठोर हो जाना ,बाल त्वचा रूखे हो जाना ,पुरुषत्व के गुण उभर आना जैसी समस्याए भी होती है जो संतान की कमी उत्पन्न कर सकती है ,मूलाधार और स्वाधिष्ठान की कम सक्रियता पर मोटापा आने लगता है जो संतान हीनता का कारन कभी कभी बन जाता है ,
चक्रों और ग्रह स्थितियों के अतिरिक्त कभी कभी संतानहीनता व्यक्ति द्वारा भी उत्पन्न की हुई होती है ,यद्यपि बहुत से लोग इसे न समझ पाते है न मानते है ,किन्तु ऐसा होता है ,,कभी कभी लोग दुर्भावनावश किसी स्त्री अथवा पुरुष पर तांत्रिक क्रिया करवा देते है जिससे स्त्रियों की कोख बंध जाती है ,पुरुषो में शुक्राणु की कमी अथवा क्रियाशीलता में अक्षमता आने लगती है ,डाक्टरी इलाज के बाद भी जब तक इसका निवारण न कराया जाए समस्या बनी रहती है ,किसी जांच में इसे नहीं पकड़ा जा सकता है ,अक्सर ऐसा दुर्भावनावश अथवा अपनी समस्या हटाने के लिए किया जाता है ,
इन समस्याओं के अतिरिक्त पित्र दोष अथवा पिशाच बाधा भी संतानहीनता के कारण होते है ,पित्र दोष से वंश वृद्धि रूक जाती है ,उन्नति अवरूद्ध हो जाती है अथवा वंश क्षय होने लगता है ,अपने पितरो के साथ दूसरी आत्माए भी जुड़ जाती है जिन्हें व्यक्ति के परिवार से कोई लगाव नहीं होता है ,पित्र तो एक बार बुरा न भी चाहे किन्तु साथ जुड़े दुसरे व्यक्ति का अहित करते रहते है ,पित्र कमजोर होने अथवा रुष्ट होने से बचाव भी नहीं करते ,अक्सर ऐसा कुल देवता की कमजोरी पर अथवा उन्हें पूजा आदि न मिलने पर होता है ,क्योकि कुलदेवता ही बाहरी बाधाओं से व्यक्ति के परिवार की रक्षा करते है ,कुलदेवता यदि सक्षम भी हो तब भी ये अपने पितरो को नहीं रोकते ,अतः यदि अपने पित्र रूष्ट है तो संतानहीनता संभव है ,इनमे कई तरह के श्राप अथवा दोष आते है ,,इसीतरह पिशाच बाधा से भी वंश वृद्धि रूक जाती है अथवा क्षय होने लगता है ,दुर्घटनाये होने लगती है ,,
यदि कोई संतानहीनता की समस्या का सामना कर रहा हो तो उसे उपरोक्त सभी स्थितियों पर ध्यान देना चाहिए और इनके निराकरण का प्रयास करते हुए औषधीय इलाज और इष्ट आराधना करनी चाहिए ,योग्य व्यक्ति के परामर्श से समुचित उपाय और प्रयास करने चाहिए ,यदि स्थायी शारीरिक कमी नहीं है तो संतान संभव है [पूर्णतया व्यक्तिगत विचार और विश्लेषण ]...................................................................................हर-हर महादेव
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