Wednesday, 27 November 2019

प्रेत शरीर का निर्माण कैसे होता है ?

::::::::::::::::प्रेत कैसे बनते हैं ::::::::::::::
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        प्रेत किसी भी जीवधारी का सूक्ष्म शरीर होता है ,,,स्वाभाविक मृत्यु के समय व्यक्ति के अंग हीरे -धीरे कम करना बंद करते हैं ,अर्थात उसके ऊर्जा परिपथ का क्रमशः क्षरण होता जाता है ,पहले उसके हाथ पाँव आदि सुन्न होते हैं ,फिर शरीर सुन्न होता है ,तत्पश्चात मष्तिष्क की चेतना से ह्रदय का सम्बन्ध टूटता है ,प्राण बाद में निकलते हैं ,,यह समस्त क्रिया कोशिकाओं में स्थित विद्युत् कणों के क्रमशः क्षरण से होता है ,कोशिकाओ के माइटोकांड्रिया जिस विद्युत् का निर्माण करते है वह स्टोर होते हैं ,फिर कोशिकाओं को शक्ति प्रदान करते है और शरीर के ताप को बनाये रखने के साथ उपापचय की क्रियाये नियमित रखते हैं ,कोशिकाओं के विद्युत् केन्द्रों का सम्बन्ध विद्युतीय शक्ति किरणों के माध्यम से एक दुसरे से जुड़ा होता है ,स्वाभाविक मृत्यु में यह सम्बन्ध धीरे-धीरे क्षीण पड़ कर टूट जाता है और इलेक्ट्रानिक शरीर नष्ट हो जाता है ,जिससे आत्मा जुड़ा होता है ,विद्युतीय शरीर नष्ट हो जाने पर आत्मा दूसरा विद्युतीय शरीर तलासने की कोसिस करता है और भ्रूण के एक निश्चित स्तर के विकास पर उसमे प्रवेश करता है जिससे उसे विद्युतीय शरीर मिलता है ,,,
         जब कोई जीव किसी आकस्मिक चोट से ,विष से अथवा साँसों के बंद हो जाने से या शरीर जल जाने से किसी प्रकार स्थूल शरीर की अचानक क्षति कर लेता है या कर दिया जाता है तो शरीर तो नष्ट हो जाता है किन्तु वियुतीय शरीर का क्षरण नहीं हो पाता ,अथवा अचानक आघात से शरीर के अंग काम न करने से या शरीर के अनुपयुक्त हो जाने से विद्युतीय शरीर का क्षरण नहीं हो पाता तो आत्मा उसी से बंधी रह जाती है ,,विद्युतीय शरीर में होने के कारण उसका प्रत्यक्षीकरण या दिखाई देना अन्य लोगो की दृष्टि में बंद हो जाता है और लोग स्थूल शरीर को निर्जीव पाकर समझते है की व्यक्ति मर गया ,किन्तु वह उस विद्युतीय शरीर में जीवित रहता है ,उसकी चेतना अनुभूति आदि बनी रहती है ,तृष्णा ,कामना ,इच्छा आदि बनी रहती है ,परन्तु क्रिया के लिए शरीर नहीं होता ,शरीर की क्रिया समाप्त होने से विद्युतीय केन्द्रों में स्टोर वियुत का क्षरण अल्प हो जाता है,और वह उसी स्थिति में जीवित रहता है ,यही प्रेतात्मा है  ,विद्युतीय शरीर के क्षरण पर ही उसकी मुक्ति निर्भर हो जाती है ,कभी कभी यह हजारो वर्षों में क्षरित होता है ,,,
        यह जीव की अत्यंत कष्टप्रद स्थिति है ,वह चाहकर भी कुछ नहीं कर पाता और छटपटाता रहता ,स्वयं असंतुष्ट और कष्ट में होने से ,अथवा कामनाये अधूरी रहने से दुसरो को कष्ट देता है अथवा कामनाये पूरी करने का प्रयास करता है,यह देख -समझ सकते हैं ,आकस्मिक मृत्यु को प्राप्त पित्र इसीलिए असंतुष्ट होते हैं की वह देखते हैं की हम अपना जीवन जी रहे है किन्तु उनके लिए या उनकी मुक्ति के लिए कुछ नहीं कर रहे है  ,इसीलिए जो इस स्थिति के जानकार हैं ,वे इनकी मुक्ति [इलेक्ट्रानिक बाडी ]के नष्ट होने की कामना करते हैं और सामना होने पर इन्हें मुक्ति प्रदान करते हैं |
    ॐ,राम ,हनुमान या किसी ध्यान सिद्ध योगी,तांत्रिक आदि का स्पर्श इनके विद्युतीय शरीर के क्षरण को तीब्र कर देता है अर्थात विशिष्ट कम्पन या सिद्ध विद्युत् शरीर का का प्रभाव जब इनके विद्युतीय शरीर पर पड़ता है तो उसका क्षरण तेज हो जाता है और इन्हें उसी प्रकार कष्ट होता है जिस प्रकार स्थूल शरीर के नष्ट होने से होता है ,इसीलिए ये इन ध्वनियों, यंत्रों, मन्त्रों ,ताबीजों आदि से दूर भागते हैं ,यह सब विद्युतीय तरंगो की क्रियाये है ,,,प्रकृति की कुछ वनस्पतियाँ ,वृक्ष, स्थान आदि जहां इन विद्युतीय शरीरों को शांति मिलती है ,वहां यह रहना पसंद करते हैं .|..................................................................हर-हर महादेव 

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