::::::::::::::::::कैसे बदलता है व्यक्ति का भाग्य :::::::::::::::::::
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हमारा यह लेख अनेक मिथकों और सोचों के विरुद्ध लोगों को लगेगा ,कुछ लोगों को नहुत बुरा भी लगेगा ,जो भी यह सोचते हैं की सबकुछ भाग्य द्वारा निर्धारित होता है ,उससे अलग कुछ नहीं हो सकता ,कोई कुछ भी करे |अनेक ज्योतिष में अतिविश्वास करने वालों को भी अच्छा नहीं लगेगा क्योकि यह सामान्य सोच के विपरीत है की सब कुछ ग्रहों द्वारा ही निर्धारित होता है ,उससे अलग कुछ हो ही नहीं सकता |पर हम कहना चाहेंगे की व्यक्ति अगर चाहे तो उसके भाग्य में परिवर्तन संभव है |क्या सबकुछ वैसे ही होता है एक सामान्य व्यक्ति के जीवन में |जितना ज्योतिष और भाग्य बताता है उतना अच्छा तो नहीं ही होता और बुरा उससे अधिक हो जाता है |ऐसा इसलिए होता है की विभिन्न नकारात्मक प्रभाव से भाग्य और ग्रह की शुभता में कमी आती है और अच्छा होने में कमी आती है ,बुरा होने में अधिकता |जब नकारात्मक प्रभाव से बुरे परिणाम में वृद्धि हो सकती है तो शुभ और सकारात्मक ऊर्जा बढाने पर अधुक शुभता और अच्छे परिणाम क्यों नहीं प्राप्त हो सकते |प्राचीन ऋषियों ने उपाय की अवधारणा बुरे प्रभाव में कमी लाने के लिए की |इनके प्रभाव से ग्रहों से उत्पन्न अशुभ प्रभाव में कमी आती है तो क्या उनके शुभ प्रभाव में वृद्धि नहीं की जा सकती |जब कमी अधिकता हो सकती है तो सीधा मतलब है की हस्तक्षेप से भाग्य में जो लिखा है उससे अलग भी सम्भव है |क्यों कुछ महर्षि कई सौ सालों तक जीते हैं जबकि ज्योतिष के अनुसार तो आयु १२० वर्ष से अधिक होनी ही नहीं चाहिए |इससे अधिक की गणना ज्योतिष में है ही नहीं |कैसे बली ,व्यास ,परसुराम ,अश्वत्थामा आदि को चिरंजीवी कहा जाता है |कैसे देवरहा बाबा २५० साल ,तैलंग स्वामी ३०० साल जी गए |क्या इनपर ग्रहों का प्रभाव नहीं था |सीधा अर्थ है की अगर आप कुछ ऐसा करें की आप पर ग्रहीय प्रभाव बदल जाएँ या कम हो जाएँ तो आपके भाग्य बदल सकते हैं |अब तक हमने जो अनुभव किये हैं और जो तर्क से समझा है ,उसके अनुसार -
.प्रत्येक व्यक्ति के जन्म से उसके चक्रों में से एक चक्र विशेष क्रियाशील रहता है ,जो ग्रह-स्थितियों और आनुवंशिक गुणों से प्रभावित होता है ,इसी चक्र की क्रियाशीलता के अनुसार व्यक्ति के गुण-अवगुण,शरीर-मष्तिष्क-बुद्धि की स्थिति ,कर्म-भाग्य-प्रभाव शीलता आदि का निर्धारण होता है |व्यक्ति के जन्म समय पर उपस्थित ग्रह रश्मियों का प्रभाव जैसा होता है ,उसका असर मोटे तौर पर उसके पूरे जीवन पर पड़ता है |पूर्व जन्मों के कर्मों के अनुसार जो भाग्य उसका इस जीवन हेतु निर्धारित होता है ,उस भाग्य के अनुकूल जब ग्रह स्थितियां प्रकृति में बनती हैं तो वह व्यक्ति जन्म लेता है |अर्थात भाग्य उसका निश्चित होता है और उसी के अनुरूप ग्रह स्थितियों में उसका जन्म होता है जो पूरे जीवन उसे प्रभावित करते हैं |किन्तु जिस तरह से पूर्व कर्मों के अनुसार बने भाग्य का प्रभाव आज होगा ,उसी तरह आज का कर्म और मनोबल भी उस भाग्य को प्रभावित करेगा और उसमे कमी -अधिकता ला सकता है |प्राकृतिक शक्तियां भी इसमें कुछ परिवर्तन कर सकती हैं यदि वह इस दिशा में प्रक्षेपित की जाए |व्यक्ति इस भाग्य में अपने कर्म और प्रबल आत्मबल से परिवर्तन कर सकता है क्योकि वह इससे अपने शरीर के दुसरे किसी भी ऊर्जा चक्र को अधिक सक्रिय कर सकता है |इस सक्रियता के साथ ही परिवर्तन शुरू हो जाता है ,यह प्रकारांतर से भाग्य में सीधा हस्तक्षेप न होकर पहले से उपस्थित सर्वाधिक प्रभावी ऊर्जा धारा के साथ ही एक अन्य ऊर्जा धारा को भी अधिक क्रियाशील कर उससे उत्पन्न बल द्वारा परिवर्तन होता है ,जो हर क्षेत्र को प्रभावित कर देता है और भाग्य में परिवर्तन हो सकता है |
,जब कोई अपने प्रबल आत्मबल से दूसरे चक्र को अधिक क्रियाशील करने का प्रयास करता है ,अथवा किसी उच्च देवी-देवता की साधना करता है ,किसी उच्च शक्ति के भाव में डूब जाता है तो उसका कोई दूसरा चक्र भी अधिक क्रियाशील हो जाता है [यह उस शक्ति पर निर्भर है की वह किस चक्र का प्रतिनिधित्व करता है ],दूसरे चक्र की क्रियाशीलता के साथ ही शरीर की औरा ,प्रभावशीलता ,सोच,कर्म,दिशा सब बदल जाती है और एक अतीन्द्रिय मानसिक बल का उदय हो जाता है ,जो उसके मष्तिष्क के सोच की दिशा में कार्य करती है ,दूसरे चक्र की क्रियाशीलता के साथ ही चक्रों से तीब्र तरंगे निकलने लगती है ,और शरीर का प्रभामंडल बदलकर प्रभावी हो जाता है ,साथ ही आपस पास का वातावरण भी प्रभावित होता है ,शारीरिक रासायनिक स्थितियों में भी परिवर्तन होता है और मानसिक बल ,सूक्ष्म शारीर सब अधिक उर्जावान हो जाते हैं जो ग्रहों के प्रभाव को सिमित या नियंत्रित कर देती है और व्यक्ति का भाग्य उसकी सोच के अनुसार परिवर्तित होने लगता है क्योकि कर्म परिवर्तित हो जाता है |,इसके साथ ही पूर्वकर्म के प्रभाव में भी कमी आ जाती है और आज के कर्म के परिणाम प्राप्त होने लगते है ,यह उत्पन्न ऊर्जा मानसिक एकाग्रता से बढकर अन्य चक्रों का भेदन कर सकती है और व्यक्ति की कुंडलिनी जागने से उसका पूर्ण स्वरुप ही बदल सकता है जिससे वह दूसरों के भाग्य और प्रकृति में भी स्पंदन कर सकता है|
जब व्यक्ति में नए विशिष्ट प्रकार की औरा या प्रभामंडल का विकास होता है तो यह ग्रह रश्मियों के लिए भी अवरोधक हो जाता है और यह व्यक्ति के मानसिक बल और संकेत के अनुसार कार्य करता है ,जिससे हानिकारक ग्रहों का प्रभाव जो जन्मकालिक स्थिति में थे या गोचर से आते हैं ,उनके प्रभाव को रोक देता है |फलस्वरूप शुभ ग्रहों के प्रभाव में भी वृद्धि हो जाती है |होने वह लगता है जो शुभ ही शुभ हो |इस प्रकार भाग्य बदलता है |इसके साथ ही रासायनिक परिवर्तन से व्यक्ति की शारीरिक स्थिति बदलती है और कोशिका क्षय आदि रुक सकती है |सब कुछ मानसिक नियंत्रण और अवचेतन के अनुसार होने लगता है |ऐसी ही स्थिति कहानियों में पढ़ी जाने वाली योगियों की होती है |ठंडी गर्मी जैसे प्रभाव भी इससे बदलते हैं |यह सब कुंडलिनी और चक्रों के खेल हैं |मीरा इतना भाव में डूबी की उसकी कुंडलिनी जाग गई और विष का प्रभाव भी उनके लिए अमृत जैसा हो गया |इसी तरह व्यक्ति अगर सोच ही ले तो भाग्य भी बदल सकता है|..... ...[व्यक्तिगत विचार ]............................................हर-हर महादेव
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