Wednesday, 27 November 2019

भूत -प्रेत ,नकारात्मक ऊर्जा हटाने का प्रयोग दिव्य गुटिका पर

भूत -प्रेत ,नकारात्मक ऊर्जा हटाने का प्रयोग दिव्य गुटिका पर
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=============प्रचंडा चामुंडा साधना ==============
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जैसा की हमने अपने दिव्य गुटिका अथवा चमत्कारी डिब्बी धारक पेज के पाठकों को सूचित किया था की जो गुटिका उन्होंने कभी भी हमसे किसी भी अन्य उद्देश्य से ली हो वे उस उद्देश्य के साथ -साथ उस दिव्य गुटिका पर अनेक प्रयोग अपनी आवश्यकता अनुसार कर सकते हैं और हम क्रमशः उनकी विधि प्रस्तुत करते रहेंगे |हम विशेष रूप से प्रयोग किये जाने वाले कुछ प्रयोगों के क्रम में नकारात्मक ऊर्जा ,भूत-प्रेत ,वायव्य बाधाएं ,तांत्रिक अभिचार ,अनावश्यक वशीकरण ,उच्चाटन ,विद्वेषण आदि की क्रियाओं को हटाने का प्रयोग प्रदान कर रहे हैं |जिन धारकों को लगता हो की उनके ऊपर अथवा उनके दूकान ,व्यवसाय ,घर-परिवार पर किसी तरह की नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव है ,किसी ने कुछ किया -कराया किया हुआ है या अभिचार किया है ,या व्यवसाय -दूकान बाँध दिया है ,या उन्नति रोक दी है ,या अपने आप किसी वायव्य आत्मा परेशान कर रही है ,किसी बच्चे -स्त्री को कोई पीड़ा पहुंचा रहा हो ,घर-परिवार में अनावश्यक बीमारी -दुर्घटना -कष्ट का वातावरण बन रहा हो तो वह धारक इस प्रयोग को किसी शनिवार अथवा कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की रात्री शुरू कर निश्चित दिनों तक क्रिया प्रयोग कर लाभान्वित हो सकते हैं |
सामग्री
---------- मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठायुक्त दुर्लभ दिव्य गुटिका [चमत्कारी डिब्बी ],लाल रंग का वस्त्र ,इत्र ,लकड़ी की चौकी या बाजोट ,चांदी की तश्तरी [ न मिले तो पीतल ], असली सिन्दूर ,लौंग ,इलायची ,लाल फूल ,पान बीड़ा ,फल फूल ,प्रसाद चढाने को दूध की लाल मिठाई ,चावल ,सिक्का ,रुई ,देशी घी का दीपक |
माला
-------- मंत्र सिद्ध चैतन्य रुद्राक्ष माला
आसन
-------- लाल उनी आसन
वस्त्र
------- लाल रंग की धोती
दिशा
------- पूर्व दिशा
दिन
------ होली की रात्री अथवा शुभ मुहुर्तयुक्त मंगलवार अथवा नवरात्र अथवा शनिवार अथवा कृष्ण चतुर्दशी |
समय
------- रात्री दस बजे
जप संख्या अवधि
---------------------- १२५००० [सवा लाख ]अपनी सुविधानुसार रोज की जप संख्या निश्चित कर दिन की अवधि निश्चित कर लें |प्रतिदिन जप संख्या समान हो और सवा लाख जप २१ ,३१ ,४१ अथवा ५१ दिनों में संपन्न हो |इस अवधि में पूर्ण सात्विकता ,ब्रह्मचर्य पालन आवश्यक |
मंत्र
------- || ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडाये बिचै ||
विधि

-------- नवरात्र में अथवा शुभ मुहुर्त्युक्त मंगलवार को अथवा होली की रात्री अथवा कृष्ण चतुर्दशी अथवा किसी शनिवार को स्नानादि से निवृत्त हो शुद्ध हो लाल धोती धारण कर लाल उनी आसन पर पूर्व की और मुख कर अपने सामने लकड़ी के बाजोट या चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं |उस पर बीचोबीच रोली से अष्टदल कमल बनाएं फिर उस पर चांदी की तश्तरी स्थापित करें और तश्तरी के बीचोबीच रोली से या अष्टगंध से ह्रीं बनाएं |अब  उस पर दिव्यगुटिका स्थापित करें |दिव्य गुटिका के पीछे दुर्गा जी का चित्र स्थापित करें |अब दुर्गा जी का और दिव्य गुटिका का पूजन यथाशक्ति करें और जल ,अक्षत ,लाल फूल ,धुप -दीप ,प्रसाद चढ़ाएं ,असली पिला पारायुक्त सिन्दूर गुटिका के अन्दर चढ़ाएं |पान बीड़ा ,लौंग ,इलायची और एक सिक्का अर्पित करें |अब मंत्र सिद्ध चैतन्य रुद्राक्ष माला से उपरोक्त मंत्र का जप निश्चित संख्या में करें [जो आपने रोज के लिए निर्धारित की है ]|इस प्रकार रोज करते हुए सवा लाख जप पूर्ण हो जाने पर कम से कम २५०० हवन अवश्य करें |इस प्रकार यह अनुष्ठान पूर्ण होता है |अब चांदी की तश्तरी समेत दिव्य गुटिका अपने पूजा स्थान में स्थापित करें और रुद्राक्ष माला गले में धारण करें |गुटिका के बाहर चढ़ाए गए लौंग ,इलायची को उठाकर सुरक्षित रख ले यह किसी भी अभिचार ,पीड़ा ,बाधा के निवारण में मदद करेगा ,पीड़ित को खिलाने पर अथवा बाजू में बाँध देने पर |अन्य शेष सामग्री को बहते जल या तालाब ,कुएं में प्रवाहित कर दें |इस गुटिका पर सिन्दूर अर्पित करते रहें और प्रतिदिन इसकी पूजा सामान्य रूप से करते रहें |संभव हो तो एक -दो माला भी रोज करें |इस प्रयोग को संपन्न करने पर भूत-प्रेत ,वायव्य बाधा ,अभिचार ,किया कराया दूर होगा ,सब प्रकार उन्नति होगी ,शत्रु पराजित होंगे |घर के अनेक दोष समाप्त होंगे |जहाँ भी रखा जाएगा गुटिका वहां के बंधन समाप्त हो जायेंगे |आगे होने वाले अभिचार काम नहीं करेंगे |गुटिका पर चढ़ाए सिन्दूर का तिलक करने पर आकर्षण शक्ति बढ़ेगी ,लोग प्रभावित होंगे ,सब प्रकार से सुरक्षा प्राप्त होगी |लोग वशीभूत होंगे |................................................................हर-हर महादेव 

दिव्य डिब्बी से होली पर मनोकामना पूर्ति

होली पर पर जाग्रत करें दिव्य गुटिका की शक्ति और पूर्ण करें मनोकामना
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                  होली -दीपावली का हिन्दू समाज में अत्यधिक महत्त्व है क्योकि यह दोनों ही समय में रात्री का महत्वपूर्ण संयोग होता है ,और अन्धकार ,दुःख ,दारिद्य ,कष्ट से मुक्ति के प्रयोग किये जाते हैं |दीपावली की रात्री और होलिका दहन की रात्री का तंत्र जगत में अत्यधिक महत्त्व है क्योकि इस दिन किये गए तांत्रिक प्रयोग बहुत प्रभावकारी होते हैं |इस दिन लक्ष्मीप्राप्ति और दुर्भाग्य दूर करने से सम्बंधित अनेकानेक प्रयोग होते हैं जिनसे धन -समृद्धि -सुरक्षा प्राप्त होती है |इस रात्री को तांत्रिक सिद्धियाँ प्राप्त की जाती है |इस दिन नकारात्मक ऊर्जा हटाने के अनेक प्रयोग किये जाते हैं और नकारात्मक शक्तियों पर विजय से सम्बंधित अनुष्ठान भी संपन्न किये जाते हैं |इस दिन किये जाने वाले प्रयोग पूरे वर्ष प्रभावी रहते हैं |इस दिन विभिन्न विशिष्ट प्रयोगों के साथ ही कोई हत्थाजोड़ी को सिद्ध करता है |कोई गोमती चक्र सिद्ध करता है तो कोई कौड़ियाँ सिद्ध करता है |कोई यन्त्र सिद्ध करता है तो कोई सियार्सिंगी ,,कोई वनस्पति जड़ें सिद्ध करता है तो कोई शंख आदि सिद्ध करता है |सभी का उद्देश्य शक्ति प्राप्ति ,सिद्धि प्राप्ति अथवा धन प्राप्ति होता है |उपरोक्त अथवा इनसे सम्बंधित वस्तुएं सभी को मिल ही जाए जरुरी नहीं |सभी को सही चीजें ही मिले यह भी आवश्यक नहीं |इसलिए हम एक विकल्प प्रस्तुत कर रहे हैं ,जो आपके बहुत काम आ सकता है |जिसपर उपरोक्त लगभग सभी प्रयोग किये जा सकते हैं |हम एक दिव्य गुटिका अथवा चमत्कारी डिब्बी निर्मित करते हैं जिसमे लगभग २१ दुर्लभ वस्तुएं होती हैं |
                                आप दिव्य गुटिका का प्रयोग होलिका दहन की रात्री की साधना के लिए अगर करते हैं तो आपकी सभी क्षेत्रों की सफलता कई गुना बढ़ जाती है |क्योकि इस चमत्कारिक दिव्य गुटिका के मुख्य अवयव रवि पुष्य योग में निष्काषित अथवा अभिमंत्रित -प्राण प्रतिष्ठित हत्थाजोड़ी और सियार्सिंगी होते है ,जिनके साथ श्वेतार्क ,नागदौन ,महायेगेश्वरी ,एरंड ,अमरबेल ,हरसिंगार ,हाथी दांत ,गोरोचन ,पिली कौड़ी ,गोमती चक्र आदि विभिन्न २१ अद्भुत ,विशिष्ट और चमत्कारिक वनस्पतियाँ और वस्तुएं होती हैं ,जो मिलकर ऐसा अद्भुत प्रभाव उत्पन्न करते हैं की यह चमत्कारिक हो जाती है | यह सभी वस्तुएं विशिष्ट उच्च स्तर के साधक द्वारा विशिष्ट मुहूर्त में प्राण-प्रतिष्ठित और अभिमंत्रित होती हैं ,जबकि उपयोग किये गए सामान भी विशिष्ट मुहूर्त में ही विशिष्ट तांत्रिक पद्धति से निष्कासित और प्राप्त किये हुए होते हैं |उपरोक्त वस्तुओं की उपयुक्त और विशिष्ट मुहूर्त में विशिष्ट तांत्रिक साधक द्वारा की गयी तांत्रिक क्रिया के बल पर यह गुटिका अति शक्तिशाली वशिकारक-आकर्षक -सुरक्षाप्रदायक ,धन-संमृद्धि प्रदायक हो जाती है |इससे निकलने वाली तरंगे साथ रखने वाले धारक के साथ साथ ही आसपास के लोगों को भी प्रभावित करती है, जिससे धारक को उपरोक्त लाभ मिलने लगते हैं |इस गुटिका की एक विशेषता है की यह आपके घर की या आपकी नकारात्मक ऊर्जा को सामने ला देती है |
                      इस गुटिका पर होली को किये गए आपके मंत्र जप अथवा साधनाए अथवा लक्ष्मी से सम्बंधित प्रयोग आपकी सफलता को बहुत बढ़ा देते हैं और आपके प्रयोग सफल होते हैं |अलग -अलग वस्तुओं को प्राप्त करना और उनके अलग अलग प्रयोग करने की बजाय एक साथ इनका प्रयोग अनेक कार्य सिद्ध करता है
                             इसमें उपयोग की गयी हत्थाजोड़ी में माता चामुंडा का वास माना जाता है |इस जड़ी का सर्वाधिक प्रभाव इसकी सम्मोहंनशीलता है | साधक [व्यक्ति] इसे लेकर कही भी जाये उसका विरोध नहीं होगा |सम्बंधित मनुष्य उसके अनुकूल आचरण और व्यवहार करेगा |इस जड़ी के इसी गुण [सम्मोहनशीलता ]के कारण ही बहुत से लोग इसका प्रयोग प्रेम सम्बन्धी मामलों में भी करते हैं ,,|पति-पत्नी के मामलों में यह अत्यंत उपयोगी भी है और सदुपयोग भी |सम्मोहन और वशीकरण [आकर्षण ]के अतिरिक्त इसका प्रयोग धन वृद्धि ,सुरक्षा ,सौभाग्य वृद्धि ,व्यापार बाधा हटाने आदि में भी किया जाता है और बेहद प्रभावी भी है | इसकी सम्पूर्ण विधि पूर्वक प्राण-प्रतिष्ठा इसे अमूल्य बना देती है |धारक या साधक यात्रा ,विवाद ,प्रतियोगिता ,साक्षात्कार ,द्युतक्रीडा ,और युद्धादी में यह साधक की रक्षा करके उसे विजय प्रदान करती है |भूत-प्रेत आदि वायव्य बाधाओं का उसे कोई भय नहीं रहता ,धन-संपत्ति देने में भी यह बहुत चमत्कारी सिद्ध होती है |इस पर विभिन्न प्रकार के वशीकरण-आकर्षण-सम्मोहन के प्रयोग किये जाते हैं ,विदेश यात्रा की रुकावटें दूर करने की क्रियाएं होती हैं ,घर की सुरक्षा की क्रियाएं होती हैं ,धन-संपत्ति-आकस्मिक लाभ सम्बन्धी क्रियाएं होती हैं ,व्यापार वृद्धि प्रयोग होते हैं ,मुकदमे में विजय ,विरोधियों की पराजय की क्रियाएं होती है ,,इसे जेब में रखा जाये तो सम्मान-सम्मोहंशीलता-प्रभाव बढ़ता है ,सामने के व्यक्ति का वाकस्तम्भन होता है ,आकस्मिक आय के स्रोत बनते हैं
                  दूसरी वस्तु सियार्सिंगी शत्रु पराभव ,सामाजिक सम्मान ,शरीर रक्षा ,श्री समृद्धि ,आकर्षण ,वशीकरण ,सम्मोहन ,धन-सम्पदा ,सुख शान्ति के लिए उपयोग की जा सकती है |किसी शुभ तांत्रिक मुहूर्त में प्राण प्रतिष्ठित और अभिमंत्रित सियारसिंगी वाद-विवाद ,युद्ध ,संकट ,आपदा ,से बचानेवाला भी सिद्ध होता है |यह रक्षा कार्यों में अद्भुत सफलतादायक कहा जाता है |इसे धारण करनेवाला व्यक्ति दुर्घटना ,विवाद ,युद्ध अथवा किसी अन्य संकट में पड़ने पर तुरंत ही आप्दामुक्त हो जाता है |इस पर धन-समृद्धि ,वशीकरण ,सम्मोहन ,सुरक्षा से सम्बंधित विभिन्न क्रियाएं भी होती हैं ,जैसी आवश्यकता हो |केवल मंत्र और पद्धति ही बदलती है सियारसिंगी वही रहता है |इसे रखने वाला व्यक्ति जहाँ भी जाता है वहां का वातावरण उसके अनुकूल हो जाता है | इसी प्रकार इस गुटिका में शामिल २१ वस्तुओं में से हर वस्तु का अपना एक अलग और विशिष्ट बहुआयामी प्रभाव है |इनके बारे में लिखने पर कई पोस्ट कम हो जायेंगे |वैसे भी यह हमारे गोपनीय खोज हैं अतः सभी वस्तुओं और उनके प्रभावों के बारे में बता पाना भी संभव नहीं |
                      इस गुटिका/डिब्बी के उपयोग से धन वृद्धि ,सम्मोहन ,वशीकरण ,वायव्य बाधाओं से सुरक्षा ,शत्रुओं से सुरक्षा ,अभिचार कर्म से सुरक्षा ,संपत्ति संवर्धन ,यात्रा में सुरक्षा ,विवाद-प्रतियोगिता में सफ़लता ,साक्षात्कार में सफ़लता ,द्युतक्रीडा -शेयर -सट्टा -लाटरी -कमोडिटी के कार्यों में सफलता ,शत्रु से अथवा मुकदमे में विजय ,अधिकारी का अनुकूलन -वशीकरण ,गृह दोष-वास्तु दोष का शमन ,गृह कलह का शमन ,ग्रह बाधा-अशुभत की समाप्ति ,प्रियजनों का अनुकूलन-वशीकरण किया जा सकता है |इसके अतिरिक्त भी यह गुटिका के अनेकानेक और विशिष्ट उपयोग हैं ,जिनके लिए विविध प्रकार की क्रियाएं की जा सकती है ,इसकी क्षमता की कोई सीमा नहीं है ,उद्देश्य के अनुसार भिन्न क्रियाएं विभिन्न मनोकामनाएं पूर्ण कर सकती हैं |यह गुटिका हमारे वर्षों के tantra क्षेत्र में शोध का परिणाम है और इसके परिणाम अनुभूत हैं |
                     इस डिब्बी के उद्देश्य विशेष के साथ प्रयोग भी विशिष्ट हो जाते हैं |लक्ष्मी प्राप्ति हेतु इस पर लक्ष्मी या कमला के मंत्र जप किये जा सकते है |अभिचार या तांत्रिक बाधा हटाने के लिए इस पर काली ,तारा ,बगला ,दुर्गा के मंत्र किये जा सकते हैं |किसी कार्य में आ रही बाधा हटाने के लिए इस पर भैरव ,हनुमान आदि के मन्त्र किये जा सकते हैं | यह शेयर ,सट्टा ,लाटरी ,कमोडिटी ,मार्केटिंग ,सेल्स से जुड़े लोगों को स्वाभाविक लाभ देती है क्योकि इसमें आकस्मिक आय प्रदान करने में सहयोगी tantra वस्तुएं है जो आकर्षण शक्ति बढ़ाने के साथ आय बढाती हैं |नकारात्मक ऊर्जा हटाने के लिए इसपर काली ,चामुंडा ,दुर्गा के मंत्र विशिष्ट प्रभाव उत्पन्न करते हैं |यह अभिचार हटाने और उसका प्रभाव कम करने का काम करती है |भूत-प्रेत ,वायव्य बाधाओं को इससे कष्ट होता है और काली ,दुर्गा के मंत्र से उनकी शक्ति कम होती है |गणपति मंत्र करने से सुख -समृद्धि प्राप्त होती है |आकर्षण ,वशीकरण मंत्र का जप करने से आकर्षण प्रभाव उत्पन्न होता है |ग्रहण में मंत्र इस पर जपने से इसका प्रभाव और मंत्र का प्रभाव दोनों बढ़ते हैं |
                          जिस तरह का आपका उद्देश्य हो अथवा जिस समस्या से आप मुक्ति पाना चाहते हों उससे सम्बंधित शक्ति का मंत्र जप आप इसे सामने रख होली की रात्री को करें |इससे यह गुटिका वर्ष भर आपको उस उद्देश्य के लिए क्रियाशील रहेगी ,भले ही आपने इस पर कोई भी और प्रयोग किया हो ,अथवा बाद में करते रहें |यह सभी उदेश्यों के अलग अलग प्रयोग और उद्देश्य पूर्ण करने में सक्षम है |होली के बाद भी उद्देश्य अनुसार अलग प्रयोग करते रहें और अपने उद्देश्य पूर्ण करते रहें |........................................................................हर-हर महादेव 

भूत -प्रेत /नकारात्मक ऊर्जा पर प्रतिक्रिया करती और हटाती है दिव्य गुटिका

भूत -प्रेत /नकारात्मक ऊर्जा पर प्रतिक्रिया करती और हटाती है दिव्य गुटिका  
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            सामान्यतया शेयर ,सट्टा ,लाटरी ,कमोडिटी अथवा सेल्स -मार्केटिंग जैसे आकस्मिक आय से जुड़े लोगों के लिए बनाई जाने वाली चमत्कारी दिव्या गुटिका बेहद प्रतिक्रियाशील होती है ,जो घर में अथवा व्यक्ति के किसी भी प्रकार के नकारात्मक ऊर्जा ,अभिचार ,वायव्य बाधा ,टोने-टोटके ,स्थान दोष ,वास्तु दोष आदि से प्रभावित होने पर तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त करती है |हमें यह पोस्ट लिखने की प्रेरणा इसकी प्रतिक्रियाओं के कारण ही मिली ,जबकि हम खुद इसका निर्माण शेयर ,सट्टा ,लाटरी ,कमोडिटी अथवा आकस्मिक आय से जुड़े लोगों के लिए करते आ रहे हैं |यदि घर में किसी भी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा है तो इसके प्रभाव से उन हानिकारक शक्तियों को परेशानी होने लगती है |हमारे अनेक धारकों को यह अनुभूतियाँ हुई ,जबकि जिनके यहाँ नकारात्मक शक्ति का प्रभाव नहीं था या कम था उनको त्वरित केवल लाभ महसूस हुआ |
          नकारात्मक ऊर्जा ग्रस्त व्यक्ति अथवा घरों में इसके पहुचाते ही उठापटक शुरू हो जाते हैं ,कुछ दिन अस्त - व्यस्तता उत्पन्न हो सकती है ,कलह हो सकती है ,धन सम्बन्धी उतार चढ़ाव आटे हैं |ऐसा इसलिए होता है की हानिकारक शक्तियों को कष्ट होता है और उन्हें लगता है की उन्हें हटाया जा रहा है ,जिससे वह उत्पात शुरू करते हैं की इस गुटिका को घर से या व्यापार स्थल से हटा दिया जाए ,जिससे उनका प्रभाव बरकरार रहे |इस गुटिका में अभिमंत्रित की हुई वस्तुएं विभिन्न tantra शक्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं जो आसपास और व्यक्ति पर से नकारात्मक हटाती है |हत्थाजोड़ी ,सियार सिंगी आदि विभिन्न लगभग २१ वस्तुओं का संग्रह चामुंडा ,शनी ,दुर्गा ,लक्ष्मी ,विष्णु ,शिव ,गणेश ,काली आदि परम सकारात्मक शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो धारक की नकारात्मक ऊर्जा हटा ,सकारात्मक ऊर्जा बढाते हैं |उसके आय स्रोतों को पुष्ट करते हैं जिससे उसके भाग्य का पूरा उन्हें मिल पता है |यद्यपि गुटिका की शक्ति की सीमा नहीं किन्तु शक्ति तब बढती है जबकि लगातार पूजा और जप होते रहे इसपर ,जबकि नकारात्मक शक्तियों की प्रतिक्रिया तुरंत शुरू हो जाती है ,जिससे धारक कभी कभी परेशां भी होता है |इससे धैर्य नहीं खोना चाहिए और समझना चाहिए की यह नकारात्मक शक्तियां जो उनके घर में प्रभावी हैं उनके कारण हो रहा है |हां अगर घर में बहुत ही शक्तिशाली नकारात्मक शक्ति है तो वह मात्र इस गुटिका से नहीं हटेगी ,उसके लिए अलग से भी तांत्रिक से संपर्क कर उपाय करने होंगे |
            सामान्य नकारात्मक शक्तियां ,वास्तु दोष ,स्थान दोष ,टोना -टोटका ,अभिचार इसके पूजन मात्र से समाप्त होने लगते हैं ,लाभ बढ़ते हैं ,आकर्षण शक्ति ,प्रभाव की वृद्धि होती है ,सम्मान ,विजय का मार्ग प्रशस्त होता है ,आकस्मिक आय के स्रोत बनते हैं |इससे यह भी पता चलता है की आपके घर में कोई नकारात्मक प्रभाव है की नहीं |बहुत से लोग नहीं जान पाते की उनके यहाँ अभिचार ,टोना -टोटका ,बाधा आदि है की नहीं ,इसके जाते ही वहां यह प्रभाव सामने आ जाते हैं और सामान्यतया दूर हो जाते हैं |किन्तु कोई उच्च शक्ति है या भेजी गई है तो वह पूरी तरह हटनी तो तांत्रिक द्वारा ही संभव है ,हाँ उसका असर जरुर कम होने लगता है और वह खुल जाती है की उसका प्रभाव घर में है और व्यक्ति जान जाता है की वह गंभीर नकारात्मक प्रभाव में है |उन्हें फिर अच्छे तांत्रिक से उसका उपाय करवाना चाहिए |...........................................................................हर-हर महादेव 

दिव्य डिब्बी /गुटिका के विविध उपयोग

जैसा उद्देश्य वैसा उपयोग चमत्कारी डिब्बी का
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                     सामान्यरूप से हर किसी की चाह होती है की लोग उनकी और आकर्षित हों ,देखकर खींचे चले आयें ,जो मिले प्रभावित हो ,जहाँ जाए किसी काम से वहां सफलता मिले ,कहीं किसी समस्या-परेशानी का सामना न करना पड़े |हर इंसान के अन्दर यह कामना होती है की उसका व्यक्तित्व ऐसा आकर्षक हो की लोग चुम्बक की तरह खिचे चले आये ,उसका व्यतित्व सम्मोहक हो |हर व्यक्ति पर उसका प्रभाव पड़े ,कार्य-व्यवसाय के क्षेत्र के लोग अनुकूल हों ,सफलता मिले ,उन्नति हो |यह असंभव नहीं है |यह संभव है तंत्र के माध्यम से |इस हेतु थोड़े से नियम और सावधानी के साथ यदि दिव्य गुटिका /डिब्बी का प्रयोग किया जाए |यह गुटिका तंत्र की उन दिव्य चमत्कारी वस्तुओं से परिपूर्ण हैं जो किसी के भी जीवन में चमत्कार कर सकती है |इसकी क्षमता की कोई सीमा नहीं है |इससे वह सबकुछ पाया जा सकता है जो एक सामान्य व्यक्ति की इच्छा होती है ,यद्यपि इसके अनेक अलौकिक प्रयोग भी है ,जो असंभव कार्य भी कर सकते हैं पर उनसके लिए इसपर विशिष्ट क्रियाएं करनी होती हैं |कोई क्रिया न भी की जाए और सामान्य पूजा के साथ पवित्रता राखी जाए तो उपरोक्त लाभ मिलते ही हैं |
                       इस चमत्कारिक दिव्य गुटिका के मुख्य अवयव हत्थाजोड़ी और सियार्सिंगी होते है ,जिनके साथ श्वेतार्क ,नागदौन ,महायेगेश्वरी ,एरंड ,अमरबेल ,हरसिंगार आदि विभिन्न 13 अन्य अद्भुत ,विशिष्ट और चमत्कारिक वनस्पतियाँ और वस्तुएं होती हैं ,जो विभिन्न धनात्मक और सकारात्मक शक्तियों जैसे चामुंडा ,काली ,शिव ,दुर्गा ,गणेश ,लक्ष्मी ,शनि ,वृहस्पति ,विष्णु आदि का प्रतिनिधित्व करते हैं और मिलकर ऐसा अद्भुत प्रभाव उत्पन्न करते हैं की यह चमत्कारिक प्रभाव युक्त हो जाती है |यह सभी वस्तुएं विशिष्ट उच्च स्तर के साधक द्वारा विशिष्ट मुहूर्त में प्राण-प्रतिष्ठित और अभिमंत्रित होती हैं ,जबकि उपयोग किये गए सामान भी विशिष्ट मुहूर्त में ही विशिष्ट तांत्रिक पद्धति से निष्कासित और प्राप्त किये हुए होते हैं |उपरोक्त वस्तुओं की उपयुक्त और विशिष्ट मुहूर्त में विशिष्ट तांत्रिक साधक द्वारा की गयी तांत्रिक क्रिया के बल पर यह गुटिका अति शक्तिशाली वशिकारक-आकर्षक -सुरक्षाप्रदायक ,धन-संमृद्धि प्रदायक हो जाती है |इससे निकलने वाली तरंगे साथ रखने वाले धारक के साथ साथ ही आसपास के लोगों को भी प्रभावित करती है, जिससे धारक को उपरोक्त लाभ मिलने लगते हैं |
                इस डिब्बी के उद्देश्य विशेष के साथ प्रयोग भी विशिस्ट हो जाते हैं |लक्ष्मी प्राप्ति हेतु इस पर लक्ष्मी या कमला के मंत्र जप किये जा सकते है |यह शेयर ,सट्टा ,लाटरी ,कमोडिटी ,मार्केटिंग ,सेल्स से जुड़े लोगों को स्वाभाविक लाभ देती है क्योकि इसमें आकस्मिक आय प्रदान करने में सहयोगी tantra वस्तुएं है जो आकर्षण शक्ति बढ़ाने के साथ आय बढाती हैं |नकारात्मक ऊर्जा हटाने के लिए इसपर काली ,चामुंडा ,दुर्गा के मंत्र विशिष्ट प्रभाव उत्पन्न करते हैं |यह अभिचार हटाने और उसका प्रभाव कम करने का काम करती है |भूत-प्रेत ,वायव्य बाधाओं को इससे कष्ट होता है और काली ,दुर्गा के मंत्र से उनकी शक्ति कमहोती है |गणपति मंत्र करने से सुख -समृद्धि प्राप्त होती है |आकर्षण ,वशीकरण मंत्र का जप करने से आकर्षण प्रभाव उत्पन्न होता है |ग्रहण में मंत्र इस पर जपने से इसका प्रभाव और मंत्र का प्रभाव दोनों बढ़ते हैं |.............................................................हर-हर महादेव

चमत्कारी- दिव्य गुटिका /डिब्बी

चमत्कारी- दिव्य गुटिका /डिब्बी
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रविपुष्य योग में निर्मित ,प्राण प्रतिष्ठित ,अभिमंत्रित दिव्य गुटिका
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               सामान्यरूप से हर किसी की चाह होती है की लोग उनकी और आकर्षित हों ,देखकर खींचे चले आयें ,जो मिले प्रभावित हो ,जहाँ जाए किसी काम से वहां सफलता मिले ,कहीं किसी समस्या-परेशानी का सामना न करना पड़े |हर इंसान के अन्दर यह कामना होती है की उसका व्यक्तित्व ऐसा आकर्षक हो की लोग चुम्बक की तरह खिचे चले आये ,उसका व्यतित्व सम्मोहक हो |हर व्यक्ति पर उसका प्रभाव पड़े ,कार्य-व्यवसाय के क्षेत्र के लोग अनुकूल हों ,सफलता मिले ,उन्नति हो |यह असंभव नहीं है |यह संभव है तंत्र के माध्यम से |इस हेतु थोड़े से नियम और सावधानी के साथ यदि हमारे द्वारा निर्मित दिव्य गुटिका /डिब्बी का प्रयोग किया जाए |यह गुटिका तंत्र की उन दिव्य चमत्कारी वस्तुओं से परिपूर्ण हैं जो किसी के भी जीवन में चमत्कार कर सकती है |इसकी क्षमता की कोई सीमा नहीं है |इससे वह सबकुछ पाया जा सकता है जो एक सामान्य व्यक्ति की इच्छा होती है ,यद्यपि इसके अनेक अलौकिक प्रयोग भी है ,जो असंभव कार्य भी कर सकते हैं पर उनसके लिए इसपर विशिष्ट क्रियाएं करनी होती हैं |कोई क्रिया न भी की जाए और सामान्य पूजा के साथ पवित्रता राखी जाए तो उपरोक्त लाभ मिलते ही हैं |
             दिव्य गुटिका या चमत्कारी डिब्बी विशिष्ट वस्तुओं -वनस्पतियों -पदार्थों का एक अद्भुत संग्रह है अर्थात एक डिब्बी में २१ अलौकिक शक्तियां रखने वाली वस्तुएं इकठ्ठा की गयी है |हर वस्तु उसके लिए उपयुक्त विशिष्ट मुहूर्त में तांत्रिक पद्धतियों से निकाली -प्राण प्रतिष्ठित और अभिमंत्रित की गयी होती है ,इसके बाद फिर इसे सम्मिलित रूप से विशिष्ट मुहूर्त में अभिमंत्रित किया जाता है जिससे इसकी अलौकिकता और बढ़ जाती है | इस चमत्कारिक दिव्य गुटिका के मुख्य अवयव रवि पुष्य योग में निष्काषित अथवा अभिमंत्रित -प्राण प्रतिष्ठित हत्थाजोड़ी और सियार्सिंगी होते है ,जिनके साथ श्वेतार्क ,नागदौन ,महायेगेश्वरी ,एरंड ,अमरबेल ,हरसिंगार ,हाथी दांत ,गोरोचन ,पिली कौड़ी ,गोमती चक्र आदि विभिन्न २१ अद्भुत ,विशिष्ट और चमत्कारिक वनस्पतियाँ और वस्तुएं होती हैं ,जो मिलकर ऐसा अद्भुत प्रभाव उत्पन्न करते हैं की यह चमत्कारिक प्रभाव युक्त हो जाती है |[क्षमा के साथ सम्पूर्ण वस्तुओं का नाम नहीं दे सकते क्योकि यह हमारा व्यक्तिगत शोध है ]|
                 यह सभी वस्तुएं विशिष्ट उच्च स्तर के साधक द्वारा विशिष्ट मुहूर्त में प्राण-प्रतिष्ठित और अभिमंत्रित होती हैं ,जबकि उपयोग किये गए सामान भी विशिष्ट मुहूर्त में ही विशिष्ट तांत्रिक पद्धति से निष्कासित और प्राप्त किये हुए होते हैं |उपरोक्त वस्तुओं की उपयुक्त और विशिष्ट मुहूर्त में विशिष्ट तांत्रिक साधक द्वारा की गयी तांत्रिक क्रिया के बल पर यह गुटिका अति शक्तिशाली वशिकारक-आकर्षक -सुरक्षाप्रदायक ,धन-संमृद्धि प्रदायक हो जाती है |इससे निकलने वाली तरंगे साथ रखने वाले धारक के साथ साथ ही आसपास के लोगों को भी प्रभावित करती है, जिससे धारक को उपरोक्त लाभ मिलने लगते हैं |इस गुटिका की एक विशेषता है की यह आपके घर की या आपकी नकारात्मक ऊर्जा को सामने ला देती है |यदि आप किसी नकारात्मक प्रभाव से ग्रस्त हैं तो वह कुछ दिक्कतें उत्पन्न कर सकती हैं ,क्योकि उन्हें यह महसूस होता है की उन्हें निकाला या हटाया जा रहा है ,इसलिए शुरू के कुछ समय वह उत्पात मचा सकते हैं जिससे आप यह सोचें की यह सब इस गुटिका के कारण हो रहा है |यदि कुछ समय धैर्य से निकल गया तो सारी परिस्थितियां नियंत्रण में आ जाती हैं |
                  इसमें उपयोग की गयी हत्थाजोड़ी में माता चामुंडा का वास माना जाता है |इस जड़ी का सर्वाधिक प्रभाव इसकी सम्मोहंनशीलता है | साधक [व्यक्ति] इसे लेकर कही भी जाये उसका विरोध नहीं होगा |सम्बंधित मनुष्य उसके अनुकूल आचरण और व्यवहार करेगा |इस जड़ी के इसी गुण [सम्मोहनशीलता ]के कारण ही बहुत से लोग इसका प्रयोग प्रेम सम्बन्धी मामलों में भी करते हैं ,,|पति-पत्नी के मामलों में यह अत्यंत उपयोगी भी है और सदुपयोग भी |सम्मोहन और वशीकरण [आकर्षण ]के अतिरिक्त इसका प्रयोग धन वृद्धि ,सुरक्षा ,सौभाग्य वृद्धि ,व्यापार बाधा हटाने आदि में भी किया जाता है और बेहद प्रभावी भी है | इसकी सम्पूर्ण विधि पूर्वक प्राण-प्रतिष्ठा इसे अमूल्य बना देती है |धारक या साधक यात्रा ,विवाद ,प्रतियोगिता ,साक्षात्कार ,द्युतक्रीडा ,और युद्धादी में यह साधक की रक्षा करके उसे विजय प्रदान करती है |भूत-प्रेत आदि वायव्य बाधाओं का उसे कोई भय नहीं रहता ,धन-संपत्ति देने में भी यह बहुत चमत्कारी सिद्ध होती है |इस पर विभिन्न प्रकार के वशीकरण-आकर्षण-सम्मोहन के प्रयोग किये जाते हैं ,विदेश यात्रा की रुकावटें दूर करने की क्रियाएं होती हैं ,घर की सुरक्षा की क्रियाएं होती हैं ,धन-संपत्ति-आकस्मिक लाभ सम्बन्धी क्रियाएं होती हैं ,व्यापार वृद्धि प्रयोग होते हैं ,मुकदमे में विजय ,विरोधियों की पराजय की क्रियाएं होती है ,,इसे जेब में रखा जाये तो सम्मान-सम्मोहंशीलता-प्रभाव बढ़ता है ,सामने के व्यक्ति का वाकस्तम्भन होता है ,आकस्मिक आय के स्रोत बनते हैं
                    दूसरी वस्तु सियार्सिंगी शत्रु पराभव ,सामाजिक सम्मान ,शरीर रक्षा ,श्री समृद्धि ,आकर्षण ,वशीकरण ,सम्मोहन ,धन-सम्पदा ,सुख शान्ति के लिए उपयोग की जा सकती है |किसी शुभ तांत्रिक मुहूर्त में प्राण प्रतिष्ठित और अभिमंत्रित सियारसिंगी वाद-विवाद ,युद्ध ,संकट ,आपदा ,से बचानेवाला भी सिद्ध होता है |यह रक्षा कार्यों में अद्भुत सफलतादायक कहा जाता है |इसे धारण करनेवाला व्यक्ति दुर्घटना ,विवाद ,युद्ध अथवा किसी अन्य संकट में पड़ने पर तुरंत ही आप्दामुक्त हो जाता है |इस पर धन-समृद्धि ,वशीकरण ,सम्मोहन ,सुरक्षा से सम्बंधित विभिन्न क्रियाएं भी होती हैं ,जैसी आवश्यकता हो |केवल मंत्र और पद्धति ही बदलती है सियारसिंगी वही रहता है |इसे रखने वाला व्यक्ति जहाँ भी जाता है वहां का वातावरण उसके अनुकूल हो जाता है | इसी प्रकार इस गुटिका में शामिल २१ वस्तुओं में से हर वस्तु का अपना एक अलग और विशिष्ट बहुआयामी प्रभाव है |इनके बारे में लिखने पर कई पोस्ट कम हो जायेंगे |वैसे भी यह हमारे गोपनीय खोज हैं अतः सभी वस्तुओं और उनके प्रभावों के बारे में बता पाना भी संभव नहीं |
                 प्रतिदिन प्रातः काल स्नानादि के बाद ,अपने ईष्ट पूजा के साथ ही इस गुटिका /डिब्बी को भी भगवती स्वरुप मानकर पूजा कर दिया जाता है |धुप-दीप के साथ ,इसके साथ ही इस पर सिन्दूर और लौंग भी चढ़ाया जाता है |फिर इसे बंद करके इसे जेब में रख के कार्य व्यवसाय पर भी जाया जा सकता है और पूजा स्थान पर भी रहने दिया जा सकता है |यदि कार्य व्यवसाय पर साथ ले जाते हैं तो लाभ तो अधिक होता है पर थोड़ी पवित्रता का ध्यान रखना होता है ,अपवित्र हाथों से इसे न छुआ जाए और अशुद्ध और अपवित्र अथवा सूतक वाले स्थानों पर इसे न ले जाएँ |शाम को घर आने पर इसे वापस पूजा स्थान पर रख दें |इस पर यदि "ॐ नमश्चंडिकाये नमः " मंत्र का जप रोज १०८ बार किया जाए तो इसका पूर्ण प्रभाव मिलता है |
                      इस गुटिका/डिब्बी के उपयोग से धन वृद्धि ,सम्मोहन ,वशीकरण ,वायव्य बाधाओं से सुरक्षा ,शत्रुओं से सुरक्षा ,अभिचार कर्म से सुरक्षा ,संपत्ति संवर्धन ,यात्रा में सुरक्षा ,विवाद-प्रतियोगिता में सफ़लता ,साक्षात्कार में सफ़लता ,द्युतक्रीडा -शेयर -सट्टा -लाटरी -कमोडिटी के कार्यों में सफलता ,शत्रु से अथवा मुकदमे में विजय ,अधिकारी का अनुकूलन -वशीकरण ,गृह दोष-वास्तु दोष का शमन ,गृह कलह का शमन ,ग्रह बाधा-अशुभत की समाप्ति ,प्रियजनों का अनुकूलन-वशीकरण किया जा सकता है |इसके अतिरिक्त भी यह गुटिका के अनेकानेक और विशिष्ट उपयोग हैं ,जिनके लिए विविध प्रकार की क्रियाएं की जा सकती है ,इसकी क्षमता की कोई सीमा नहीं है ,उद्देश्य के अनुसार भिन्न क्रियाएं विभिन्न मनोकामनाएं पूर्ण कर सकती हैं |यह गुटिका हमारे वर्षों के tantra क्षेत्र में शोध का परिणाम है और इसके परिणाम अनुभूत हैं |........................................................................हर-हर महादेव 

सम्भोग से समाधि का विज्ञानं

सम्भोग से समाधि:::::प्रकृति का अद्भुत विज्ञान 
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तंत्र के एक मुख्य मार्ग कुंडलिनी जागरण में सम्भोग से समाधि की बात कही गयी है ,यद्यपि अन्य रास्ते भी होते हैं ,किन्तु इस मार्ग की विशेषता यह है की यह वही कार्य कुछ ही समय में संपन्न कर सकता है जिसे अन्य मार्ग वषों में शायद कर पायें |इसकी पद्धति पूर्ण वैज्ञानिक है और शारीरिक ऊर्जा को इसका माध्यम बनाया जाता है |धनात्मक और ऋणात्मक की आपसी शार्ट सर्किट से उत्पन्न अत्यंत तीब्र ऊर्जा को पतित होने से रोककर उसे उर्ध्वमुखी करके इस लक्ष्य को प्राप्त किया जाता है ,यद्यपि यह अत्यंत कठिन और खतरनाक मार्ग भी है जिसमे ऊर्जा न सँभालने पर पूरी सर्किट के ही भ्रष्ट होने का खतरा होता है ,पर यह मार्ग वह उपलब्धियां कुछ ही समय में दे सकता है ,जिसे पाने में अन्य मार्गों से वर्षों समय लगता है और निश्चितता भी नहीं होती की मिलेगा ही |यह मार्ग यद्यपि अत्यंत विवादास्पद रहा है किन्तु इसकी वैज्ञानिकता संदेह से परे है और सिद्धांत पूरी तरह प्रकृति के नियमो के अनुकूल है |तभी तो प्रकृति पर नियंत्रण का यह सबसे उत्कृष्ट माध्यम है ,और किसी न किसी रूप में अन्य माध्यमो में भी अपनाया जाता है |सामान्य पूजा-अनुष्ठानो में भी ब्रह्मचर्य के पालन की हिदायत दी जाती है ,उसका भी वाही उद्देश्य होता है की ऊर्जा संरक्षित करके उसे उर्ध्वमुखी किया जाए |तंत्र में अंतर बस इतना ही आता है की इस ऊर्जा को तीब्र से तीब्रतर करके रोका और उर्ध्वमुखी किया जाता है ,इस हेतु प्रकृति की ऋणात्मक शक्ति को सहायक बनाया जाता है तीब्र ऊर्जा उत्पादन में |
सम्भोग और समाधि एक ही ऊर्जा के भिन्न तल हैं|. निम्न तल यानी मूलाधार चक्र पर जब जीवन ऊर्जा की अभिव्यक्ति होती है तो यह सेक्स बन जाता है|. उच्च तल पर समान उर्जा भगवत्ता बन जाती है जिसे समाधि कहा गया है|.यौन ऊर्जा का अर्थ वीर्य से नही है.| वीर्य मात्र यौन ऊर्जा का भौतिक तल है.| यौन ऊर्जा का वाहक है वीर्य.| यौन ऊर्जा ऊपर गति करती है| इसका यह अर्थ नही है वीर्य ऊपर चढ़ जाता है|. वीर्य के ऊपर चढने का कोई उपाय नही है|. यह मनस ऊर्जा है और अदृश्य है|. इसका केवल अनुभव होता है. जैसे हवा अदृश्य है और उसका केवल अनुभव होता है.| हमारी रीढ़ की हड्डी में ३ सूक्ष्म नाड़िया हैं - इडा- पिंगला- सुषुम्ना. यह मनस उर्जा सुषुम्ना के द्वारा ऊपर का अभियान करती है. इसका सामना सात स्टेशनों से पड़ता है जिसे चक्र कहते हैं. और इस पूरी ऊर्जा की यात्रा को 'कुण्डलिनी जागरण' कहते हैं.|ध्यान और तंत्र की विधियों द्वारा इस ऊर्जा को ऊपर ले जाया जा सकता है.| यह विधिया आज से हजारों वर्ष पूर्व विश्व के प्रथम गुरु और मूल शक्ति भगवान शिव ने पार्वती को कहीं थी जिसे तन्त्र' में संस्कृत में संकलित किया गया है |प्रत्येक चक्र से शरीर जुडा हुआ है. और हर दूसरा शरीर विपरीत है. अर्थात पुरुष का दुसरा शरीर स्त्री का है और स्त्री का दुसरा शरीर पुरुष का. इसी लिए स्त्रियाँ पुरुषों से अधिक धैर्यवान होती हैं क्यूँ की उनका दूसरा शरीर पुरुष का है जो अपेक्षाकृत मजबूत है.| अर्धनारीश्वर की प्रतिमा यही सन्देश देती है|

.इस प्रकार प्रत्येक शरीर में ७ चक्रों से जुड़े ७ शरीर होते हैं. एक -एक चक्र के जागरण के साथ एक एक शरीर सक्रीय होने लगता है. |शरीर परस्पर मिल जाते हैं. कुंडली जागरण की यह प्रक्रिया ' अंतर सम्भोग' कही जाती है क्यूँ की एक स्त्री शरीर अपने ही पुरुष शरीर से संयुक्त हो जाती है, इसमें ऊर्जा नष्ट नही होती बल्कि ऊर्जा का एक अनन्य वर्तुल बन जाता है जो आध्यात्मिक जागरण और आंतरिक आनंद के रूप में परिलक्षित होता है. संतो के चेहरे पर खुमारी, तेज, दिव्यता का यही कारण है.| इस अंतर सम्भोग के अनेक दिव्य परिणाम होते हैं| बाहर के सेक्स से अनंत गुना आनंद और तृप्ति उपलब्ध होती है.| प्रत्येक चक्र के जागरण और शरीरो के मिलन से आनंद का खजाना मिलने लगता है|. बाहर सेक्स की इच्छा समाप्त हो जाती है. इसी को ब्रह्मचर्य कहते हैं.| व्यक्ति ब्रह्म जैसा हो जाता है. |उसकी चर्या ब्रह्म जैसी हो जाती है. शिव लिंग का प्रतीक इसी अंतर सम्भोग को परिलक्षित करता है.| चक्रों के जगने के साथ उसके सम्बंधित सिद्धियाँ मिल जाती हैं- जैसे ह्रदय चक्र के जगने के साथ विराट करुना व प्रेम के आनंद का भान होने लगता है|. आज्ञा चक्र के जगने के साथ व्यक्ति तीनो कालो को जानने वाला हो जाता है.| विशुद्ध चक्र के जागने के साथ व्यक्ति जो बोले वह सत्य होने लगता है.| प्राचीन आशीर्वाद की कथाये उन्ही ऋषियों की क्षमताये हैं जिनका विशुद्ध चक्र सक्रीय हो गया था.| सहस्रार चक्र आखिरी चक्र है जिसके सक्रीय होते ही व्यक्ति परम धन्यता को उपलब्ध हो जाता है| जब वह ब्रह्म ही हो जाता है- 'अहम् ब्रह्मास्मि' का उद्घोष| . उसके शक्ति के अंतर्गत समस्त सृष्टि की शक्तियां उसके पास आ जाती हैं लेकिन वह इनका उपयोग नही करता क्यूँ की उसे यह भी बोध हो जाता है की सृष्टि व इसके नियम उसी के द्वारा बनाये गये हैं.| परम ज्ञान की अवस्था को समाधि कहा गया है|. समाधि का अर्थ है समाधान.| इसकी अनुभूति चौथे शरीर से ही होने लगती है. चौथे शरीर से ही परमात्मा का ओमकार स्वरूप पकड़ में आने लगता है.|..............................................................................हर-हर महादेव 

तंत्र में पांच मकार :क्यों -कब -कैसे ?

तंत्र में पंचमकार ,क्यों-कब-कैसे 
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साधारनतया यह विश्वास किया जाता है की मंत्र ,यन्त्र, पंचमकार ,जादू ,टोना आदि जिस पद्धति में हो वही तंत्र है |कुछ इस मत के हैं की पंचमकार ही सभी तंत्रों का आवश्यक अंग है |पंचमकार का अर्थ है जिसमे पांच मकार अर्थात पांच म शब्द से शुरू होने वाले अवयव आये यथा मांस-मदिरा-मत्स्य-मुद्रा और मैथुन |कौलावली निर्णय में यह मत दिया है की मैथुन से बढ़कर कोई तत्व् नहीं है| इससे साधक सिद्ध हो जाता है ,जबकि केवल मद्य से भैरव ही रह जाता है ,मांस से ब्रह्म ,मत्स्य से महाभैरव और मुद्रा से साधकों में श्रेष्ठ हो जाता है |केवल मैथुन से ही सिद्ध हो सकता है |
इस सम्बन्ध में कुछ बातें ध्यान देने की हैं |प्रथम: पंचामकारों का सेवन बौद्धों की बज्रयान शाखा में विकसित हुआ |इस परंपरा के अनेक सिद्ध, बौद्ध एवं ब्राह्मण परंपरा में सामान रूप से गिने जाते हैं |बज्रयानी चिंतन ,व्यवहार और साधना का रूपांतर ब्राह्मण परंपरा में हुआ ,जिसे वामाचार या वाम मार्ग कहते हैं |अतः पंचमकार केवल वज्रयानी साधना और वाम मार्ग में मान्य है |वैष्णव, शौर्य, शैव ,व् गाणपत्य तंत्रों में पंचमकार को कोई स्थान नहीं मिला |काश्मीरी तंत्र शास्त्र में भी वामाचार को कोई स्थान नहीं है |वैष्णवों को छोड़कर शैव व् शाक्त में कहीं कहीं मद्य, मांस व् बलि को स्वीकार कर लिया है ,लेकिन मैथुन को स्थान नहीं देते |

वाममार्ग की साधना में भी १७-१८ वि सदी में वामाचार के प्रति भयंकर प्रतिक्रिया हुई थी |विशेषकर महानिर्वाण तंत्र ,कुलार्णव तंत्र ,योगिनी तंत्र ,शक्ति-संगम तंत्र आदि तंत्रों में पंचाम्कारों के विकल्प या रहस्यवादी अर्थ कर दिए हैं |जैसे मांस के लिए लवण ,मत्स्य के लिए अदरक ,मुद्रा के लिए चर्वनिय द्रव्य , मद्य के स्थान पर दूध ,शहद ,नारियल का पानी ,मैथुन के स्थान पर साधक का समर्पण या कुंडलिनी शक्ति का सहस्त्रार में विराजित शिव से मिलन |यद्यपि इन विकल्पों में वस्तु भेद है ,लेकिन महत्वपूर्ण यह है की वामाचार के स्थूल पंचतत्व शक्ति की आराधना के लिए आवश्यक नहीं हैं |लेकिन यह भी सही है की अभी भी अनेक वामाचारी पंचमकरो का स्थूल रूप में ही सेवन करते हैं |अतः शक्ति आराधना के लिए स्थूल रूप में पंचमकार न तो आवश्यक है न ही उनसे कोई सिद्धि प्राप्त होने की संभावना है | सारे पृष्ठभूमि पर दृष्टि डालने पर ज्ञात होता है की मूलतः पंचमकारों के उपयोग की शुरुआत संभवतः आवश्यक तत्व के रूप में नहीं हुई होगी ,अपितु यह तात्कालिक सहजता के अनुसार साधना को परिवर्तित करने के लिए हुई होगी |जब यह शुरू हुआ उस परिवेश के अनुसार मांस-मदिरा-मत्स्य का उपयोग करने वालों के लिए एक साधना पद्धति का विकास हुआ होगा जिसमे यह पदार्थ अनुमान्य किये गए ,सामान्य वैदिक साधनों में मैथुन की वर्जना रहती है जिससे भी असुविधा महसूस हुई होगी और इसे अनुमन्य कर इसके साथ विशेष विधि और नियमो का विकास किया गया ,साधनाओं में पहले से मुद्रादी का उपयोग होता था इसे सम्मिलित कर लिया गया |कुल मिलाकर एक ऐसी पद्धति विकसित की गयी जिसमे सामान्य जन भी भागीदारी कर सकें |चूंकि यह जन सामान्य के पारिवारिक और दैनिक जीवन के अनुकूल था अतः इसका बहुत तेजी से विकास और विस्तार हुआ ,साथ ही सुधार भी आये और कुछ दोष भी कुछ जगहों पर जुड़ते गए |किन्तु मूल रूप से यही आवश्यक तत्व नहीं थे ,इनके वैकल्पिक स्वरुप भी समानांतर थे और ग्राह्य भी हुए |शक्ति साधना के क्रम में शारीरिक ऊर्जा और उग्रता बढ़ाने के साथ ही दैनिक असुविधा के दृष्टिगत इनका विकास हुआ किन्तु विकल्पों के साथ भी साधना संभव थे और होते भी थे |अतः यह कहना की यह आवश्यक तत्व हैं निरर्थक है |...................................................................हर-हर महादेव

भूत-प्रेत ,वायव्य बाधाएं और तांत्रिक अभिचार

भूत-प्रेत ,वायव्य बाधाएं और तांत्रिक अभिचार
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             भूत-प्रेतों ,वायव्य बाधाओं और तांत्रिक अभिचार पर बहुत लोगों को विश्वास होता है बहुतों को नहीं ,जब तक व्यक्ति का अनहोनियों से सामना नहीं होता ,जब तक अनचाही-असामान्य घटनाएं नहीं होती ,अदृश्य शक्ति का अहसास नहीं होता व्यक्ति मानता नहीं की ऐसा कुछ होता है ,,समय अच्छा रहते ,सामान्य स्थिति में तार्किक बुद्धि विश्वास नहीं करती ,पर परेशान होता है तब ज्योतिषियों-तांत्रिको-पंडितों-साधकों-मंदिरों-मस्जिदों -मजारों पर दौड़ने लगता है ,,कभी हल मिलता है कभी नहीं ,इसके बहुत से कारण होते हैं .
          भूत-प्रेत तब बनते हैं जब किसी व्यक्ति की असामान्य मृत्यु हो जाए और उसका शरीर अचानक काम करना बंद कर दे ,ऐसी स्थिति में उसकी कोशिकाओं की संरक्षित ऊर्जा से सम्बंधित विद्युत् ऊर्जा जो सूक्ष्म शरीर से जुडी होती है ,क्षरित नहीं हो पाती और सूक्ष्म शरीर के माध्यम से आत्मा को जोड़े रखती है ,आत्मा मुक्त नहीं हो पाती ,,व्यक्ति की ईच्छाएं ,आकांक्षाएं उसके मन में जीवित रहती हैं किन्तु उन्हें पूरा करने के लिए शरीर नहीं होता ,,ऐसी स्थिति में वे अपनी अतृप्त आकांक्षाएं पूरी करने के लिए अन्य व्यक्ति के शरीर को माध्यम बनाते हैं ,कभी यह सीधे किसी व्यक्ति के शरीर पर अधिकार कर लेते है ,कभी उन्हें डराकर उनमे प्रवेश कर जाते हैं ,,कभी-कभी ये सदैव साथ न रहकर अपनी आवश्यकतानुसार व्यक्ति के शरीर को प्रभावित करते हैं ,यह सब इनके शक्ति पर निर्भर करता है ,आवश्यक नहीं की कमजोर ही इनके शिकार हों किन्तु अक्सर बच्चे-महिलायें-नव विवाहिताएं-गर्भावस्था वाली महिलायें-सुन्दर कन्याएं-कमजोर मनोबल वाले पुरुष-ठंडी प्रकृति के व्यक्ति इनके आसान शिकार होते हैं ,यद्यपि यह किसी को भी प्रभावित कर सकते है अगर शक्तिशाली हैं तो ,चाहे परोक्ष करें या अपरोक्ष ,,
            इनकी कई श्रेणियां होती है ,जो इनके शक्ति के अनुसार होती है ,,भूत-चुड़ैल कम शक्ति रखते हैं ,प्रेत उनसे अधिक शक्ति रखते हैं ,बीर-शहीद आदि प्रेतों से भी शक्तिशाली होते हैं ,जिन्न-ब्रह्म राक्षस इनसे भी अधिक शक्तिशाली होते हैं, डाकिनी-शाकिनी-पिशाच-भैरव आदि और शक्तिशाली नकारात्मक शक्तियां हैं ,
 ,,        जिन स्थानों पर पहले कभी बहुत मारकाट हुई हो ,युद्ध हुए हों वहां इनकी संख्या अधिक होती है ,अपने मरने के स्थान से भी इनका लगाव होता है यद्यपि ये कहीं भी आ जा सकते हैं ,श्मशानों -कब्रिस्तानों आदि अंत्येष्टि के स्थानों पर ये अधिकता में पाए जाते है ,,ऐसी जगहों जहां अन्धेरा रहता हो ,नकारात्मक ऊर्जा हो ,गन्दगी हो ,सीलन हो ,प्रकाश की पहुँच न हो वहां और कुछ वृक्षों -वनस्पतियों के पास इन्हें शांति मिलती है और इन्हें अच्छा लगता है अतः ये वहां रहना पसंद करते है ,यद्यपि कुछ शक्तिशाली आत्माएं मंदिरों -मजारों-मस्जिदों तक में जा सकती है ,राजधानियों में ,खँडहर महलों में,पहले के युद्ध मैदानों के आसपास ,सडकों के आसपास के वृक्षों पर ,चौराहों आदि पर जहां अधिक दुर्घटनाएं हुई हों ये अधिकता में पाए जाते हैं |
           इनकी शक्ति रात्री में बढ़ जाती है क्योकि इन्हें वातावरण की रिनात्मक ऊर्जा से सहारा मिलता है और इनके नकारात्मकता की क्षति नहीं होती ,अँधेरी रातों में ,गर्मी की दोपहर में यह अधिक क्रियाशील होते हैं ,यद्यपि यह चांदनी रातों में और दिन में भी क्रियाशील हो सकते हैं ,कुछ शक्तिया पूर्णिमा के चन्द्रमा का सहारा लेकर भी कुछ लोगों को अधिक परेशान करती है ,क्योकि पूर्णिमा -अमावस्या को कुछ लोगों को मानसिक तनाव -डिप्रेसन की परेशानी होती है ,ऐसे में यह उन्हें अधिक परेशां करते हैं |
        कुछ लोग दुर्भावनावश अथवा दुश्मनी में कुछ लोगों पर तांत्रिक टोटके कर देते हैं या तांत्रिक की सहायता से अभिचार करवा देते हैं ,कभी कभी तांत्रिक इन अभिचारों के साथ आत्माएं भी संयुक्त कर भेज देते हैं ,यद्यपि यह प्रक्रिया सामान्य भूत-प्रेतों के प्रभाव से भिन्न होती है किन्तु यह अधिक परेशान करती है ,और इसका इलाज तांत्रिक ही कर सकता है ,इलाज में भी परस्पर शक्ति संतुलन प्रभावी होता है ,,टोटकों और अभिचारों का उर्जा विज्ञान भिन्न होता है जो वस्तुगत ऊर्जा और अभिचार करने वाले के मानसिक बल पर निर्भर करता है ,इनमे दिन-समय-मुहूर्त-स्थान-वस्तु -सामग्री-पद्धति का विशिष्ट संयोग और शक्ति होता है |यह क्रिया किसी भी रूप में व्यक्ति को प्रभावित कर सकती है ,मानसिक तनाव ,उन्नति में अवरोध,व्यापार में नुक्सान ,दूकान बंधना ,कार्य क्षेत्र में तनाव ,मन न लगना ,दुर्घटनाएं,मानसिक विचलन-डिप्रेसन,अशुभ शकुन,अनिद्रा ,पतन ,दुर्व्यसन,निर्णय में गलतियां ,कलह,मारपीट आपस में ,मतभिन्नता आदि इसके कारण से उत्पन्न हो सकते हैं .|.................................................................................हर-हर महादेव

पूजा -अनुष्ठान का विज्ञानं

तंत्र-मंत्र -पूजा-अनुष्ठान चमत्कार नहीं सब प्रकृति के विज्ञानं और नियम हैं 
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              यह ब्रह्माण्ड कुछ विशिष्ट नियमों से संचालित होता है ,इसके अपने निश्चित सूत्र हैं नियम हैं ,ऊर्जा संरचना है ,क्रिया प्रतिक्रिया का सिद्धांत है ,जिसे प्रकृति के नियम कहते हैं ,सूत्र कहते हैं |इन्ही नियमो के अन्वेषण के आधार पर आधुनिक भौतिक विज्ञान के चमत्कारिक समझे जाने वाले आविष्कारों का संसार खड़ा है |जिस कार्य ,घटना या प्रभाव के कारणों और उसके पीछे के नियमों का हमें पता होता है ,वे हमें सामान्य और तर्कसंगत लगती हैं ,,पर जिन नियमो का हमें ज्ञान नहीं होता और हम उन नियमो के अंतर्गत कुछ घटता हुआ देखते हैं ,तो उन घटनाओं के कारणों का हमें ज्ञान नहीं हो पाता और हम उन्हें चमत्कार मान लेते हैं |हमारा सनातन धर्म एक पूर्ण विज्ञानं है |इसे धर्म का नाम इस लिए देते हैं की हम इसको मानव कर्तव्य समझ मानते हैं अतः यह मानव धर्म है सभी मानवों का |सनातन धर्म इन्ही ब्रह्माण्ड के सूत्रों का धर्म है |सनातन धर्म मतलब सनातन विज्ञान अर्थात ब्रह्माण्ड का प्रकृति का विज्ञानं ,सूत्र ,नियम |
       आज चल रही कारें ,मोटरें ,वायुयान ,राकेट कल तक लोगों के लिए चमत्कार थे या जो जंगलों में रहते हैं उनके लिए आज भी चमत्कार ही हैं ,,कम्प्यूटर ,कैलकुलेटर ,टेलीविजन इनसे अनजान व्यक्ति के सामने आ जाएँ तो यह उसे चमत्कार लगेंगे पर हमारे लिए सामान्य बातें हैं ,क्योकि हम इनकी तकनिकी ,नियम को जानते हैं |यह सब भौतिक विज्ञान के खोजों द्वारा संभव हुआ है जो प्रकृति के नियमो के अनुसार ही संचालित होते हैं |अचानक बिजली चमकना ,इन्द्रधनुष बनना, तूफ़ान ,चक्रवात सब प्रकृति के नियमो अथवा उनमे विक्षोभ के प्रतिक्रिया के परिणाम होते है |कोई भी क्रिया प्रकृति के नियमों के विरुद्ध हो ही नहीं सकती |प्रकृति में छेड़छाड़ होती है तो यह अपने नियम लागू कर देती है और छेड़छाड़ वालों को नष्ट करने लगती है |अगर तरंगें प्रकृति में संचालित ही न हों तो सारे रेडियो ,टेलीविजन ,टेलीफोन बेकार हो जायेंगे |चूंकि प्रकृति में पहले से तरंगे चलती हैं इसलिए यह भी चल जाती हैं |प्रकृति की ऊर्जा संरचना हर मनुष्य ,जीव ,वनस्पति ,पदार्थ में है और वह प्रकृति के सूत्रों पर ही क्रिया करते हैं |
                तंत्र-मंत्र, टोन-टोटके ,गंडे- ताबीज ,यन्त्र-मंत्र ,पूजा-अनुष्ठान ,आदि में जो भी शक्ति काम करती है ,वह प्रकृति के नियमो से ही करती है |यहाँ नियमविहीन और अकारण पत्ता तक नहीं हिलता |उस परमात्मा की यह सृष्टि उसके द्वारा निर्धारित नियमो से बंधी हुई है |अतः यह सोचना भ्रम है की गंडे -ताबीजों या तंत्र-मंत्र में कोई चमत्कार काम करता है |इसी प्रकार भूत-प्रेत ,वायव्य शक्तियां यहाँ तक की ईश्वरीय अवतरण तक सब प्रकृति के नियमो के अनुसार ही बनते है या अवतरित होते हैं ,हमें उस तकनिकी की जानकारी नहीं है ,अतः हम उसे चमत्कार मानते हैं |आधुनिक विज्ञानं से संचालित कैमरे भूतों के फोटो तक ले ले रहे हैं [[जबकि आज भी बहुत से लोग इन्हें मानते तक नहीं ,भले विज्ञानं मान ले इनका अस्तित्व ]]यह सब प्रकृति के नियमों के ही अंतर्गत है |सूक्ष्म शरीर और भिन्न शरीरों की अवधारणा सनातन धर्म में बहुत पहले से रही है जिन्हें आज विज्ञानं प्रमाणित करता जा रहा |
       वस्तुतः तंत्र-मंत्र ,योग ,पूजा -अनुष्ठान ,यज्ञ ,यन्त्र ,टोन-टोटके ,गंडे-ताबीज ,आदि में एक बृहद उर्जा विज्ञानं काम करता है ,जो ब्रह्मांडीय उर्जा संरचना ,उसकी उत्पत्ति ,क्रिया ,उसकी ऊर्जा तरंगों और उनसे निर्मित होनेवाली भौतिक ईकाइयों की उर्जा संरचना का विज्ञानं है |दुसरे शब्दों में यह प्राचीन भारतीय परमाणु विज्ञानं और सुपर सोनिक तरंगों का विज्ञान है |जहाँ तक आज का विज्ञानं अभी पहुच नहीं सका है और आधुनिक युग में इस विज्ञानं को जानने वाले नहीं हैं |पुस्तकों में इस विज्ञानं के गूढ़ विवरण रूपकों के रूप में लिखी गयी कथाओं में छिटपुट रूप से व्यक्त किये गए हैं |कुछ तकनीकियाँ पुस्तकों में रह गयी हैं जो आधुनिक विज्ञानं द्वारा परिभाषित नहीं हो पा रही हैं ,इसलिए उन्हें अंधविश्वास समझ लिया गया है ,जबकि सच्चाई यह है की अभी आधुनिक विज्ञान इतना सक्षम ही नहीं हुआ की वह उन्हें परिभाषित कर सके और उनके पीछे की तकनीकियों और नियमो को बता सके |
पूजा -पाठ ,तंत्र -मंत्र -अनुष्ठान ,साधना में विज्ञानं यहाँ तक पहुच गया है की हर जीवित अथवा मृत वस्तु या शरीर में बहुत समय तक ऊर्जा रहती है जो की उपयोगी होती है |विज्ञान ध्वनि की ऊर्जा को मान गया है ,यहाँ तक की ध्वनि से उत्पन्न विभिन्न आकृतियों को मान गया है जैसे ॐ की ध्वनि से बनने वाला श्री यन्त्र की आकृति |यहाँ तक जानकारी हो गयी है तो अन्य भी जरुर धीरे धीरे होगी क्योकि जब अबतक अन्वेषित सभी कुछ प्रकृति के नियमो से संचालित होता है तो यह कैसे अलग हो सकते हैं |कल तक तो आज की खोजें भी अंधविश्वास थे |२०० वर्ष पूर्व अचानक रेडियो की ध्वनि की जाती तो लोगों को आकाशवाणी और चमत्कार ही तो लगते |.....................................................हर-हर महादेव 

त्वचा [चर्म] रोग :::::तंत्रिकीय एवं ज्योतिषीय विश्लेषण

त्वचा [चर्म] रोग :::::तंत्रिकीय एवं ज्योतिषीय विश्लेषण
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       त्वचा रोग एक ऐसा रोग है जो कभी सामान्य इलाजो से ठीक हो जाता है कभी लाइलाज होता है |त्वचा रोगों में विभिन्न प्रकार के रोग आते है ,जिनमे सामान्य दाद-खाज से लेकर असाध्य कुष्ठ रोग तक शामिल है ,,
       ज्योतिषीय दृष्टि से त्वचा रोग का कारक बुध है ,चन्द्र और शुक्र जलीय ग्रह है और कर्क- वृश्चिक- मीन जलीय राशिया है ,इन सब पर सूर्य ,मंगल ,शनि ,राहू ,केतु का प्रभाव होने से यह रोग बढ़ता है ,उत्पत्ति का समय इनका प्रभाव समय अथवा प्रतिरोधक क्षमता में कमी का समय हो सकता है |
       तंत्र की दृष्टि में त्वचा और प्रतिरोधात्मकता की कारक भगवती काली है ,इन्ही की ऊर्जा की कमी से त्वचा रोग ,प्रतिरोधक क्षमता में कमी ,बंध्यापन ,नपुंसकत्व ,उत्साह की कमी,आती है और वायव्य बाधाये  भी परेशान कर सकती है ,काली ही रक्त निर्माण की कारक है ,अतः शरीर की प्रतिरोधक क्षमता इन्ही से उत्पन्न होती है ,,अक्सर यह देखने में आता है की त्वचा रोग के साथ ही प्रतिरोधक क्षमता में कमी आ जाती है और बंध्यापन अथवा नपुंसकत्व आने लगता है ,इसका कारण है काली का ही डिम्भ अथवा शुक्राणु निर्माण का कारक होना ,यह मूलाधार की देवी है जहा से उपरोक्त सब कुछ नियंत्रित होता है |
            बुध ग्रह को यद्यपि विष्णु से जोड़ा जाता है ,तथापि तंत्र में बुध को गणेश जी से सम्बंधित माना जाता है ,अर्थात यदि गणेश को अनुकूल बनाया जाए नियंत्रित किया जाए तो बुध के प्रभाव पर भी प्रभाव पड़ेगा और इसके प्रभाव को नियंत्रित या बलि किया जा सकता है |गणेश जी आज्ञा चक्र के देवता है और उस पर नियंत्रण करते है ,यदि इन्हें नियंत्रित करने अर्थात आज्ञा चक्र को नियंत्रित करने का प्रयास किया जाए तो मानसिक क्षमता ,आत्मविश्वास ,विचारो का केन्द्रीकरण बढ़ जाता है ,यह अकाट्य तथ्य है की यदि प्रबल आत्मविश्वास -पूर्ण एकाग्रता से मानसिक ऊर्जा को किसी निश्चित उद्देश्य के लिए प्रक्षेपित किया जाए तो वह त्वरित कार्य करता है ,इसीलिए कहा जाता है की डाक्टर पर  विश्वास,आशा रखने वाला जल्दी ठीक हो जाता है ,इसके पीछे मुख्य वजह उसका विश्वास से उत्पन्न आत्मबल होता है ,,अर्थात यदि गणपति को साधा जाए तो बुध का प्रभाव नियंत्रित होगा और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी |
           मूलाधार की देवी काली को शनि-राहू-केतु का नियंत्रक माना जा सकता है ,इन सबसे उत्पन्न प्रभाव काली के क्षेत्र के अंतर्गत आता है ,काली ही त्वचा और रक्त की उत्पत्ति करता है ,अतः यदि इन्हें सबल किया जाए और ऊर्जा नियंत्रित की जाए तो उत्पन्न होने वाली त्वचा ,त्वचा की प्रकृति पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और विकृति कम होने की संभावना बनेगी ,काली अनुकूल होने पर शनि -राहू-केतु के प्रभाव भी नियंत्रित होगे ,अधिकतर त्वचा रोग इनके कारण ही अथवा काली के कारण ही उत्पन्न होते है ,अतः यह उत्पत्ति रुक सकती है |
         उपरोक्त के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है की यदि गणेश जी और माता काली की उपयुक्त साधना /आराधना की जाए ,इनके वस्तुओ का उपयोग बढ़ाया जाए,यथा श्वेतार्क मूल धारण करना ,विशिष्ट तिलक लगाईं जाए ,मूलाधार पर विशिष्ट तांत्रिक वनस्पतियों का लेप लगाया जाए ,इनकी ऊर्जा बधाई जाए और बढ़ी ऊर्जा को नियंत्रित कर एक निश्चित दिशा में लक्षित रखा जाए तो त्वचा रोग पर नियंत्रण किया जा सकता है,प्रतिरोधक क्षमता बढाई  जा सकती है ,ग्रहों के प्रभाव पर नियंत्रण किया जा सकता है  ,,कभी-कभी त्वचा रोग वायव्य बाधाओं के कारण भी होता है ,यह क्षेत्र भी काली के ही अंतर्गत आता है ,सभी वायव्य बाधाये और नकारात्मक शक्तियों का नियंत्रण काली ही करती है ,अतः इनकी ऊर्जा बढ़ते ही यह प्रभाव भी समाप्त हो जाते है और इनसे उत्पन्न सभी समस्याए भी ,|

[उपरोक्त समस्त विश्लेषण व्यक्तिगत विचार है ,हमने अपने जानकारी के आधार पर विश्लेषित करने का प्रयास किया है ,जरुरी नहीं की हर कोई सहमत हो ].............................................................................................हर-हर महादेव 

साधना में न्यास ,और उनका महत्व

साधना में न्यास ,और उनका महत्व
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तंत्र साधना कायिक -वाचिक और मानसिक क्रियाओं में समन्वित प्रयास से संपन्न होती है |इनमे कायिक कर्म में विभिन्न कर्म सम्मिलित हैं |स्थूल शरीर की पूरी तैयारी होने पर ही सूक्ष्म शरीर तत्त्व ज्ञान की भूमिका प्राप्त करता है और इसी से वाणी और मन भी साधनोपयोगी क्रियाओं की वास्तविकता के निकट पहुँच पाते हैं |इस दृष्टि से आसन-प्राणायाम ,ध्यान ,अर्चन के क्रमों में न्यास का भी बड़ा महत्व है |किसी भी कर्म के लिए जो विनियोग किया जाता है ,उसमे जो मंत्र ,स्तोत्र ,कवच ,आदि प्रयुक्त होते हैं ,उन सभी में न्यास आवश्यक माने गए हैं ,|वैदिक साधना पद्धति का भी यह अभिन्न अंग है |
  " देवो भूत्वा देवं यजेत "-देव बनकर देवता की पूजा करें -इस आदेश का पालन भी न्यासों पर ही आधारित है |यहाँ देव बनने का तात्पर्य है की अपने शरीर में देवताओं को विराजमान करना और ऋषि ,छंद ,देवता ,बीज ,शक्ति ,कीलक और विनियोग के न्यासों द्वारा मंत्रमय देह बनाना |करन्यास ,अंगन्यास ,शरीरावयव न्यास ,आयुध न्यास तथा मात्रिका -मंत्राक्षर आदि के न्यास साधना के अनिवार्य अंग हैं जो निश्चित स्थानों पर निश्चित देव-ऋषियों की स्थापना की भावना को पूर्ण करते हैं |ये न्यास सभी साधनों में सभी सम्प्रदायों में सामान रूप से स्वीकृत हैं |
    न्यास का अर्थ है ,शरीर में देवताओं और उनके अंग देवताओं-शक्तियों की स्थापना करना |साधना क्रम में न्यास विधान को "न्यास विद्या "कहा गया है |महाकाल संहिता में कहा गया है की -इस प्रकार की सिद्धिदा विद्या दूसरी कोई नहीं है ,इसलिए इसका दूसरा नाम सिद्ध विद्या भी है |तांत्रिकों का यह सिद्धांत है की भूत शुद्धि द्वारा शरीर को शुद्ध किया जाता है और न्यासों के द्वारा मंत्रमय देवता को आत्मा में संक्रांत कर तन्मयता बुद्धि प्राप्त की जाती है |
        सामान्यतया सभी न्यास विधि में सूचित स्थानों पर तत्वमुद्रा [अनामिका और अंगूठे के अग्रभागों के सम्मिलित रूप ]से स्पर्श करने का विधान है |किन्तु यह क्रम ,विधि, विशिष्टता के साथ भिन्न भी हो सकते हैं और मुद्राओं की स्थिति बदल भी सकती है |न्यासों की यह विशेषता है की कहीं ये व्यष्टि रूप में होते हैं कहीं समष्टि रूप में |
  जिस प्रकार हम किसी मंत्र का पुरश्चरण करते हैं ,विशेष अनुष्ठान करते हैं और किसी विशेष कामना से उसका प्रयोग करते हैं, उसी प्रकार केवल न्यासों से भी ये विधियाँ की जा सकती हैं |इस दृष्टि से नित्यानुष्ठान और काम्यानुष्ठान भी न्यासों द्वारा होते हैं |ऐहिक और पारलौकिक दोनों प्रकार के लाभ केवल न्यास साधना से भी प्राप्त किये जा सकते है |

   न्यास द्वारा साधक जब अपने शरीर में देवत्व का आधान कर लेता है ,तो उसमे ईष्टदेव का परिवार सहित निवास होने से उसके लिए प्रायः व्यर्थ की चर्चा करना ,किसी को शाप देना अथवा आशीर्वाद देना एवं किसी को नमस्कार करना वर्जित है |ऐसे बहुत से उदाहरण है की न्यास सिद्ध महापुरुषों द्वारा प्रणाम न करने पर उनसे रुष्ट होकर हठ पूर्वक प्रणाम करवाने से प्रणाम की अपेक्षा रखने वाले का अनिष्ट हुआ है |................................................................हर-हर महादेव

टोन -टोटके का भाग्य पर प्रभाव

टोने-टोटके भी प्रारब्ध बदल सकते हैं
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        लोग कहते हैं की टोन-टोटकों से कुछ नहीं होता ,जो होना है वह होकर रहेगा |जो भाग्य में लिखा है ,जो पूर्व कर्मो के अनुसार प्रारब्ध बना है वह होगा ही चाहे कुछ भी किया जाए |यह गलत धरना है ,यह पूर्ण भाग्यवादियों की भाषा है |ऐसी विचारधाराओं के लोग अच्छा होने पर खुद को श्रेय और गलत होने पर भाग्य को श्रेय देते रहते हैं |हम सभी प्रकृति के अंग हैं ,यहाँ प्रत्येक क्रिया की एक निश्चित प्रतिक्रिया होती है |जिस प्रकार पूर्वकृत कर्मो की प्रतिक्रिया स्वरुप आज का प्रारब्ध बना है ,उसी प्रकार कुछ क्रियाएं यदि विपरीत दिशा में की जाए जो तात्कालिक प्रभाव रखती हों तो इन प्रारब्धों में भी कमी की जा सकती है अथवा प्रारब्ध की दिशा में क्रिया करके उसकी गति बढ़ा दी जाए तो प्रारब्धों की भी गति और समय बढ़ सकता है |प्रारब्ध जानने की कई विधिया जैसे ज्योतिष आदि प्रचलित है |इनके अनुसार किये गए टोन टोटके इनको प्रभावित करते हैं |टोना किसी भी अनुष्ठानिक और विधिपूर्वक की गयी क्रिया को कहते हैं ,जिनमे सामान्यतया प्रकृति की उच्च स्तर की शक्तियों का सहयोग लिया जाता है जबकि टोटका छोटे सामान्य उपाय हैं जो समय समय पर किये जाते हैं |
        यह समस्त ब्रह्माण्ड एक शक्ति से संचालित है |ब्रह्माण्ड की शक्ति से ही ग्रहों पर प्रकृति की शक्ति नियंत्रण करती है |प्रकृति [ब्रह्माण्ड] की शक्ति प्रत्येक कण ,जीव ,वनस्पति ,जल ,वायु में व्याप्त है |यही शक्ति या उर्जा इन टोन -टोटकों में भी कार्य करती है |मानसिक शक्ति की उर्जा ,वस्तु की ऊर्जा ,विशेष गृह स्थितियों से उत्पन्न विशेष उर्जा ,वातावरणीय शक्तियों की उर्जा ,ध्वनि की ऊर्जा आदि का ही संयोजन इन टोन-टोटकों में भी होता है ,जिसे एकीकृत करके लक्ष्य पर प्रक्षेपित किया जाता है |
        प्रत्येक जीव ,वनस्पति के शरीर में प्रकृति की उर्जा संरचना के अनुरूप ही उर्जा परिपथ निर्मित होता है |मनुष्य का शरीर इस ऊर्जा परिपथ से ही संचालित होता है |इसका उर्जा चक्र निर्धारित और निश्चित है |यह प्रकृति की देंन है |इसी उर्जा चक्र के अनुसार ही उसे सभी कर्म करने होते है |उर्जा चक्र की इस व्यवस्था में संघर्षशील कर्म द्वारा या तकनिकी द्वारा उर्जा व्यवस्था में परिवर्तन किया जा सकता है |क्योकि यह भी प्रकृति की एक ऊर्जा व्यवस्था ही है ,और इसमें अगर दूसरी ऊर्जा को प्रक्षेपित कर दिया जाए तो इस व्यवस्था में परिवर्तन हो सकता है |जब उर्जा चक्र में परिवर्तन होगा तो प्रारब्ध भी प्रभावित होगा ही ,क्योकि यह भी ऊर्जा व्यवस्था से ही संचालित होता है |
        निश्चित समय ,स्थान ,दिशा ,सामग्री ,देवता ,भाव ,उद्देश्य के साथ प्रबल मानसिक शक्ति से जब कोई क्रिया की जाती है तो उससे एक विशिष्ट और अति तीब्र उर्जा या शक्ति उत्पन्न होती है ,जिसमे उपरोक्त सभी की शक्तियों का संग्रह होता है ,,इसे जब किसी लक्ष्य पर प्रक्षेपित किया जाता है तो यह उस लक्ष्य के उर्जा परिपथ को प्रभावित करता है और उससे जुड़ जाता है |इसकी प्रकृति सकारात्मक है तो यह सम्बंधित परिपथ को सबल बना उसे नई गति और ऊर्जा दे देता है ,और अगर नकारात्मक है तो उः उस परिपथ को बाधित-रुग्न कर देता है }परिणाम स्वरुप सम्बंधित व्यक्ति के कर्म-सोच-क्षमता-विचार-व्यवहार-शारीरिक स्थिति प्रभावित हो जाती है |इसके फल स्वरुप उपयुक्त अथवा अनुपयुक्त कर्मो के अनुसार कल मिलने वाले परिणाम आज मिल सकते है अथवा नहीं मिल सकते हैं |मिलने वाले परिणामो की मात्र भी प्रभावित हो जाती है |
         टोन-टोटके में भी वाही उर्जा विज्ञान काम करता है जो प्रकृति का उर्जा विज्ञान है |क्योकि जीव धारियों-वनस्पतियों में भी वाही ऊर्जा विज्ञान कार्यरत है अतः इन टोन-टोटकों से वह प्रभावित हो जाते हैं |टोन टोटकों से उत्पन्न ऊर्जा लक्ष्य को प्रभावित कर वहां की प्रकृति बदल देती है |वाहन चला रहे एक व्यक्ति द्वारा किसी निर्णय में एक सेकेण्ड का विलम्ब उसे मौत के मुह में पंहुचा सकता है |किसी व्यवसायी द्वारा लिया गया एक सही निर्णय लाखों-करोड़ों का लाभ दे सकता है |किसी के मुह से निकला एक गलत शब्द उसकी नौकरी ले भी सकता है और नौकरी दिला भी सकता है |यह सब ऊर्जा प्रणाली से उत्पन्न मानसिक स्थिति के उदाहरण मात्र हैं |
         टोन-टोटकों का उपयोग अच्छे और बुरे दोनों रूपों में होता है |इन सब के पीछे प्रकृति अर्थात तंत्र का ऊर्जा विज्ञान होता है |टोना अर्थात पूजा-अनुष्ठान-साधना में तो बड़ी ऊर्जा शक्तियां कार्य करती हैं जो भाग्य में भी परिवर्तन कर सकती है |किन्तु टोटकों में भी प्रकृति के आसान किन्तु प्रभावी विकल्पों का ही चयन किया जाता है ,जो क्षण-प्रतिक्षण की क्रिया को प्रभावित करती हैं |चुकी यह उर्जा विज्ञान है और हर जगह ऊर्जा विज्ञान ही कार्य करता है अतः परिवर्तन होता है |यदि ऐसा न होता तो चिकित्सा,औसधी,उपाय ,उपचार का कोई महत्व ही नहीं होता और यह प्रकृति में किसी के मष्तिष्क से उत्पन्न ही नहीं होते और इनकी अवधारणा ही विक्सित न होती |क्योकि जब सब कुछ निश्चित ही होता तो सब खुद नियत चलता ,प्रकृति ऐसी उर्जा उत्पन्न ही न होने देती जिससे इनकी अवधारणा विक्सित हो सके ,,ऋषि-महर्षियों-देवताओं द्वारा इसीलिए पूजा-उपचार-उपाय-तंत्र का विकास किया गया क्योकि प्रकृति में उर्जा विज्ञान ही कार्यरत है और इसमें ऊर्जा द्वारा ही परिवर्तन संभव है |................................................................हर-हर महादेव 

छोटा उपाय भी भाग्य बदल सकता है .

भाग्य छोटे से प्रयास से परिवर्तित होता है !
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उलझन में फंसे हुए ,जीवन संघर्षों में घिरे हुए ,कठिनाइयाँ झेलते हुए ,मुश्किलों में रास्ते तलाशते हुए व्यक्ति को भाग्य ,प्रारब्ध ,ग्रह -नक्षत्र ,ग्रह योग ,कुंडली दोष ,तांत्रिक अभिचार ,टोना -टोटका ,किया -कराया ,भगवान् आदि ही दिखते हैं और वह उम्मीद करता है की अब तो इन्ही के द्वारा कोई रास्ता निकल सकता है |उसका खुद पर से भरोसा उठ जाता है ,वह खुद के कर्म -क्षमता पर विश्वास नहीं कर पाता क्योंकि उसे लगता है की उसने अब तक तो अपनी तरफ से पूरे प्रयास ही किये थे पर उसके प्रयास से कुछ नहीं हुआ तो अब क्या होगा |वह यहाँ वहां दौड़ता है |ज्योतिषी ,तांत्रिक ,पंडित के यहाँ जाता है ,सलाह लेता है ,मंदिर ,मस्जिद ,गुरुद्वारे में मत्था टेकता है ,भगवान् से फ़रियाद करता है की वह उसकी स्थिति सुधार दे ,पर अक्सर उसकी स्थिति यथावत ही रहती है ,अक्सर उपाय ,प्रयास ,फ़रियाद उसकी अपेक्षा अनुसार परिणाम नहीं देते |
ऐसा नहीं है की उपायों ,तरीकों में शक्ति नहीं ,यह परिवर्तन नहीं लाते या नहीं ला सकते |यह भाग्य भी बदल सक्ते हैं ,परिवर्तन भी ला सकते हैं किन्तु सही समय पर सही स्विच दबाने की जरूरत होती है ,गति देने के लिए सही गियर लगाने की जरूरत होती है |अक्सर यहाँ चूक होती है और प्रयास सही तरह से काम नहीं कर पाता |सही व्यक्ति तक पहुंचना ही मुश्किल होता है जो सही समय सही तरीके से सही उपाय बता सके |जो पहुँच जाता है उसका काम भी हो जाता है ,पर अधिकतर चक्रव्यूह में फंसे ही रह जाते हैं |बजाय इसके की यहाँ वहां फ़रियाद किया जाय ,इनके -उनके यहाँ दौड़ा जाय ,अनेकों उपाय ,टोटके आजमाए जाएँ ,व्यक्ति यदि थोड़ी गंभीरता से ,लगन से ,विश्वास से खुद थोडा सा समय अपने घर में ही देता रहे तो भाग्य परिवर्तित भी हो सकता है ,और भाग्य में जो लिखा है पूरा भी मिल सकता है |सबको उसके भाग्य का पूरा नहीं मिल पाता |जो कुंडली कहती है वह खरा नहीं उतरता ,क्योंकि पृथ्वी की वातावरणीय शक्तियाँ वैसा नहीं होने देती |विस्तृत रूप से इसे समझने के लिए हमारे ब्लॉग पर इससे सम्बन्धित लेख "भाग्य का पूरा मिलना भी बड़े भाग्य की बात है " पढ़ें |यदि व्यक्ति को उसके भाग्य का ही पूरा मिल जाए तो वह बहुत सुखी रह सकता है |
भाग्य बदलना एक बहुत बड़ी बात है ,जो सामान्य लोगों के लिए संभव नहीं ,यह स्थिति गंभीर साधना के बाद आती है अथवा किसी पारलौकिक शक्ति के हस्तक्षेप के बाद ही उत्पन्न होती है ,किन्तु भाग्य में परिवर्तन लाना इससे कम कठिन काम है |यह सामान्य मनुष्य भी कर सकता है किन्तु उसे इसके लिए पूरी गंभीरता से ,लग्न से लगातार प्रयास करना होता है जो सतत जारी रहे |परिवर्तन होता है और आश्चर्यजनक परिवर्तन होता है जिससे लोग तक आश्चर्यचकित होते हैं |बस जरूरत लगे रहने की होती है जो कोई कोई ही कर पाता है क्योंकि किसी को भी खुद पर कम और बाहरी शक्तियों पर और भाग्य आदि पर अधिक विश्वास होता है |हमने अपने पूर्व के कई लेखों में छोटे छोटे बिन्दुओं को लेकर लिखा है जिनसे भाग्य बदलता है ,परिवर्तित होता है |बहुतों से प्रयास करवाए हैं और उनमे से बहुत से सफल भी हुए हैं |भाग्य कैसे बदलता है ,भाग्य किन किन प्रयासों से परिवर्तित होता है ,किन प्रयासों से ग्रह -नक्षत्रों के प्रभाव मनुष्य के लिए परिवर्तित हो सकते हैं ,कैसे मनुष्य असफल व्यक्ति से सफल व्यक्ति हो सकता है ,कैसे अपने अवचेतन को सुधार सकता है ,कैसे ईश्वरीय शक्तियों को खुद से जोड़ सकता है |इन पर हमने काफी कुछ लिखा है |आज के लेख में हम छोटा सा बिंदु उठा रहे जिससे भाग्य परिवर्तित हो सकता है छोटे से सतत प्रयास से |
यदि आप वह नहीं पा रहे जो चाहते हैं ,जो आपका भाग्य कहता है |आप वहां नहीं पहुँच पा रहे जहाँ आपको होना चाहिए ,आप उलझन ,परशानी ,कठिनाई ,जीवन संघर्ष में घिरे हैं और आपको कोई रास्ता नहीं दिख रहा ,तो आप यहाँ वहां मत दौडिए ,ढेरों प्रयास ,टोने -टोटके ,उपाय ,क्रिया मत आजमाइए बस एक अच्छा सा योग्य ,अनुभवी ,वैदिक ज्योतिषी खोजिये |उनसे मात्र एक बिंदु पर सलाह लीजिये ,अधिक कुछ पूछने की आवश्यकता नहीं |भाग्य जानकार आप क्या करेंगे जब आप उसे सुधार नहीं सकते |आप उनसे अपने ईष्ट देवता के बारे में पूछिए और पूछिए की कौन ग्रह सबसे कमजोर है जो मजबूत होने की स्थिति में कुंडली को सबसे अधिक प्रभावित कर सकता है |यह एक गंभीर विश्लेषण का विषय है |उस ग्रह के ईष्ट देवता का पता करके आप उन ज्योतिषी जी का दान दक्षिणा देकर चले आइये |अब आप किसी उच्च महाविद्या साधक से संपर्क कीजिये |उन्हें बताइये की आपके ईष्ट अमुक देवता हैं और आपको अमुक देवता की शक्ति से अमुक ग्रह को संतुलित करना है |कमजोर किन्तु सबसे अधिक प्रभाव डाल सकने वाले ग्रह के देवता का तंत्रोक्त मंत्र आप उनसे प्राप्त कीजिये या उस देवता के समान ही किसी महाविद्या के मंत्र आप उनसे प्राप्त कीजिये |विधि और सावधानी समझिये |उस देवता या शक्ति से सम्बंधित यन्त्र /कवच /ताबीज आप उनसे प्राप्त कीजिये |अपने ईष्ट देवता के तंत्रोक्त मंत्र उनसे प्राप्त कीजिये और घर आ जाइए |अब आपको कोई उपाय नहीं करने ,यहाँ वहां नहीं भटकना |किसी मंदिर ,मस्जिद में मत्था नहीं पटकना |
आप प्रतिदिन सुबह अपने ईष्ट देवता के मंत्र की एक माला जप किया करें |उनकी फोटो घर में लगा लें |साथ ही जो दुसरे देवता या शक्ति को बताया गया है उनका भी फोटो लगा लें |ईष्ट के मंत्र जप के बाद आप 5 या 2 माला दूसरे देवता जो की कमजोर ग्रह का प्रतिनिधित्व करते हैं का मंत्र जप करें |यदि किसी महाविद्या का मंत्र आपको मिल गया है तो आप उनका पूजन तो सुबह कर लें किन्तु मंत्र जप रात्री में करें 5 माला |आप मंत्र जप से घबराएं नहीं |आपको यह सब करना शुरू में कठिन जरुर लग सकता है किन्तु जीवन भर के दीर्घकालीन लाभ के लिए शुरू में थोडा अपने को व्यवस्थित तो करना ही होगा |एक बार का आपका थोडा सा प्रयास आपके पूरे जीवन को बदल कर रख देगा |लगातार आपको मन्त्र जप में दिक्कत हो तो ११ -११ दिन के क्रम में आप कुछ दिन करें ,इसके बाद खुद को व्यवस्थित कर लें |आपको कोई कठिन संकल्प ,व्रत ,अनुष्ठान नहीं करना है ,मात्र शुद्धता ,एकाग्रता ,धैर्य ,विश्वास से पूरे नाद ,शुद्ध उच्चारण से धीरे -धीरे उपांशु जप करना है जिसकी गूँज आपके अंतर्मन और शरीर में होती रहे |आपको खुद का मन शक्ति या देवता पर एकाग्र रख उसका ही चिंतन करते हुए आराम से जप करना है और भावना रखनी है की देवता की शक्ति आपमें प्रवेश कर रही |हम आपको साधक नहीं बना रहे ,पर आपमें देवता की शक्ति और गुण का विकास होगा और आपके जीवन की समस्त कठिनाइयों का क्षय होने लगेगा |
आपको अपनी दिनचर्या बदलने की जरूरत नहीं बस थोडा समय निकालना है |आपको बार -बार पूजा -पाठ ,देवी -देवता ,उपाय आदि बदलने ,करने की जरूरत नहीं आप बस एक मंत्र पकडकर चलते जाइए |आप कुछ भी बदलने की कोशिश मत कीजिये |बदलाव खुद होंगे |बस धैर्य के साथ लगे रहिये |इसमें थोडा समय तो लगेगा पर कुछ ही दिनों में आप स्वयं परिवर्तन महसूस करने लगेंगे |कुछ महीनों बाद आप खुद भी तथा लोग भी आश्चर्यचकित होने लगेंगे परिवर्तनों से |भाग्य करवट लेने लगेगा ,परिवर्तित होने लगेगा |जीवन बदलने लगेगा |शक्ति या देवता के गुणों का विकास आपमें ही होने लगेगा यदि सही तरीके से आप लगे रहे |आपकी औरा अर्थात आभामंडल बदल जायेगी ,नकारात्मकता ,आस पास की नकारात्मक उर्जा हट जायेगी |आपका लोगों पर प्रभाव बदल जाएगा ,आपके प्रति लोगों का व्यवहार बदल जाएगा ,जीवन में सफलताओं का दौर शुरू हो जाएगा जो आपको संतुष्ट करेगा और आपके साथ जुड़े लोगों को भी सुखी करेगा |घर की नकारात्मक शक्तियाँ दूर हो जायेंगीं और सकारात्मक /धनात्मक ऊर्जा चारो ओर बिखरेगी जिससे खुशियों और समृद्धि का वास होगा |आपके शरीर की रासायनिक कार्यप्रणाली ,तरंगों की क्रिया ,चक्रों की क्रियाशीलता ,हारमोन -फेरोमोन की प्रभावशीलता ,कार्यप्रणाली बदलने लगेगी और आपका जीवन परिवर्तित हो जाएगा |आपके लिए ग्रहों की रश्मियों की ग्रहणशीलता ,उनके प्रभाव बदलेंगे और कष्टकारक ग्रहों का प्रभाव कम होगा जबकि लाभदायक ग्रहों का प्रभाव बढ़ जाएगा |एक अतीन्द्रिय शक्ति का विकास लग से होगा और एक अलौकिक ऊर्जा आपसे जुड़ जायेगी |...................................................................हर हर महादेव 

ताबीज भाग्य बदल सकता है .

:::::::::::::एक ताबीज आपकी किस्मत पलट सकता है::::::::::::::
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          ताबीज आदि के निर्माण में एक वृहद् उर्जा विज्ञानं काम करता है ,जिसे प्रकृति का विज्ञान कहा जाता है | एक विशिष्ट प्रक्रिया ,विशिष्ट पद्धति और विशिष्ट वस्तुओं के विश्सिष्ट समय में संयोग से विशिष्ट व्यक्ति द्वारा निर्मित ताबीज और यन्त्र में एक विशिष्ट शक्ति का समावेश हो जाता है ,जो किसी भी सामान्य व्यक्ति को चमत्कारिक रूप से प्रभावित करती है जिससे उसके कर्म-स्वभाव-सोच-व्यवहार-प्रारब्ध सब कुछ प्रभावित होने लगता है |
          -ताबीज में प्राणी के शरीर और प्रकृति की उर्जा संरचना ही कार्य करती है ,,इनका मुख्य आधार मानसिक शक्ति का केंद्रीकरण और भावना के साथ विशिष्ट वस्तुओं-पदार्थों-समय का तालमेल होता है| ,,,,प्रकृति में उपस्थित वनस्पतियों और जन्तुओ में एक उर्जा परिपथ कार्य करता है ,मृत्यु के बाद भी इनमे तरंगे कार्य करती है और निकलती रहती हैं ,,,,इनमे विभिन्न तरंगे स्वीकार की जाती है और निष्कासित की जाती है |जब किसी वस्तु या पदार्थ पर मानसिक शक्ति और भावना को केंद्रीकृत करके विशिष्ट क्रिया की जाती है तो उस पदार्थ से तरंगों का उत्सर्जन होने लगता है ,,,,जिस भावना से उनका प्रयोग जिसके लिए किया जाता है ,वह इच्छित स्थान पर वैसा कार्य करने लगता है ,|उदहारण के लिए ,,,किसी व्यक्ति को व्यापार वृद्धि के लिए कुछ बनाना है ,तो इसके लिए इससे सम्बंधित वस्तुएं अथवा यन्त्र विशिष्ट समय में विशिष्ट तरीके से निकालकार अथवा निर्मित करके जब कोई उच्च स्तर का साधक अपने मानसिक शक्ति के द्वारा उच्च शक्तियों के आह्वान के साथ जब प्राण प्रतिष्ठा और अभिमन्त्रण करता है तो वस्तुगत उर्जा -यंत्रागत उर्जा के साथ साधक की मानसिक और आध्यात्मिक ऊर्जा का ऐसा अद्भुत संयोग बनता है की निर्मित ताबीज से तीब्र तरंगें निकालने लगती हैं ,इन्हें जब सम्बंधित धारक को धारण कराया जाता है तो यह ताबीज उसके व्यापारिक चक्र [लक्ष्मी या संमृद्धि के लिए उत्तरदाई ] को स्पंदित करने लगता है ,दैवीय प्रकृति की शक्ति आकर्षित हो धारक से जुड़ने लगती है और उसकी सहायता करने लगती है ,अनावश्यक विघ्न बाधाएं हटाने लगती है ,साथ ही मन और मष्तिष्क  भी प्रभावित होने लगता है ,जिससे उसके निर्णय लेने की क्षमता ,शारीरिक कार्यप्रणाली ,दैनिक क्रिया कलाप बदल जाते है ,उसके प्रभा मंडल पर एक विशेष प्रभाव पड़ता है ,जिससे उसकी आकर्षण शक्ति बढ़ जाती है ,बात-चीत का ढंग बदल जाता है ,सोचने की दिशा परिवर्तित हो जाती है ,कर्म बदलते हैं ,,प्रकृति और वातावरण में एक सकारात्मक बदलाव आता है और व्यक्ति को लाभ होने लगता है,, |यह एक उदाहरण है ,ऐसा ही हर प्रकार के व्यक्ति के लिए हो सकता है उसकी जरुरत और कार्य के अनुसार ,|यहाँ यह अवश्य ध्यान देने योग्य होता है की यह सब तभी संभव होता है जब वास्तव में साधक उच्च स्तर का हो ,उसके द्वारा निर्मित ताबीज खुद उसके हाथ द्वारा निर्मित हो ,सही समय और सही वस्तुओं से समस्त निर्माण हो ,|ऐसा न होने पर अपेक्षित लाभ नहीं हो पाता| ताबीज और यन्त्र तो बाजार में भी मिलते है और आजकल तो इनकी फैक्टरियां सी लगी हैं ,जो प्रचार के बल पर बेचीं जा रही हैं ,कितना लाभ किसको होता है यह तो धारक ही जानता है |

       ताबीज बनाने वाले साधक की शक्ति बहुत मायने इसलिए रखती है की  जब वह अपने ईष्ट में सचमुच डूबता है तो वह अपने ईष्ट के अनुसार भाव को प्राप्त होता है ,,भाव गहन है तो मानसिक शक्ति एकाग्र होती है ,जिससे वह शक्तिशाली होती है ,यह शक्तिशाली हुई तो उसके उर्जा परिपथ का आंतरिक तंत्र शक्तिशाली होता है और शक्तिशाली तरंगे उत्सर्जित करता है |ऐसा व्यक्ति यदि किसी विशेष समय,ऋतू-मॉस में विशेष तरीके से ,विशेष पदार्थो को लेकर अपनी मानसिक शक्ति और मन्त्र से उसे सिद्ध करता है तो वह ताबीज धारक व्यक्ति को अच्छे-बुरे भाव की तरंगों से लिप्त कर देता है |यह समस्त क्रिया शारीर के उर्जा चक्र को प्रभावित करती है और तदनुसार व्यक्ति को उनका प्रभाव दिखाई देता है| यह ताबीजें इतनी शक्तिशाली होती हैं की व्यक्ति का प्रारब्ध तक प्रभावित होने लगता है |अचानक आश्चर्यजनक परिवर्तन होने लगते हैं |आपने अनेक कहानियाँ सुनी होंगी की अमुक चीज अमुक साधू ने दिया और ऐसा हो गया |अथवा यह सुना होगा की अमुक तांत्रिक ने अमुक छीजें कुछ बुदबुदाकर फेंकी व्यक्ति को लाभ हो हया |यह बहुत छोटे उदाहरण हैं |जिस तरह साधना से ईश्वरीय ऊर्जा आती है उसी तरह यह मानसिक एकाग्रता से वस्तु और यन्त्र में स्थापित भी होती है |तभी तो मूर्तियाँ और यन्त्र प्रभावी होते हैं |यही यन्त्र ताबीजों में भरे जाते हैं और प्रभाव देते हैं |यह किसी  यन्त्र विशेष का प्रचार नहीं अपितु वैज्ञानिक विश्लेष्ण का प्रयास है और हमने इसे बहुत सत्य पाया है |यही कारण है की हम अपने सभी अनुष्ठानों में भोजपत्र पर यंत्र अवश्य बनाते हैं और साधना समाप्ति पर उन्हें धारण करते भी हैं और कराते भी हैं |यह धारण मात्र से साधना जैसा प्रभाव देते हैं |...............................................................हर-हर महादेव 

भगवान के दर्शन कैसे होते हैं ?

कैसे होता है आपके आराध्य देवता [ईष्ट] का दर्शन [प्रत्यक्षीकरण ]आपको
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         ईष्ट या देवता का प्रत्यक्षीकरण या प्रकटीकरण एक ऐसी घटना होती है ,जिसे लक्ष्यकर प्रत्येक साधक -आराधक अपने पूजा-अनुष्ठान-साधना शुरू करता है |उसका परम लक्ष्य उस ईष्ट या देवता का साक्षात्कार करना होता है |सामान्य साधक या आस्थावान कभी यह नहीं सोचता यह कैसे होता है ,कहा से आते है देवी-देवता ,इसके पीछे कौन सी उर्जा-तकनीक काम करती है |,क्या सचमुच वह ईष्ट हमारे सामने कही से आकर खड़ा हो जाता है ,जिसे हम बुला रहे होते है ,क्या वास्तव में ऐसे देवता कही किसी लोक में रहते है | क्षमा कीजियेगा यदि आस्थावानो की भावना को ठेस लगे ,किन्तु यदि आप समझते है की देवी-देवता की आकृतियों के विलक्षण प्राणी इस ब्रह्माण्ड में कही रहते है तो आप भारी  भ्रम में है |
          कभी इन देवियों की पूजा पहाड़ काटकर मूर्ति जैसा बनाकर ,कभी फूस तो कभी मिटटी की पिंडी जैसी बनाकर की जाती थी ,,आज इनकी सुन्दर मुर्तिया बनी हुई है |आप इनमे से किस आकृति की देवी को अलौकिक प्राणी मानेगे?देवता तो वैदिक ऋषियों के प्रतीक थे और वे मूर्ति पूजक थे ही नहीं |यदि देवी-देवता जैसे प्राणी है तो वे केवल मूर्ति पूजको को ही मिलने चाहिए |फिर जो मूर्ति पूजक नहीं है ,मुसलमान या ईसाई है ,या जो गुरु परम्परा के है अथवा जो गुरु को ही ईश्वर मानते है ,तो क्या उन्हें ईश्वर नहीं मिलता या वे ईश्वरीय उर्जा अथवा कृपा से वंचित होते है |नहीं ऐसा नहीं है ,ईश्वर उर्जा स्वरुप है ,सर्वत्र विद्यमान है ,,मुर्तिया वस्तुतः भाव मुर्तिया है ,जो मानसिक एकाग्रता के लिए होती है ,एक विशेष प्रकार की ऊर्जा -गुण और भाव जाग्रत करने वाली आकृति होती है मुर्तिया |सामने एक आकृति है और उसका भाव है तो उस भाव को गहन करना सरल हो जाता है |
             जब भाव गहन होता है ,तो एक समय ऐसा आता है ,जब साधक अनुभूत करता है की वह आकृति प्रकट हो गयी |वह आकृति प्रत्यक्ष उससे बातें कर रही है |यह कल्पना का साकार हो जाना है |वह आकृति सचमुच साधक के सामने सजीव हो जाती है और उसके प्रत्येक प्रश्न के उत्तर देती है या आशीर्वाद देकर दर्शन देती है |
              यह साधना की एक दुर्लभ अवस्था है ,इस अवस्था में पंहुचा साधक ही वास्तविक सिद्ध है |...........परन्तु क्षमा कीजियेगा यह भी एक भावात्मक अनुभूति है वहा कोई प्राणी नहीं आया होता है अपितु ऊर्जा समूह आकृति में आया होता है और वहा व्याप्त होता है  |साधक जब उस आकृति को प्रत्यक्ष करता है तो वहा का वातावरण उस भाव से संतृप्त हो जाता है ,फलतः वहा अन्य जो भी होगा उसे लगेगा एकाएक कुछ परिवर्तन हो गया और वह चौंकेगा ,किन्तु उस आकृति को केवल साधक अनुभव कर सकेगा और बातें कर सकेगा ,अन्य व्यक्ति को वह दृष्टिगत नहीं होगी ,क्योकि वह साधक के भाव की आकृति है ,वास्तव में उसका वहा कोई अवतरण नहीं होता |
               होता यह है की जब साधक किसी विशेष भाव-गुण-आकृति पर एकाग्र होता है तो उसके भाव की गहनता उसके आतंरिक ऊर्जा चक्र में सम्बंधित गुण -भाव के चक्र को स्पंदित करने लगते है [[ज्ञातव्य है की शरीर में ही समस्त गुणों का प्रतिनिधित्व करने वाले चक्र उपस्थित होते है ,तभी तो कहा जाता है की सभी देवी देवता इसी शरीर में है ]]फलतः चक्र से सामान्य से अधिक उर्जा और  तरंगे उर्सर्जित होने लगती है ,यह तरंगे शारीरिक -रासायनिक परिवर्तन के साथ ही विशिष्ट आभामंडल भी बनाने लगती है |इस प्रकार एक निश्चित मानसिक उर्जा बनती और अंतरिक्ष में प्रक्षेपित होने लगती है ,जिसके बल से सौरमंडल में उपस्थित उसी प्रकार की उर्जा और भाव तरंगे वहाँ खिचने [आकर्षित होने] लगती है और वह क्षेत्र उन तरंगों और उर्जा से घनीभूत हो जाता है |इससे वहा उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति का आतंरिक उर्जा परिपथ प्रभावित होता है |साधक में मानसिक रूप से स्थिर आकृति के अनुसार यह ऊर्जा परिवर्तित हो उसके सामने प्रत्यक्ष हो जाती है ,और साधक को सिद्ध हो उसके मानसिक तरंगों की क्रिया से संचालित होने लगती है |
                 यह सब ब्रह्मांडीय ऊर्जा तरंगों का खेल है |जिसके सामने प्रत्यक्षीकरण होता है केवल वही उसे देख पाता है ,दूसरों को केवल अनुभूति होती है की वातावरण में परिवर्तन हो गया है |प्रत्यक्षीकरण \दर्शन समाप्त होने के बाद भी उन ऊर्जा तरंगों का प्रभाव उस स्थान पर रहता है ,पर देवता के आने का कोई भौतिक चिन्ह नहीं होता |प्राकृतिक रूप से कोई देवता -देवी कोई भौतिक चिन्ह नहीं छोड़ते ,क्योकि उनका भौतिक शरीर होता ही नहीं |वह तो साधक की भावना के अनुरूप रूप धारण कर प्रत्यक्ष होते है |जो भौतिक चिन्ह छोड़ने की बात करता है वह झूठ बोलता है |
                यह सब ऊर्जा का प्रत्यक्षीकरण और मानसिक ऊर्जा द्वारा उनका नियंत्रण है ,इसी के बल पर बिना मूर्ति पूजा या साकार आराधना के भी बहुत से धर्म-सम्प्रदाय ईश्वरीय ऊर्जा और कृपा प्राप्त करते रहते है ,गुरु को ईष्ट या ईश्वर मानने वाले को गुरु के दर्शन होते हैं ,निराकार शक्ति को मानने वाले को शक्ति का बिना रूप के भी आभास होता है ,क्योकि ऊर्जा का केन्द्रीकरण आसपास हो चूका होता है ,जिस रूप पर मानसिक शक्ति एकाग्र होती है शक्ति वाही भाव ग्रहण कर लेती है |,.......[एक चिंतन ].......................................................हर-हर महादेव

भाग्य पर ज्योतिषीय उपायों का प्रभाव

भाग्य कैसे बनता -बिगड़ता है ?ज्योतिष के उपाय से
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हर व्यक्ति अपने भविष्य को लेकर हमेशा उत्सुक रहता है |आप किसी से बस कह दीजिये की आपको ज्योतिष आती है ,वह व्यक्ति तुरंत अपने बारे में जानना चाहेगा |भले कोई हर प्रकार से सुखी हो पर फिर भी वह और अच्छा होना चाहता है |कारण की हर किसी को अपने जीवन में कुछ न कुछ कमी महसूस होती रहती है |यह जिज्ञासा उसे कभी कभी परेशानी बढाने वाली भी साबित हो जाती है |कैसे -यह हम इस पोस्ट में आगे बताएँगे |सामान्य रूप से हर व्यक्ति के जीवन में कठिनाई होने पर उसे ग्रहों की प्रतिकूलता की ही याद आती है और वह भाग्य को इसका जिम्मेदार मानता है |इसके बाद वह भाग्य पढने वाले ज्योतिषी से सम्पर्क करने और अपनी परेशानी का उपाय जानने की कोशिश करता है |कारण कम लोग जानना चाहते हैं ,उपाय हर कोई जानना चाहता है |
उपाय सटीक मिला तो भाग्य सचमुच बदलने लगता है ,और उपाय गलत मिल गया तो जैसा भाग्य चल रहा उससे भी बुरी स्थिति आ जाती है |यदि लाभ होता है तो व्यक्ति सोचता है की उपाय से लाभ हुआ ,किन्तु यदि और खराब स्थिति हुई तो सोचता है की भाग्य में अधिक कठिनाई लिखी थी इसलिए उपाय काम नहीं कर रहा |उपाय बताने वाला ज्योतिषी भी यही कहता है की उसने उपाय तो बहुत सटीक बताया है ,अब भाग्य में अधिक कष्ट है तो इतने से काम नहीं हो रहा |इसके बाद वह कोई और उपाय भी बता देता है |यह चक्रव्यूह तब तक चलता है जब तक कोई वास्तविक जानकार न मिल जाए या भाग्य अपने आप करवट न ले |कभी कभी ती यह उलटे पुल्टे उपाय व्यक्ति की ऐसी हालत खराब कर देते हैं की उसका विश्वास ज्योतिष तो क्या भगवान् से भी उठने लगता है |
उपाय की तीव्रता और सटीकता ज्योतिषी की पकड़ और उसकी विशेषज्ञता पर निर्भर करती है |यदि ज्योतिषी वास्तव में मात्र व्यवसायी नहीं है तथा वह ज्योतिष को जीता है तब वह गम्भीर विश्लेषण करता है और बहुत कम उपाय बताता है |पर वह उपाय बेहद सटीक होता है ,भले बहुत छोटा सा उपाय हो |एक छोटा सा उपाय या रत्न या वनस्पति धारण का उपाय ज्योतिषी ने बताया ,व्यक्ति ने उसे किया |इसके बाद व्यक्ति की सोच में ,उसकी कार्यशैली में एक छोटा सा परिवर्तन आया और व्यक्ति ने सही समय एक छोटा सा निर्णय लिया या छोटा सा प्रयास किया |निर्णय या प्रयास इतना सटीक समय पर लिया गया की व्यक्ति का काम बन गया |उस बने काम से छोटी -छोटी सफलताओं की श्रृंखला शुरू हुई और व्यक्ति का जीवन बदलने लगा |कुछ ही समय में व्यक्ति में बड़े परिवर्तन आ गए उसका जीवन बदल गया |
वस्तुओं का दान हो ,जल प्रवाह हो ,पक्षियों -जानवरों को चारा या अन्न हो ,रत्न या वनस्पति धारण हो या टोना -टोटका हो ,पूजा -पाठ हो या मंत्र जप हो सभी में ऊर्जा तंत्र और प्रकृति का विज्ञानं काम करता है |सभी तरंग आधारित विज्ञानं पर काम करते हैं |सभी की शुरुआत बहुत छोटे स्तर से होती है |इनसे व्यक्ति में भौतिक परिवर्तन नहीं आता किन्तु रासायनिक और सूक्ष्म ऊर्जा स्तरों पर परिवर्तन आता है जो व्यक्ति के आसपास के वातावरण की ऊर्जा के साथ ही व्यक्ति की सोच और कार्य प्रणाली को बदल कर रख देता है |एक सही निर्णय ,एक सही प्रयास ,एक आलस्य वेहीन ऊर्जा युक्त कोशिश व्यक्ति के लिए सफलताओं के क्रम बना देती है जबकि एक गलती असफलताओं के द्वार खोल देती है |उपायों से उत्पन्न यही छोटी छोटी सफलताएं या असफलताएं कुछ ही समय में इतनी बड़ी हो जाती हैं की व्यक्ति का जीवन बदलने लगता है |
ज्योतिष एक वैदिक विज्ञानं है जो एक निश्चित जीवन शैली की मांग करता है जिसमे आध्यात्मिकता और गहन चिंतन की सतत आवश्यकता होती है |इसे वैदिक अनुसंधान विज्ञान की श्रेणी में रखा जाता है जिससे मनुष्य का जीवन गहरे जुड़ा होता है |इसी कारण पारंपरिक वैदिक ज्योतिषी एक गंभीर और आध्यात्मिक जीवन जीता है |ज्योतिष के कुछ अंग जैसे शकुन और प्रश्न मार्ग में अतीन्द्रिय ज्ञान और अनुभव का बहुत अधिक महत्व है |सम्पूर्ण ज्योतिष में आध्यात्मिक और अतीन्द्रिय समझ के अनुसार सूक्ष्म विश्लेषण की आवश्यकता होती है जिसकी आज के व्यावसायिक ज्योतिषियों के पास कमी होती है |व्यावसायिक ज्योतिषी के पास बहुत भीड़ हो सकती है ,बहुत नाम हो सकता है किन्तु उनकी उपाय की पकड बहुत अच्छी हो आवश्यक नहीं |उनकी भूतकाल के बारे में बताई गयी बातें सही हो सकती हैं जिससे उन्हें बहुत अच्छा ज्योतिषी समझा जा सकता है किन्तु उपाय और उनकी सफलता असफलता की पकड़ आध्यात्मिक दृष्टिकोण के साथ अनुभव पर निर्भर करती है ,जो गम्भीर अनुसन्धान और चिंतन का विषय है |इसके लिए आज ज्योतिषियों के पास समय कहाँ है |
आधुनिक समय में ज्योतिषी भी बहुत अधिक हो गए हैं और ज्योतिष के प्रकार भी बहुत हो गए हैं |इनमे से कुछ तो उपायों की अवधारणा ही नहीं मानते जबकि उपायों के बिन तो ज्योतिष की कोई उपयोगिता ही नहीं |जब हम कुछ सुधार नहीं कर सकते तो उस विज्ञानं का मतलब क्या है |कुछ ज्योतिषीय प्रकारों में ऐसे ऐसे भी उपाय हैं जो सामान्य तर्क और समझ मी अर्थहीन लगते हैं पर उनका भी अर्थ होता जरुर है |किसी ज्योतिषी की पूर्णता तभी है जब वह ज्योतिष के सारे अंग जानने के साथ ही गंभीर आध्यात्मिक और चिंतन शील हो |वह अपने बताये उपायों पर अनुसंधान करता हो ,उपायों पर प्रयोग करता हो ,उपायों के विज्ञान को समझता हो |उसे पता हो की कौन उपाय किस प्रकार किस व्यक्ति को कैसे और कहाँ प्रभावित करेगा ,इससे क्या परिवर्तन होंगे और क्या परिणाम आएगा |
एक गलती किसी उपाय में व्यक्ति का जीवन तबाह कर सकती है |व्यक्ति को समझ नहीं आएगा और वह भ्रम में रहेगा की भाग्य ही खराब है जो स्थिति और बिगड़ी ,किन्तु उपाय ने उससे छोटी छोटी गलतियाँ करवा दी जिससे उसकी स्थिति और दयनीय होने लगी |परेशान ही ज्योतिषी के पास अधिक आता है ,ऐसे में उसे अनुपयुक्त उपाय और परेशान कर देता है |बड़े और मूल रत्नों आदि के गलत उपाय तो जान तक ले सकते हैं |यह सीधे कुछ नहीं करते अपितु व्यक्ति से गलतियाँ करवाते हैं ,आसपास का वातावरण विपरीत कर देते हैं ,नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न कर देते हैं |अतः जब भी उपाय जानने की कोशिश किया जाय पहले उपाय बताने वाले को समझा जाए |उसकी उम्र क्या है ,वह करता क्या है ,उसकी समझ कितनी है ,उसका अनुभव कितने वर्ष का है ,उसकी जीवन शैली क्या है ,उसमे आध्यात्मिकता कितनी है |मतलब नहीं की वह वह कितना जल्दी कारण और घटनाएं पकड़ता है ,मतलब नहीं की उसका कितना नाम है , उसके पास कितनी भीड़ है |इनका उपायों की समझ से कोई लेना देना नहीं |
आज के सोसल मिडिया और इंटरनेट के युग में ज्योतिषियों की फ़ौज खड़ी है |सैकड़ों वेबसाइटें हैं ,हजारों -हजार ज्योतिषी हैं |कोई किसी को व्यक्तिगत नहीं जानता |यहाँ वहां से कापी -पेस्ट करने वाले ,किताबों से लिखने वाले हजारों ज्योतिषी हैं |सबको व्यवसाय चाहिए ,सबको नाम चाहिए ,अपनी जीवन की परेशानियां खोजते और यहाँ वहां ज्योतिषियों से मुफ्त सलाह मांगते मांगते खुद ज्योतिषी का नाम लगा ,व्यवसाय की कोशिश करने वाले हजारों हो गए हैं |मुफ्त सलाह मांगने वालों को सलाह मिल भी रही और उलटे पुल्टे उपाय भी लिखे -बताये जा रहे |व्यावसायिक ज्योतिषी अनुसंधान -चिंतन नहीं कर रहे ,रटी -रटाई और किताबी भाषा में उपाय बताये जा रहे |बेतुके प्रयोग हो रहे |आधुनिक बनने की कोशिश में ज्योतिष को ही उल्टा जा रहा |ऐसे में व्यक्तियों के जीवन से खिलवाड़ हो रहा |उलटे उपाय जीवन बिगाड़ दे रहे |
जो भी ज्योतिषी अनुसंधान करेगा ,चिंतनशील रहेगा ,आध्यात्मिक होगा ,सतत अनुभवरत रहेगा ,ज्योतिष को जियेगा ,उसके पास भीड़ नहीं होगी फिर भी उसके पास समय नहीं रहेगा |ज्योतिष की गंभीर समझ होगी पर खुद में जीने वाला होगा और व्यवसायी नहीं होगा |यदि वास्तव में ज्योतिषीय उपाय चाहिए तो ऐसे ज्योतिषी को ढूंढना चाहिए |ऐसे ज्योतिषी की जीवन शैली उसे मुफ्त सलाह की अनुमति नहीं देते अतः वह यदि इसी पर आश्रित है तो शुल्क लेगा |जो भी ज्योतिषी गंभीर पकड रखने वाला होगा वह अवश्य शुल्क लेगा ,क्योंकि उसका पूरा समय ज्योतिष को जीने में ही जाता है जिससे उसे अपनी जिम्मेदारियां भी इसी से पूरी करनी होती हैं |लोगों को इंटरनेट पर मुफ्त सलाह से भी बचना चाहिए क्योंकि यदि कोई वास्तव में विश्लेषण करेगा तो समय लगेगा और पकड रखेगा तो अनुभव प्राप्त करने में वर्षों लगा होगा |ऐसे में वह मुफ्त सलाह नहीं दे सकता |अक्सर उपायों के काम न करने अथवा बिगड़ी स्थिति और बिगड़ने में कुछ ऐसे ही सलाहों की भूमिका होती है जिनमें मुफ्त सलाह के उलटे अथवा अनुपयुक्त उपाय किये जाते हैं या व्यवसायी ज्योतिषी के किताबी उपाय होते हैं |जब भी किसी को ज्योतिषीय सलाह की आवश्यकता हो उसे सबसे पहले ज्योतिषी को समझना चाहिए |...................................................हर हर महादेव  

आकर्षण तंत्र

आकर्षण तंत्र क्रिया [Attraction Tantra]
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 तंत्र के षट्कर्म के अंतर्गत आने वाले प्रयोगों में  आकर्षण भी एक प्रयोग है ,जिसका उपयोग किसी व्यक्ति ,ईष्ट ,चराचर को अपनी और आकर्षित करने के लिए किया जाता है |इस तरह के तीन प्रयोग तंत्र में आते है आकर्षण -आकर्षित करना ,वशीकरण -वश में करना ,और मोहन -मोहित कर लेना ,,|सभा में लोगो को आकर्षित करने के लिए ,गए हुए को बुलाने के लिए ,रूठे हुए को बुलाने के लिए ,खोये हुए को आकर्षित करने के लिए आकर्षण प्रयोग अधिक अनुकूल होता है ,जबकि व्यक्ति से प्रत्यक्ष संपर्क संभव नहीं हो ,या परिचय न हो ,|
          आकर्षण में दो तरह की क्रियाए की जा सकती है ,|शुद्ध वस्तुगत क्रिया जिसमे मंत्र शक्ति गौण रूप से ही कार्य करती है ,और केवल वस्तुगत उर्जा को बढ़ाती और लक्ष्य तक निर्देशित करती है ,यह क्रिया व्यक्ति के संपर्क में रही वस्तुओ के साथ की जाती है | सभी तरह के आकर्षण टोटके और सामान्य लोगो द्वारा सामान्य रूप से की जाने वाली क्रियाए इसके अंतर्गत आती है ,जिनकी अपनी एक सीमा होती है |दूसरा पूर्ण मंत्र शक्ति के बल पर की जाने वाली क्रिया |,यहाँ मुख्य कार्य मंत्र की ऊर्जा और ईष्ट की शक्ति के साथ करता की मानसिक शक्ति कार्य करती है |,लक्ष्य पर केंद्रीकरण निपुण साधक या व्यक्ति से नजदीकी सम्बंधित व्यक्ति करता है ,|यहाँ सामग्रियों का उपयोग ऊर्जा बढाने के लिए हो भी सकता है और नहीं भी ,|,यह क्रिया प्रकृति की ऊर्जा ,मानसिक ऊर्जा को मंत्र से व्यक्ति तक पहुचाने की है ,जिससे व्यक्ति के अवचेतन में उद्वेलन होता है |

            जब आकर्षण प्रयोग किया जाता है तो उससे उत्पन्न ऊर्जा तरंगों में परिवर्तित हो व्यक्ति को लक्ष्य करती है ,माध्यम व्यक्ति के संपर्क में रहे कपडे,वस्तुए,फोटो ,यादे कुछ भी हो सकती है ,,यह न भी हो तो व्यक्ति के नाम पते पर प्रयोग किये जाते है तो यह ऊर्जा वातावरण में ईथर के माध्यम से फ़ैल जाती है और व्यक्ति को तलाश कर उसे पकडने का प्रयास करती है फिर उसके शरीर को लक्ष्य कर उसे आंदोलित करती है |फलतः व्यक्ति बेचैन होता है उसकी यादे इधर उधर भटकती है ,उसे स्वप्न आते है ,घर या सम्बंधित व्यक्ति की याद आती है ,बेचैन रहने लगता है और इस प्रकार वह सम्बंधित लक्ष्य की और खिचता है |,उसे तभी संतुष्टि-शान्ति मिलती है जब वह सम्बंधित स्थान -व्यक्ति तक पहुच जाता है |यदि व्यक्ति परिचित है प्रयोग करनेवाला या करानेवाला तो उसे उसके स्वप्न आने लगते है ,याद आती है उसकी बार-बार और वह उससे मिलने का प्रयास करता है |यदि व्यक्ति अपरिचित है तो व्यक्ति को तब तक चैन नहीं मिलता जब तक की वह प्रयोगकरता या करवानेवाले से नहीं मिल लेता |,ऐसी स्थिति में प्रयोगकर्ता को उसके सामने मिलने जाने का प्रयास करना होता है ,क्योकि व्यक्ति उसको जानता नहीं ,केवल बेचैन होता है ,मिलने पर उसे संतुष्टि मिलती है और वह आकर्षित हो जाता है ...............................................................हर-हर महादेव 

क्यों अधिक प्रभावी होता है भोजपत्र निर्मित यन्त्र धारण करना ?

क्यों अधिक प्रभावी होता है भोजपत्र निर्मित यन्त्र धारण करना
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         विभिन्न धर्मो ,समुदायों में यन्त्र रचना और धारण प्राचीन काल से चला आ रहा है ,यन्त्र विभिन्न आकृतियों अथवा अंको के एक विशिष्ट संयोजन होते है ,जिनसे एक विशिष्ट उर्जा विकिरित होती है अथवा जिनमे एक विशिष्ट उर्जा संग्रहीत होती है ,जो धारक को विशिष्ट रूप से प्रभावित करती है ,यंत्रो को देवी देवताओ का निवास भी माना जाता है ,यह आंकिक भी होते है अथवा न समझ में आने वाली आकृतियों के भी ,फिर भी इनके विशिष्ट अर्थ होते है ,यंत्रो की पूजा भी की जाती है और धारण भी किया जाता है ,अथवा अन्य रूप से भी उपयोग किया जाता है ,
             यंत्रो का निर्माण वुभिन्न सामग्रियों ,वस्तुओ पर होता है ,कागज़,भोजपत्र ,धातु ,पत्थर ,कपडे आदि पर भी ,,हिन्दू परम्परा के अनुसार भोजपत्र को परम पवित्र माना जाता है ,अन्य माध्यमो की अपेक्षा भोजपत्र पर निर्मित यन्त्र को प्रमुखता दी जाती है क्योकि इसके साथ कई विशिष्टताये जुड़ जाती है ,जो अन्य माध्यमो में कुछ कम पायी जाती है ,
            भोजपत्र स्वयं एक सकारात्मक उर्जा आकर्षित करने वाला माध्यम होता है और नकारात्मक ऊर्जा दूर करता है ,इस पर यन्त्र निर्माण में प्रयुक्त होने वाले अष्टगंध अथवा पंचगंध  की अपनी अलग विशेषता होती है  ,इनमे गोरोचन आदि प्रयुक्त होने वाले पदार्थ नकारात्मक शक्तियों को दूर कर सकारात्मकता को आकर्षित करते है ,यन्त्र निर्माण के समय साधक की विशिष्टता ,उसकी एकाग्रता ,आत्मबल ,उसके हाथो से निकलने वाली तरंगे ,उसकी अपनी सिद्धिया /शक्तिया यन्त्र को अलग बल प्रदान करती है ,निर्माणोंपरांत यन्त्र की प्राण प्रतिष्ठा और उस पर सम्बंधित इष्ट का जप इसे बहुत विशेष बना देता है,यन्त्र निर्माण हेतु निर्दिष्ट और चयनित मुहूर्तो का अपना अलग प्रभाव होता है  ,इसे विशिष्ट साधक ही बना और प्राण प्रतिष्ठित कर सकता है ,जिसके पास सम्बंधित विषय की क्षमता हो ,,इस प्रकार बना यन्त्र धारक पर  शीघ्र और सकारात्मक प्रभाव डालता है ,यन्त्र से उत्सर्जित होने वाली तरंगे व्यक्ति और आसपास के वातावरण को प्रभावित करती है जिससे परिवर्तन होते है और व्यक्ति लाभान्वित होता है ..............................................................................हर-हर महादेव 

महाशंख  

                      महाशंख के विषय में समस्त प्रभावशाली तथ्य केवल कुछ शाक्त ही जानते हैं |इसके अलावा सभी लोग tantra में शंख का प्रयोग इसी...