Thursday, 1 August 2019

महाकाली दीक्षा के आवश्यक तत्व


महाविद्या महाकाली दीक्षा
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            दीक्षा एक संस्कार है, जिसके माध्यम से कुसंस्कारों का क्षय होता है,| अज्ञान, पाप और दारिद्र्य का नाश होता है,| ज्ञान शक्ति व् सिद्धि प्राप्त होती है और मन में उमंग व् प्रसन्नता पाती है। दीक्षा के द्वारा साधक की पशुवृत्तियों का शमन होता है और जब उसके चित्त में शुद्धता जाती है, उसके बाद ही इन दीक्षाओं के गुण प्रकट होने लगते हैं और साधक अपने अन्दर सिद्धियों का दर्शन कर आश्चर्य चकित रह जाता है। जब कोई श्रद्धा भाव से दीक्षा प्राप्त करता है, तो गुरु को भी प्रसनता होती है, कि मैंने बीज को उपजाऊ भूमि में ही रोपा है। वास्तव में ही वे सौभाग्यशाली कहे जाते है, जिन्हें जीवन में योग्य गुरु द्वारा ऐसी दुर्लभ दीक्षाएं प्राप्त होती हैं, ऐसे साधकों से तो देवता भी इर्ष्या करते हैं।
           साधनाओं की बात आते ही दस महाविद्या का नाम सबसे ऊपर आता है। प्रत्येक महाविद्या का अपने आप में अलग ही महत्त्व है। लाखों में कोई एक ही ऐसा होता है जिसे सदगुरू से महाविद्या दीक्षा प्राप्त हो पाती है। इस दीक्षा को प्राप्त करने के बाद सिद्धियों के द्वार एक के बाद एक कर साधक के लिए खुलते चले जाते है। प्रत्येक महाविद्या दीक्षा अपने आप में ही अद्वितीय है,| साधक अपने पूर्व जन्म के संस्कारों से प्रेरित होकर या गुरुदेव से निर्देश प्राप्त कर इनमें से कोई भी दीक्षा प्राप्त कर सकते हैं। मात्र एक महाविद्या साधना सफल हो जाने पर ही साधक के लिए सिद्धियों का मार्ग खुल जाता है, और एक-एक करके सभी साधनों में सफल होता हुआ वह पूर्णता की ओर अग्रसर हो जाता है। यहां यह बात भी ध्यान देने योग्य है, कि दीक्षा कोई जादू नहीं है, कोई मदारी का खेल नहीं है, कि बटन दबाया और उधर कठपुतली का नाच शुरू हो गया।
महाकाली महाविद्या दीक्षा
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          यह तीव्र प्रतिस्पर्धा का युग है। आप चाहे या चाहे विघटनकारी तत्व आपके जीवन की शांति, सौहार्द भंग करते ही रहते हैं। एक दृष्ट प्रवृत्ति वाले व्यक्ति की अपेक्षा एक सरल और शांत प्रवृत्ति वाले व्यक्ति के लिए अपमान, तिरस्कार के द्वार खुले ही रहते हैं। आज ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं है, जिसका कोई शत्रु हो और शत्रु का तात्पर्य मानव जीवन की शत्रुता से ही नहीं, वरन रोग, शोक, व्याधि, पीडा भी मनुष्य के शत्रु ही कहे जाते हैं, जिनसे व्यक्ति हर क्षण त्रस्त रहता है और उनसे छुटकारा पाने के लिए टोने टोटके आदि के चक्कर में फंसकर अपने समय और धन दोनों का ही व्यय करता है, परन्तु फिर भी शत्रुओं से छुटकारा नहीं मिल पाता।
           महाकाली दीक्षा के माध्यम से व्यक्ति शत्रुओं को निस्तेज एवं परास्त करने में सक्षम हो जाता है, चाहे वह शत्रु आभ्यांतरिक हों या बाहरी, इस दीक्षा के द्वारा उन पर विजय प्राप्त कर लेता है, क्योंकि महाकाली ही मात्र वे शक्ति स्वरूपा हैं, जो शत्रुओं का संहार कर अपने भक्तों को रक्षा कवच प्रदान करती हैं। जीवन में शत्रु बाधा एवं कलह से पूर्ण मुक्ति तथा निर्भीक होकर विजय प्राप्त करने के लिए यह दीक्षा अद्वितीय है। देवी काली के दर्शन भी इस दीक्षा के बाद ही सम्भव होते है, गुरु द्वारा यह दीक्षा प्राप्त होने के बाद ही कालिदास में ज्ञान का स्रोत फूटा था, जिससे उन्होंने मेघदूत’ , ‘ऋतुसंहार’ जैसे अतुलनीय काव्यों की रचना की, इस दीक्षा से व्यक्ति की शक्ति भी कई गुना बढ़ जाती है।
          काली दीक्षा काली के उच्च कोटि के साधक द्वारा ही दी जा सकती है |हर कोई इस दीक्षा को नहीं दे सकता |वैसे भी महाविद्याओं में से किसी की भी दीक्षा केवल सम्बंधित महाविद्या की तंत्रोक्त साधना करने वाला साधक ही दे सकता है |अतः इस दीक्षा के पहले सुनिश्चित होना चाहिए की गुरु वास्तव में काली का सिद्ध साधक है |ऐसा इसलिए कहना पड़ रहा है की आजकल सोसल मीडिया आदि पर प्रचार करके दीक्षाएं रेवड़ियों की तरह बांटी जा रही हैं ,कैम्प लगाकर दीक्षा दिया जा रहा है ,सार्वजनिक मंचों से बोलकर दीक्षाएं दी जा रही हैं ,जो की पूर्णतया गलत है |ऐसे गुरु दीक्षा दे रहे हैं जो सम्बंधित महाविद्या की तो बात ही क्या किसी भी महाविद्या के साधक या सिद्ध नहीं है |वैदिक कर्मकांडी और प्रवचनकर्ता भी महाविद्या की दीक्षाएं दे रहे हैं |व्यवसायी तांत्रिक अथवा भौतिकता में लिप्त गुरु दीक्षा दे रहे हैं |जिससे अक्सर असफलता मिल रही है शिष्यों को और वे फिर किसी और का मुंह देखने को विवश हो रहे हैं अथवा उनका मोहभंग हो रहा है |इन गुरुओं को तंत्र की अथवा सम्बन्धित महाविद्या साधना की तकनिकी जानकारी नहीं होती ,मात्र मंत्र देकर पैसे -दक्षिणा -उपहार लेकर कर्त्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं |अक्सर अन्य लोगों से दीक्षा प्राप्त साधक हमने मार्गदर्शन के लिए सम्पर्क करते हैं जो की गलत है |यह उन्हें पहले ही सोचना चाहिए |अक्सर शाबर मंत्र साधक से दीक्षा प्राप्त साधक तंत्रोक्त मंत्र करना चाहते हैं जो की मुश्किल हो जाता है |काली दीक्षा प्राप्त साधक अगर श्रद्धा के साथ साधना करे तो उसके समान शक्तिशाली कोई नहीं |वह चारो पुरुषार्थों को प्राप्त कर सकता है |देवता उसके इच्छाओं को पूर्ण करने को बाध्य होते हैं |उसकी सर्वत्र विजय होती है और उसे कोई बाधा प्रभावित नहीं कर सकती |
          दस महाविद्या में काली प्रथम रूप है। माता का यह रूप साक्षात और जाग्रत है। काली के रूप में माता का किसी भी प्रकार से अपमान करना अर्थात खुद के जीवन को संकट में डालने के समान है। महा दैत्यों का वध करने के लिए माता ने ये रूप धरा था। सिद्धि प्राप्त करने के लिए माता की वीरभाव में पूजा की जाती है। काली माता तत्काल प्रसन्न होने वाली और तत्काल ही रूठने वाली देवी है। अत: इनकी साधना या इनका भक्त बनने के पूर्व एकनिष्ठ और कर्मों से पवित्र होना जरूरी होता है। यह कज्जल पर्वत के समान शव पर आरूढ़ मुंडमाला धारण किए हुए एक हाथ में खड्ग दूसरे हाथ में त्रिशूल और तीसरे हाथ में कटे हुए सिर को लेकर भक्तों के समक्ष प्रकट होने वाली काली माता को नमस्कार। यह काली एक प्रबल शत्रुहन्ता महिषासुर मर्दिनी और रक्तबीज का वध करने वाली शिव प्रिया चामुंडा का साक्षात स्वरूप है, जिसने देव-दानव युद्ध में देवताओं को विजय दिलवाई थी। इनका क्रोध तभी शांत हुआ था जब शिव इनके चरणों में लेट गए थे।
           महाकाली दीक्षा में अत्यंत आवश्यक तत्व है गुरु का तकनिकी रूप से सक्षम होना और खुद की साधना में अत्यंत उच्च स्थान होना ,क्योंकि महाकाली ही वह शक्ति हैं जो कुंडलिनी जाग्रत कर सकती हैं साथ ही समस्त उग्र शक्तियाँ एक साथ प्रदान कर सकती हैं |इनकी साधना की तकनीकी गलती साधक का वर्त्तमान और भविष्य दोनों नष्ट कर देती है |श्रद्धा और भावना से की गयी आराधना एक अलग विषय है जहाँ यह माँ स्वरुप में हानि नहीं करती किन्तु साधना की स्थिति आते ही यह कोई गलती क्षमा नहीं करती |जो गुरु तकनीकी दक्ष होगा और अपनी साधना में रम कर उच्चावस्था प्राप्त कर रहा होगा वह सामान्यतया दीक्षा में रूचि नहीं लेगा क्योंकि उसे सदैव योग्य शिष्य ही चाहिए जो वास्तविक साधना का इच्छुक और भौतिकता से अलग मुक्ति की कामना रखता हो |ऐसा शिष्य मिलना मुश्किल है ,अतः गुरु बहुत कम लोगों को दीक्षा देता है वह भी कठिन परीक्षा लेकर |
             बाजार में तो लाखों गुरु भरे पड़े हैं किन्तु शिष्य का सौभाग्य होता है सच्चा गुरु पा लेना |सच्चा गुरु कभी पैसे नहीं मांगता और उसका कोई शुल्क नहीं होता किन्तु जब वास्तविक गुरु मिल जाए तो दीक्षा समय शिष्य को चाहिए की वह गुरु को उतना पूर्ण वस्त्र समर्पित करे जितना वह धारण करते हों |कम से २७ दिन के उनके भोजन योग्य सामग्री अथवा मूल्य और एक दिन के उनके परिवार के लिए भोजन सामग्री अथवा मूल्य समर्पित करे |दीक्षा समय थोड़े फल -फूल और दक्षिणा उनके चरणों में अर्पित करे |२७ दिन का तात्पर्य २७ नक्षत्र से है जिनमे शिष्य का भोजन करते हुए गुरु का आशीर्वाद प्राप्त हो |बहुत से शिष्य पूरे सौर वर्ष अर्थात १२ राशियों के भ्रमण काल के बराबर श्रद्धा अर्पित करते हैं जिससे गुरु का आशीर्वाद पूरे सूर्य के सभी ग्रह नक्षत्रों में भ्रमण करने तक मिल सके |कम से कम २७ नक्षत्र तो आवश्यक होता है |पहले के समय में शिष्य भिक्षा मांगकर लाकर गुरुकुल चलाते थे किन्तु आज भिक्षा का समय तो नहीं पर गुरु आज भी वैसा ही है |वास्तविक गुरु जब व्यावसायिक नहीं होता तो उसका जीवन यापन भी शिष्य की जिम्मेदारी होता है ,अतः दीक्षा पूरे सामर्थ्य से लेनी चाहिए |
           महाकाली की दीक्षा एकाएक नहीं हो सकती |पहले आपको जानना चाहिए की आपकी क्षमताएं क्या हैं ,उद्देश्य क्या है ,जरूरते क्या हैं और आपके संस्कार क्या हैं |महाकाली के अनेक रूप और अनेक मंत्र हैं |महाकाली की साधना मतलब तकनिकी तंत्र साधना |यहाँ हर कदम गुरु की जरूरत है और हर कदम पर ब्रह्मांडीय उर्जा संरचना के वैज्ञानिक तकनिकी सूत्रों का प्रयोग है |आपको महाकाली के अपने अनुकूल रूप को जानना समझना चाहिए |श्मशान काली की साधना घर में नहीं हो सकती ,कामकला काली की साधना सात्विक भाव से मुश्किल है और दक्षिण काली की साधना भावुकता -कोमलता से रोते हुए नहीं हो सकती |इन अंतरों को समझना आवश्यक है |काली की साधना में वीर भाव आवश्यक है अतः यह डरपोक ,कायर लोगों के लिए नहीं है |इनके हर स्वरुप के गुण भिन्न हैं और तदनुरूप मंत्र हैं |मूलाधार की अधिष्ठात्री यह हैं और इनकी सिद्धि से मूलाधार की शक्तियाँ जाग जाती हैं |इनका साक्षात्कार होने का मतलब स्वयमेव कुंडलिनी जागरण |इनकी दीक्षा सामान्यतया तांत्रिक पद्धतियों से ही होती हैं किन्तु यदि साधक अत्यधिक सात्विक भाव वाला है तो गुरु सात्विक पद्धति से भी दीक्षा दे सकता है |इनकी दीक्षा प्राप्ति के लिए शिष्य में प्रबल आत्मबल ,साहस ,आत्मविश्वास ,धैर्य तथा गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण होना चाहिए |कोशिश यह होनी चाहिए की काली सिद्ध गुरु से दीक्षा प्राप्ति के बाद आप किसी भी अन्य गुरु से दीक्षा न लें और उन्ही को आध्यात्मिक भौतिक सभी गुरु बनाएं |यदि आपके पहले से गुरु हैं तो बिना गुरु की अनुमति के आप काली की किसी अन्य से दीक्षा न लें |इन स्थितियों में व्यतिक्रम उत्पन्न होता है जो समस्याएं दे सकता है |
   काली के मुख्य शस्त्र त्रिशूल और विशेष तलवार हैं जिसे खड्ग कहा जाता है |दीक्षा हेतु अथवा साधना हेतु सर्वोत्तम दिन शुक्रवार ,शनिवार ,कृष्ण चतुर्दशी ,अमावस्या आदि होता है | कालिका पुराण ,महाकाल संहिता आदि ग्रंथों में इनका विशेष उल्लेख मिलता है |काली का मूल बीज क्रीं और क्लीं है जिनके साथ विभिन्न बीजों का संयोजन इनके ऊर्जा की भिन्न प्रकृति का प्रतिनिधित्व करता है |
इनका एक मंत्र : ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि कालिके स्वाहा है किन्तु इनके किसी भी मंत्र की साधना बिना गुरु के नहीं की जानी चाहिए |कालीका के प्रमुख तीन स्थान है:- कोलकाता में कालीघाट पर जो एक शक्तिपीठ भी है। मध्यप्रदेश के उज्जैन में भैरवगढ़ में गढ़कालिका मंदिर इसे भी शक्तिपीठ में शामिल किया गया है और गुजरात में पावागढ़ की पहाड़ी पर स्थित महाकाली का जाग्रत मंदिर चमत्कारिक रूप से मनोकामना पूर्ण करने वाला है।
 महाकाली शाबर मन्त्र
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निरंजन निराकार अवगत पुरुष तत सार, तत सार मध्ये ज्योत, ज्योत मध्ये परम ज्योत, परम ज्योत मध्ये उत्पन्न भई माता शम्भु शिवानी काली काली काली महाकाली, कृष्ण वर्णी, शव वाहनी, रुद्र की पोषणी, हाथ खप्पर खडग धारी, गले मुण्डमाला हंस मुखी जिह्वा ज्वाला दन्त काली मद्यमांस कारी श्मशान की राणी मांस खाये रक्त-पी-पीवे भस्मन्ति माई जहाँ पर पाई तहाँ लगाई सत की नाती धर्म की बेटी इन्द्र की साली काल की काली जोग की जोगीन, नागों की नागीन मन माने तो संग रमाई नहीं तो श्मशान फिरे अकेली चार वीर अष्ट भैरों, घोर काली अघोर काली अजर बजर अमर काली भख जून निर्भय काली बला भख, दुष्ट को भख, काल भख पापी पाखण्डी को भख जती सती को रख, काली तुम बाला ना वृद्धा, देव ना दानव, नर ना नारी देवीजी तुम तो हो परब्रह्मा काली
काली का मूल मंत्र है - ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा ।

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