Saturday, 13 June 2020

महाशंख  

                      महाशंख के विषय में समस्त प्रभावशाली तथ्य केवल कुछ शाक्त ही जानते हैं |इसके अलावा सभी लोग tantra में शंख का प्रयोग इसी महाशंख के कारण करते हैं |लेखक लोग शंख को ही तांत्रिक सामग्री मानकर ग्रन्थ पूर्ण कर देते हैं |में आपसे यह स्पष्ट करना चाहता हूँ की शंख और महाशंख दोनों अलग हैं |यह क्या है और इसके tantra प्रयोग क्या हैं यह हम स्पष्ट करते हैं |शंख को बजाना शुभ होता है |शंख के द्वारा अर्ध्य दिया जाता है |शंख द्वारा देव स्नान कराया जाता है ,कुछ सेवन किया जाता है ,|इसके आलावा शंख के tantra में कोई प्रयोग नहीं होते |दक्षिणावर्ती शंख भी पूजन में ही प्रयुक्त होता है जिसका प्रयोग लक्ष्मी उपासना में किया जाता है ,इसके अतिरिक्त बहुत प्रयोग tantra में शंख के नहीं हैं ,जबकि महत्त्व बहुत दिया जाता है ,इसका कारण यही महाशंख है जिसके बारे में हम आगे बताने जा रहे हैं |वास्तव में शंख और महाशंख में बहुत भेद होता है |
                   व्यक्ति के प्राणांत हो जाने पर उसी शव से यह महाशंख प्राप्त होता है ,जबकि शंख तो समुद्र में जीव का खोल है |इसे हमेशा याद रखना चाहिए |स्त्री और शूद्र से चांडाल की उत्पत्ति होती है तथा "तज्जायश्चेव चांडाल सर्व मंत्र विवर्जितः " इसी कारण यह लोग मन्त्रों से हीन होते हैं |"मंत्रहीनेतुस्थ्यादिसर्ववर्ण विभुषिताम" जो लोग मन्त्रों से हीन होते हैं उन्ही की अस्थियों में सभी वर्ण रहते हैं |
                     जो साधक महाशंख की माला से जप करता है वह निःसंदेह अणिमा आदि सिद्धियों को प्राप्त करता है |यह माला बनानी तथा प्राप्त करनी तो सरल है क्योकि इसमें धन का कोई व्यय नहीं होता किन्तु खतरनाक अवश्य है |धन के विषय में जितनी सरल है उतनी ही स्वर्ग से भी दुर्लभ है ,क्योकि स्वर्ग तो आपको प्राप्त हो जाएगा परन्तु इस माला की प्राप्ति किसी व्यावसायिक व्यक्ति से नहीं होती |यहाँ तक की आज के तथाकथित बड़े बड़े तांत्रिक और स्वयंभू साधक तक इसके बारे में जानते तक नहीं ,पानी और देखनी तो दूर की बात है |इसे प्राप्त करने के लिए श्मशान में घूमना पड़ता है अथवा यह माला भाग्यवश ही गुरुकृपा से प्राप्त होती है |व्यक्ति इसे बना सकता है अगर खुद भी प्रयास करे तो |इस माला के द्वारा सही मन्त्रों का जप करना चाहिए |मंत्र के सभी दोषों को यह माला समाप्त कर देती है |मंत्र किसी भाँती के दोष से युक्त हो सकता है परन्तु यह माला कभी भी दोषी नहीं होती है |इसी कारण    महाशंख सर्वत्र तेषु योजितम अर्थात महाशंख ही सब प्रकार के मन्त्रों से लाभ प्राप्त करने के लिए सर्वश्रेष्ठ है |
पूर्वजन्म के शुभ तथा सफल कर्मो के प्रयास से यदि कभी किसी को महाशंख की माला प्राप्त हो जाती है तो वह व्यक्ति तो क्या उसका समस्त परिवार ही समस्त साधनाओं का लाभ प्राप्त कर लेता है |
क्या है महाशंख
-------------------- महाशंख के विषय में समस्त प्रभावशाली तथ्य केवल कुछ शाक्त ही जानते हैं |इसके अलावा सभी लोग तंत्र में शंख का प्रयोग इसी महाशंख के कारण करते हैं |लेखक लोग शंख को ही तांत्रिक सामग्री मानकर ग्रन्थ पूर्ण कर लेते हैं |इसका कारण यह है की लेखक अच्छे साधक ही मुश्किल से होते हैं उस पर वे उच्च स्तर के शाक्त साधक हों बेहद मुश्किल है |खुद साधना और मूल तंत्र का अनुभव न होने से यहाँ वहां से सुनी हुई बातों और पुराने शास्त्रों को तोड़ मरोड़कर कुछ अपनी कल्पनाएँ घुसेड़कर एक किताब लिख देते हैं और कर्तव्य की इतिश्री मान लेते हैं |वास्तविक तंत्र एक तो वैसे भी गोपनीय होता है जो इन लेखकों को पता ही नहीं चलता उस पर खुद साधना ज्ञान न होना कोढ़ में खाज हो जाता है और सतही षट्कर्म की किताब सामने होती है |आज तंत्र की दुर्दशा का यह बहुत बड़ा कारण है और मूल तंत्र के लोप का भी |
सामान्य शंख को बजाना शुभ होता है |शंख के द्वारा अर्ध्य दिया जाता है |शंख द्वारा कुछ सेवन किया जाता है |शंख द्वारा देव स्नान भी कराते हैं |इसके अलावा तंत्र में शंख के कोई काम नहीं होते जबकि शंख का महत्त्व बहुत अधिक है |तो आखिर वह कौन सा शंख है जो इतना महत्त्व पूर्ण है |तंत्र में दक्षिणावर्ती शंख का प्रयोग लक्ष्मी प्राप्ति हेतु जरुर किया जाता है ,किन्तु यह पूजन होता है |वास्तव में शंख और महाशंख में बहुत बड़ा अंतर होता है |
व्यक्ति के प्राणांत हो जाने पर उसी शव से यह महाशंख प्राप्त होता है जबकि शंख की प्राप्ति सबको मालूम है |चांडाल लोग मन्त्रों से हीन होते हैं और जो लोग मन्त्रों से हीन होते हैं उन्ही की अस्थियों में सभी वर्ण होते हैं |हिंदी की शब्दमाला को ही वर्ण या वर्णमाला कहते हैं |इन्ही वर्णों पर अं की मात्रा लगाने से यह वर्ण बीज वर्ण बन जाते हैं |अ से लेकर क्ष तक के सभी वर्ण अस्थियों के मध्य सदा विद्यमान रहते हैं |प्रस्तुत चित्र के अनुसार दर्शाए गएँ अंगों पर चिन्ह के स्थानों की अस्थि लेकर माला बनाने पर वह महाशंख की माला कहलाती है |
इस माला के द्वारा जप करने पर समस्त सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं |इन स्थानों की अस्थियाँ लेकर स्थानानुसार ही माला में पिरोया जाता है ||इस माला को सर्प की भाँती बनाया जाता है अर्थात आगे से मोती होती होती पीछे जाकर पतली हो जाए |स्पष्टतः यह समझ लें की माला का मूल मोटा और फिर क्रमशः पतला होता चला जाता है |माला को बनाते समय पहले मोती अस्थि डाली जाती है ,फिर उससे पतली ,फिर और उससे पतली अस्थि पिरोते जाते हैं |जहाँ जहाँ चित्र में चिन्ह लगे हैं वहां वहां की अस्थि ली जाती है |सर से पैर तक की अस्थियाँ क्रम से पिरोई जाती हैं |जब माला बन जाती है तो प्रणव की गाँठ लगाईं जाती है |इसके उपर एक लम्बी अस्थि डालकर पुनः ब्रह्मगाँठ लगाईं जाती है |इसे बनाकर प्राण प्रतिष्ठा की जाती है |प्राण प्रतिष्ठा का विधान अत्यंत गोपनीय होता है |
इस माला को गोपनीय रखा जाता है और इस पर जप की शुरुआत मोटी तरफ से करके समापन पतली तरफ किया जाता है |पुनः मोती तरफ से शुरुआत होती है |इस भाँती जप करने से निश्चित सिद्धि प्राप्त होती है |
महाशंख की माला बनाने के लिए स्त्री ,ब्राह्मण तथा मन्त्र दीक्षित व्यक्ति के शव की अस्थियाँ नहीं ली जाती |शव साधना में भी स्त्री का शरीर उपयोग नहीं किया जाना चाहिए |महाशंख की माला हेतु बिना दीक्षित ,जो ब्राह्मण न हो उसके शव की अस्थियाँ उपयुक्त होती हैं इसीलिए शूद्र अथवा चांडाल की अस्थियाँ अधिक उपयुक्त होती हैं |.................................................................हर-हर महादेव 

गृहस्थ कैसे ईश्वरीय शक्ति महसूस करे ?


गृहस्थ कैसे ईश्वरीय शक्ति महसूस करे       
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हमने अपने ब्लॉग पर प्रकाशित लेख -"" क्यों अपना कष्ट खुद दूर नहीं करते "" में सामान्य लोगों के जीवन ,कष्टों ,समस्याओं पर लिखा था और सुझाव रखा था की क्यों न हम खुद अपना कष्ट दूर करें ,बजाय यहाँ -वहां ,पंडितों ,मौलवियों ,ज्योतिषियों ,तांत्रिकों ,मंदिरों ,मस्जिदों तक दौड़ने के |हमारा उद्देश्य यह है की व्यक्ति खुद इतनी ईश्वरीय ऊर्जा प्राप्त करे की उसके कष्ट दूर हो जाएँ |वह शोषण ,धोखे ,फरेब से बच सके ,साथ ही एक शक्ति ऐसी उसके साथ जुड़े जो हमेशा उसकी सहायक रहे ,अर्थात ईश्वर वास्तविक रूप से व्यक्ति के साथ जुड़े |इस सम्बन्ध में लोगों के पास अक्सर कोई स्पष्ट दृष्टि नहीं होती |तकनिकी ज्ञान नहीं होता ,जबकि लगभग हर आस्तिक व्यक्ति पूजा -पाठ करता है ,मंदिरों -मस्जिदों में जाता है और चाहता है की ईश्वर उससे जुड़े ,उस पर कृपा करे ,उसके कष्ट दूर करे ,उसे सुखी करे |हर व्यक्ति ईश्वर और ईश्वरीय ऊर्जा महसूस करना चाहता है किन्तु अधिकतर को वर्षों पूजा -पाठ करने पर कुछ भी महसूस नहीं होता ,बड़े बड़े कर्मकांड ,अनुष्ठान का कभी कभी कोई परिणाम नहीं दिखता ,इसलिए ही हमें यह लेख लिखने की जरूरत महसूस हुई की कुछ मूलभूत बातें जो हमें ज्ञान हैं यदि उनसे किन्ही लोगों का भला हो जाए और उन्हें ईश्वरीय ऊर्जा महसूस हो तो बताने में कोई बुराई नहीं |
ईश्वरीय ऊर्जा या शक्ति महसूस करना आसान नहीं ,किन्तु यह उतना कठिन भी नहीं जितना लोग सोचते हैं या कहा जाता है |यदि निष्ठा ,चाहत ,लगन ,श्रद्धा ,विश्वास है तो" ईश्वर जरुर मिलता है "|ईश्वर का साक्षात्कार अक्सर साधकों को होता है ,किन्तु उसकी शक्ति ,उसकी ऊर्जा तो हर कोई महसूस कर सकता है यदि चाह ले तो |हालांकि जो तरीके हम लिखने जा रहे उनसे भी साक्षात्कार हो सकता है यदि व्यक्ति एकाग्र हुआ तो |ईश्वरीय उर्जा या शक्ति प्राप्त करने ,उसे महसूस करने के लिए सबसे पहले तो खुद को उससे जोड़ना होना ,उसमे डूबना होगा ,उसका चिंतन करना होगा ,उस पर एकाग्र होना होगा ,खुद को उसका और उसको अपना समझना होगा ,इतना जुड़ाव महसूस करना होगा की वह अवचेतन तक जुड़ जाए |यहाँ महत्त्व वस्तुओं ,पदार्थों ,पूजन सामग्रियों ,आडम्बरों ,मंत्र संख्याओं का नहीं होता अपितु महत्त्व भावना ,एकाग्रता और चाहत का होता है |ईश्वरीय ऊर्जा महसूस करने के लिए गुरु की भी कोई बहुत आवश्यकता नहीं ,यद्यपि साक्षात्कार और सिद्धि बिन गुरु के मुश्किल होती है |हमने जो भी पद्धतियाँ सोची हैं अथवा विकसित की हैं इस हेतु उन्हें बिन गुरु के किया जा सकता है ,हाँ सुरक्षा कवच की जरूरत पड़ती है जो सिद्ध साधक से बनवाकर धारण किया जा सकता है |कुछ पद्धतियाँ ईश्वरीय ऊर्जा महसूस करने के लिए निम्न हो सकती हैं |
हमने अपने blogपर तथा अपने फेसबुक पेजों "अलौकिक शक्तियाँ" तथा "tantramarg" पर एक साधना पद्धति प्रकाशित की हुई है जिसका शीर्षक है ,"15 मिनट पर्याप्त हैं ईश्वरीय ऊर्जा प्राप्ति के लिए " या "15 मिनट और ईश्वरीय शक्ति प्राप्ति "| इस पद्धति में दीपक पर त्राटक करते हुए गणपति की साधना बताई गयी है जिससे आज्ञा चक्र की सिद्धि ,गणपति की सिद्धि और कृपा प्राप्त होती है |एकाग्रता के अनुसार यह पद्धति भूत -भविष्य -वर्तमान देखने तक की शक्ति प्रदान कर सकती है |इससे गणपति की कृपा प्राप्त होती है और विघ्न बाधाएं समाप्त हो खुशहाली प्राप्त होती है |इस साधना हेतु मात्र १० से १५ मिनट का समय पर्याप्त होता है और इसे बिन गुरु के भी किया जा सकता है ,मात्र सुरक्षा कवच धारण करके |
हमने दूसरी साधना पद्धति भगवती काली से सम्बंधित ,अपने उपरोक्त blogs और फेसबुक पेजों पर प्रकाशित की है जिसमे मात्र काली सहस्त्रनाम के पाठ से काली की शक्ति महसूस करने की पद्धति बताई गयी है |इसका शीर्षक "महाकाली साधना "-[जिन्हें गुरु न मिले ] अथवा "काली सहस्त्रनाम -सौ समस्या का एक इलाज " है |इस पद्धति में मात्र काली जी के एक हजार नामों को एक विशेष समय -पद्धति से पढने या पाठ करने के बारे में बताया गया है |इससे भगवती की कृपा मिलती है और उनकी ऊर्जा महसूस भी होती है |यह साधना भी बिन गुरु के मात्र सुरक्षा कवच के साथ की जा सकती है |
आप सामान्य व्यक्ति हैं ,आपको कोई पूजा पद्धति -कर्मकांड नहीं आता ,अपनी समस्या के लिए मंदिरों ,मौलवियों ,पंडितों ,ज्योतिषियों के चक्कर काटने पर मजबूर हैं ,आपको कोई परिणाम नहीं समझ में आता ,नकारात्मक प्रभावों से कष्ट पा रहे तो आप अपने उस ईष्ट देवता का सुन्दर सा चित्र ले आयें जो आपको सबसे अधिक प्रिय हों |इस चित्र को पूजा स्थान या अपने कमरे में अपने बैठने के स्थान के स्थान पर इस प्रकार लगाएं की चित्र आपके आँखों के सामने पड़े |जो आपको समझ आता तो उतनी पूजा प्रतिदिन करें ,स्नान जरुर करें रोज और भोजन पूर्व ईष्ट को मन की भावना से अथवा उपलब्ध संसाधनों से भोजन जरुर कराएं |स्नान बाद सामान्य पूजन ,नैवेद्य चढ़ाकर आप अपने ईष्ट से अपनी मनोकामना कहें |आप अपने ईष्ट में गुरु ,माता -पिता ,भाई -बहन ,मित्र की भावना करें |यह जरुर याद रखें की रोज आपकी मनोकामना बदलनी नहीं चाहिए ,कम से कम एक महीने तक एक प्रकार की मनोकामना स्थिर रहनी चाहिए |आप जिस रूप में अपने ईष्ट को एक बार मान लें फिर उसे कभी नहीं बदलें और हमेशा उसी रूप में उसे याद करें |अब आप अपने ईष्ट के चित्र पर एकटक एकाग्र हो जाएँ और कल्पना रखें की वह आपकी ओर देख रहे हैं ,आपको आशीर्वाद दे रहे हैं ,मुस्करा रहे हैं ,बात कर रहे या बात करेंगे |कुछ समय बाद ही चित्र बदलता लगेगा ,ईष्ट की भाव भंगिमा ,स्वरुप बदलेगा ,और कुछ समय बाद आपको लगेगा की चित्र साकार होकर ईष्ट में बदल गया |एकाग्रता अच्छी होने पर यह एक सप्ताह से १५ दिन में संभव है |जिस दिन ईष्ट साकार रूप ले लिया ,या आपकी एकाग्रता इतनी हुई की आप खुद का अस्तित्व मात्र एक मिनट भूल जाएँ और ईष्ट के स्वरुप में खो जाएँ तो ईष्ट की कृपा आपको मिल जायेगी और उसकी ऊर्जा आपसे जुडकर आपकी सोच ,भावना के अनुरूप काम करने लगेगी ,आपकी शारीरिक ,मानसिक और चक्रों की स्थिति में परिवर्तन के साथ साथ आसपास का वातावरण तक उसकी ऊर्जा से संतृप्त होने लगेगा और आपको उसकी शक्ति ,ऊर्जा महसूस होने लगेगी |यहाँ हम यह चेतावनी देना चाहेंगे की ईष्ट का चुनाव हमेशा सौम्य शक्ति में से ही करें यदि आपके पास सक्षम गुरु नहीं हैं या आपने सुरक्षा कवच नहीं पहना |इस प्रकार के ईष्ट में हनुमान ,भैरव ,काली ,बगला ,दुर्गा ,रूद्र ,दक्षिणावर्ती सूंड के गणेश आदि का चयन न करें ,यदि आप इनमे से या ऐसी उग्र शक्ति का चयन करते हैं तो सुरक्षा कवच जरुर पहने या सक्षम गुरु की अनुमति के बाद ही यह करें | यदि नकारात्मक ऊर्जा से पीड़ित नहीं हैं तो सौम्य शक्ति से आपकी मनोकामना पूर्ण हो जायेगी |
ईश्वरीय शक्ति प्राप्ति ,ईश्वर का साक्षात्कार ,ईश्वर से वार्तालाप अवचेतन पर आधारित क्रिया है |चेतन की चंचलता के बीच यह मुश्किल होता है |जब तक ईष्ट का जुड़ाव अवचेतन स्तर पर नहीं होता उसका साक्षात्कार ,वार्तालाप संभव नहीं होता |एक बार ऐसा होने पर फिर वह चेतन स्तर और स्वरुप पर भी सक्रीय हो जाता है |यद्यपि सभी पद्धतियों में अवचेतन की भूमिका होती ही है किन्तु हमारी इस पद्धति में अवचेतन अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो जाता है |आप अपने ईष्ट का एक सौम्य सुंदर का चित्र अपने पूजन स्थान में स्थापित करें |एक क्रिस्टल बाल टेनिस की गेंद के आकार का लें और उसे चित्र के सामने स्थापित करें ,बाल के पीछे ईष्ट के रंग के अनुकूल रंग का एक जीरो वाट का बल्ब इस प्रकार जलाएं की पूरे बाल का रंग उसी रंग से छा जाए |ईष्ट का चित्र और क्रिस्टल बाल इस प्रकार रखें की यह आँखों की सीध में २ फुट की दूरी पर रहें |ईष्ट की सामान्य पूजा प्रतिदिन होनी चाहिए |पूजन बाद अपने ईष्ट को कुछ पल एकटक देखें फिर क्रिस्टल बाल पर ध्यान एकाग्र करें और उसमे ईष्ट के चित्र को उभारने का प्रयत्न करें |शुरू में क्रिस्टल बाल बिलकुल सादा नजर आएगा ,फिर एकाग्रता बढने के साथ भिन्न भिन्न चित्र ,लोगों के आकार ,दृश्य दिखेंगे |यह सब अवचेतन की तस्वीरें होंगी |समय के साथ ईष्ट भी दिखेगा ,फिर स्थिर होगा ,फिर आशीर्वाद दे सकता है ,वार्तालाप हो सकता है ,साक्षात्कार हो सकता है |यह क्रिया प्रतिदिन १० से १५ मिनट करें |यदि आपकी एकाग्रता ,याददास्त ,विश्वास ,श्रद्धा अच्छी है तो इस क्रिया में साक्षात्कार भी मुश्किल नहीं |इस साधना की सफलता ,शक्ति की कोई सीमा नहीं |भूत -भविष्य -वर्त्तमान के दर्शन संभव हैं |इस साधना में किसी अवचेतन के जानकार से कुछ लाइनें लिखवाकर प्रतिदिन उनका तीन -चार बार १० मिनट दोहराव करने से ईष्ट आपके अवचेतन से जुड़ जाता है और उस पर श्रद्धा -विश्वास बढ़ता है |ईष्ट के अवचेतन से जुड़ने पर एक अदृश्य ऊर्जा ईष्ट की आपसे जुड़ जाती है |उसके गुण ,आकृति स्थायी होने लगते हैं |इस साधना में सुरक्षा कवच अति आवश्यक होता है जिससे शरीर की सुरक्षा रहे |कभी कभी खुद को भूलने ,ईष्ट में डूबने पर भयात्मक या रोमांचक अनुभूतियाँ होती हैं ,ऐसे में सुरक्षा कवच जरुरी होता है |इस साधना हेतु तब तक उग्र देवी -देवता का चयन न करें ,जब तक सक्षम गुरु न हों अन्यथा सौम्य शक्ति का ही चयन करें |
5. यदि आप साधक हैं और वर्षों साधना करने के बाद भी आपको ईश्वरीय ऊर्जा महसूस नहीं हो पा रही ,अथवा आप दीक्षित तो हैं पर आपको आपके गुरु से पर्याप्त सहायता नहीं मिल पा रही या आपके गुरु आपका लक्ष्य दिलाने में अक्षम लग रहे तो आप अश्रद्धा मत रखिये या भटकिये मत |आप सक्षम व्यक्ति या अपने गुरु से सुरक्षा कवच प्राप्त कीजिये ,उनसे चयनित ईष्ट की साधना की अनुमति प्राप्त कीजिये |आप अपने सुविधानुसार स्थान का चयन कीजिये और मिटटी युक्त जमीन पर ईशान कोण में किसी चौकी या बाजोट पर ईष्ट की मूर्ती स्थापित कर उसके सामने मिटटी में हवन कुंड बनाइये |ईष्ट की पूजा रोज सुबह जरुर कीजिये |यदि सौम्य शक्ति है तो सुबह का समय और उग्र शक्ति है या देवी शक्ति है तो रात्री का समय साधना के लिए चयनित कीजिये |साधना समय अपने आसन के चारो ओर सिन्दूर -कपूर -लौंग -घी की सहायता से पेस्ट बना घेरा बनाएं |अब अपनी पद्धति अनुसार या कुछ नहीं पता तो सामाय पूजन कर धुप दीप जलाकर बिलकुल धीमे स्वरों में ,धीरे धीरे लंबा खींचते हुए पूर्ण नाद के साथ ईष्ट के मंत्र की दो माला जप करें |मन्त्र जप में जल्दबाजी न हो ,रटते हुए जप न हो ,समय न देखें इस समय ,घड़ी -मोबाइल साथ न हो ,स्थान पर प्रकाश धीमा हो ,जप समय ध्यान मूर्ती पर हो |जप के बाद इष्ट के अनुकूल हवन सामग्री से कुण्ड में हवन करें और अपना जप हवन अपने ईष्ट को समर्पित करें |यह क्रम लगातार कम से कम ५१ दिन चले |इस सामान्य सी लगने वाली साधना से आपके ईष्ट की कृपा आपको प्राप्त हो जायेगी और उसकी ऊर्जा ,शक्ति आपको अपने आसपास और स्वयं में महसूस होने लगेगी |यहाँ तक की आप द्वारा अभिमंत्रित जप ,वस्तु लोगों का भला करने लगेगी |खुद के कल्याण के साथ दूसरों का कल्याण भी कुछ हद तक आप करने में सक्षम होंगे |यहाँ भी उग्र शक्ति का चयन आप बिना सक्षम गुरु के न करें |यहाँ विस्तृत पद्धति इसलिए नहीं दी जा रही की इस प्रकार की साधना साधक ही कर सकते हैं जिन्हें अपने गुरु से जानकारी लेनी चाहिए या जो पहले से काफी कुछ जानते हैं ,साथ ही हामारा लेख सामान्य लोगों को ईश्वरीय ऊर्जा महसूस कराने से सम्बंधित है |
उपरोक्त सभी साधनाएं ,बिना गुरु के भी संभव हैं ,और सक्षम साधक द्वारा प्रदत्त सुरक्षा कवच धारण करके की जा सकती हैं |सभी साधनाओं में ईष्ट कृपा ,उसकी ऊर्जा महसूस होना ,यहाँ तक की साक्षात्कार ,वार्तालाप ,तक संभव है ,और सभी के लिए संभव है ,बस जरूरत है श्रद्धा -विश्वास -एकाग्रता -निष्ठां -आत्मबल की |इन्हें करके खुद की समस्या हल करने के साथ दूसरों की भी समस्याएं हल की जा सकती हैं और हमेशा के लिए पंडित ,मौलवी ,ज्योतिषी ,तांत्रिक के चक्कर से मुक्ति पायी जा सकती है |आज की समस्या तो हल होगी ही भविष्य में कोई समस्या उत्पन्न ही नहीं होगी ,जो भाग्य में है उसका अधिकतम मिलेगा |साक्षात्कार की स्थिति आते ही भाग्य तक बदल जाएगा |...................................................हर-हर महादेव 


महाशंख  

                      महाशंख के विषय में समस्त प्रभावशाली तथ्य केवल कुछ शाक्त ही जानते हैं |इसके अलावा सभी लोग tantra में शंख का प्रयोग इसी...